गुरू(सिख धर्म)

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गुरू (पंजाबी:ਗੁਰੂ) एक सर्व उतम शक्ति है जो हर जीव आत्मा में ज्ञान भरती है। गुरू, संस्कृत शब्द है जिस का अर्थ है अँधेरे से रौशनी की तरफ लेकर जाने वाला।

सिख धर्म में गुरू अक्षर "शब्द" के लिए इस्तेमाल हुआ है। "शब्द" निरंकार दवारा प्रगट किया हुआ, उसका हुक्म/शक्ति है। "शब्द" को धुर की वाणी भी कहा गया है। यह वाणी सत पुरषों दवारा बिना कानो से सुनी जाती है और हृदये में प्रगट होती है। बाबा नानक व अन्य भक्तों ने इसी को अपना गुरू माना है। इसी द्वारा निरंकार का ज्ञान होता है। इसी को आसी ग्रंथ में सब से ऊपर माना गया है : ""श्री गुरू सब ऊपर"" - भट गयंद

इसको बीज मन्त्र भी कहा जाता है।

गुरु (ਗੁਰੁ) बनाम गुरू (ਗੁਰੂ)[संपादित करें]

आदि ग्रंथ में गुरू और गुरु दोनों शब्दों में भेद रखा गया है।

जो सिर्फ मनुष्य जाती को ज्ञान दे, उसे गुरु कहा है, लेकिन जो हर जीव चाहे जानवर, मनुष्य, पेड़, पोधे आदिक में ज्ञान भरे उसके लिए गुरू शब्द का इस्तेमाल किया है। आम भाषा में यह शब्द अदल बदल लिए जाते हैं। लेकिन गुरमत विचार में इसकी भिन्नता साफ़ समझाई है। यही नहीं गुर, गुरदेव, सतगुर, सतगुरु, सतगुरू शब्दों को भी लोग एकसार मानते हैं।