गंगाप्रसाद श्रीवास्तव

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गंगाप्रसाद श्रीवास्तव या गंगा बाबू (23 अप्रैल 1889–30 अगस्त 1976) हिन्दी साहित्यकार थे। जीपी बाबू अच्छे कथाकार, कहानीकार के अलावा एक बेहतर अभिनेता थे। कई नाटकों में उन्होंने सशक्त अभिनय किया। उस दौरान वे एकांकी के सशक्त अभिनेता थे। सरलता एवं अभिनय के गुण से परिपक्व, एकांकी लिखने में माहिर गंगा बाबू का नाम हिंदी के शुरुआती एकांकीकार के रूप में जाना जाता है।

गंगा बाबू को ‘साहित्य वारिधि’ व ‘साहित्य महारथी’ जैसे अलंकरण से विभूषित किया गया। हास्य सम्राट गंगा बाबू की याद में पूर्वोत्तर रेलवे ने गोंडा-बहराइच रेल खंड पर 'गंगाधाम' स्टेशन का निर्माण कराया।

जीवन परिचय[संपादित करें]

बाबू गंगा का जन्म 23 अप्रैल 1889 में बिहार के छपरा जिले में हुआ था।[1] उनके पिता रघुनंदन जी गोंडा में रेलवे में यहां नौकरी करते थे, इसलिए गंगा बाबू भी यहीं रहते थे। उर्दू के उस जमाने में गंगा बाबू ने लीक से हटकर हिंदी पढ़ने को प्राथमिकता दी। कैनिंग कॉलेज में शिक्षा ग्रहण करते हुए गंगा बाबू ने हिंदी साहित्य की सशक्त रचना ‘लंबी दाढ़ी’ लिखी।

कृतियाँ[संपादित करें]

उनकी साहित्य की रचनाएं सामान्य हिंदी भाषा में चित्रित हैं। गंगा बाबू मनुष्य के सामान्य जीवन में होने वाले उतार-चढ़ाव से प्रभावित थे। वे मुंशी प्रेमचंद के भी पूर्ववर्ती थे। 1916 ई. में साहित्य रचना के क्षेत्र में प्रेमचंद के पदार्पण के पहले ही गंगा बाबू की कई रचनाएं प्रकाशित हो चुकी थीं।

‘दिलजले की आह’, ‘लतखोरी लाल’, ‘भइया अकिल बहादुर’, ‘दिल ही तो है’, ‘मामा जी’, ‘मुर्दा बाजार’ आदि उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं।

सन्दर्भ[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]