गांधार के बौद्ध ग्रंथ
गांधार के बौद्ध ग्रंथ से आशय बौद्ध ग्रन्थों की अब तक खोजी गई सबसे पुरानी पांडुलिपियों है जो लगभग पहली शताब्दी ईसापूर्व से तीसरी शताब्दी ईस्वी तक की हैं। ये पाण्डुलिपियाँ भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में पाई गई हैं। [1] [2] [3] ये वर्तमान उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी अफ़गानिस्तान के गांधार के बौद्ध धर्म के प्रतिनिधि साहित्य हैं, और गांधारी भाषा में लिखे गए हैं।
इन पाण्डुलिपियों को यूरोपीय और जापानी संस्थाओं और व्यक्तियों को बेच दिया गया था। लेकिन वर्तमान समय में कई विश्वविद्यालय इन्हें पुनः प्राप्त करके इनका अध्ययन कर रहे हैं। गांधार ग्रन्थ अत्यन्त खराब स्थिति में हैं (उनका बचे रह जाना ही अचरज की बात है), लेकिन आधुनिक संरक्षण तकनीकों और अधिक पारंपरिक ग्रन्थ-विद्वत्ता का उपयोग करके कई मामलों में इनका पुनर्निर्माण संभव हो पाया है। पहले से ज्ञात पालि और बौद्ध संकर संस्कृत के ग्रन्थों से तुलना भी इनके पुनर्निर्माण में बहुत उपयोगी रही है। अन्य गांधार बौद्ध ग्रंथ (कई और शायद बहुत सारे) पिछले दो शताब्दियों में पाए गए हैं लेकिन वे खो गए हैं या नष्ट हो गए हैं। [4]
इस क्षेत्र के अग्रणी विद्वान रिचर्ड सॉलोमन के अनुसार ये ग्रन्थ धर्मगुप्तक संप्रदाय से संबंधित हैं। [5] उनका यह भी कहना है कि ब्रिटिश लाइब्रेरी में उपलब्ध गान्धार ग्रन्थों की संख्या नगराहार के धर्मगुप्तक संप्रदाय के मठ के ग्रन्थालय में उस काल में संगृहीत ग्रन्थों की संख्या की तुलना में बहुत अल्प है किन्तु फिर भी ये 'उस विशाल ग्रन्थ-राशि' का एक यथोचित प्रतिनिधित्व करते हैं।[6]
संग्रह
[संपादित करें]ब्रिटिश लाइब्रेरी का संग्रह
[संपादित करें]1994 में, ब्रिटिश लाइब्रेरी ने पहली शताब्दी ई० के पूर्वार्ध के गांधार पांडुलिपियों के लगभग अस्सी टुकड़ों का एक समूह प्राप्त किया था जिसमें सत्ताईस बर्च-छाल स्क्रॉल शामिल थे। [7] इन बर्च छाल पांडुलिपियों को मिट्टी के बर्तनों में रखा गया था, जिससे वे सुरक्षित रहीं। ऐसा माना जाता है कि ये अवशेष पश्चिमी पाकिस्तान के गांधार क्षेत्र में प्राचीन मठों में जमीन में दबे मिले थे। एक टीम इन पाण्डुलिपियों पर काम कर रही है और इनको समझने की कोशिश कर रही है। अब तक कई खण्ड प्रकाशित हो चुके हैं (नीचे देखें)। इन पांडुलिपियों की भाषा गांधारी भाषा है तथा लिपि खरोष्ठी है, और इसलिए कभी-कभी इन्हें खरोष्ठी पांडुलिपियाँ भी कहा जाता है।
गान्धार ग्रन्थों के इस संग्रह में विविध प्रकार के ग्रंथ है: धम्मपद, बुद्ध के प्रवचन जैसे कि खडगविषाण गाथा (खग्गविषाण सुत्त) , अवदान और पूर्वयोग, भाष्य और अभिधर्म ग्रंथ।
इस बात के प्रमाण मौजूद हैं कि ये ग्रंथ धर्मगुप्तका सम्प्रदाय से संबंधित हैं। [8] उस सम्प्रदाय की ओर संकेत करते हुए एक बर्तन पर एक लेख प्राप्त हुआ है। इसके अलावा कुछ ग्रन्थ भी साक्ष्यरूप में मौजूद हैं। गान्धार क्षेत्र से प्राप्त खग्गविषाण सुत्त में 'महयणश' शब्द आया है, जिसे कुछ लोग "महायान" से जोड़ते हैं। [9] हालांकि, सॉलोमन के अनुसार, खरोष्ठी लिपि में लिखे "आमंत्रण भोति महयणश" (बहुत से लोगों से आमन्त्रण आते हैं) का महायान से कोई संबंध है, ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है। [9]
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Salomon, Richard, (2018). The Buddhist Literature of Ancient Gandhara: An Introduction with Selected Translations (Classics of Indian Buddhism) , Wisdom Publications, p.1: "...Subsequent studies have confirmed that these and other similar materials that were discovered in the following years date from between the first century BCE and the third century CE..."
- ↑ University of Washington. "The Early Buddhist Manuscripts Project": "...These manuscripts date from the first century BCE to the third century CE, and as such are the oldest surviving Buddhist manuscripts as well as the oldest manuscripts from South Asia..." Retrieved 18 September 2021.
- ↑ Ludwig-Maximilians-Universitat Munchen. "Buddhist Manuscripts from Gandhara": "...The discovery of the earliest Buddhist manuscripts – written in Gāndhārī language and Kharoṣṭhī script and dating from the 1st c. BCE to the 4th c. CE – has revolutionized our understanding of this formative phase of Buddhism..." Retrieved 18 September 2021.
- ↑ Olivelle 2006, पृ॰ 357.
- ↑ Fumio 2000, पृ॰ 160.
- ↑ Salomon 1999, पृ॰ 181.
- ↑ University of Washington. "The Early Buddhist Manuscripts Project": "...twenty‐seven unique birch‐bark scrolls, written in the Kharoṣṭhī script and the Gāndhārī language, that had been acquired by the British Library in 1994..." Retrieved 23 September 2021.
- ↑ Salomon & Glass 2000, पृ॰ 5.
- ↑ अ आ Salomon & Glass 2000, पृ॰ 127.