गंगा प्रदूषण नियंत्रण

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गंगा नदी में होने वाला प्रदूषण पिछले कई सालों से भारतीय सरकार और जनता के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। इस नदी उत्तर भारत की सभ्यता और संस्कृति की सबसे मजबूत आधार है। उत्तर भारत के लगभग सभी प्रमुख शहर और उद्योग करोड़ों लोगों की श्रद्धा की आधार गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे हैं और यही उसके लिए सबसे बड़ा अभिशाप साबित हो रहे हैं।

प्रदूषण का कारण[संपादित करें]

ऋषिकेश से लेकर कोलकाता तक गंगा के किनारे परमाणु बिजलीघर से लेकर रासायनिक खाद तक के कारख़ाने लगे हैं। कानपुर का जाजमऊ इलाक़ा अपने चमड़ा उद्योग के लिए मशहूर है। यहाँ तक आते-आते गंगा का पानी इतना गंदा हो जाता है कि उसमें डुबकी लगाना तो दूर, वहाँ खड़े होकर साँस तक नहीं ली जा सकती। गंगा की इसी दशा को देख कर मशहूर वकील और मैगसेसे पुरस्कार विजेता एमसी मेहता ने १९८५ में गंगा के किनारे लगे कारख़ानों और शहरों से निकलने वाली गंदगी को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। फिर सरकार ने गंगा सफ़ाई का बीड़ा उठाया और गंगा एक्शन प्लान की शुरुआत हुई।

गंगा एक्शन प्लान[संपादित करें]

अप्रैल १९८५ में गंगा एक्शन प्लान की शुरुआत हुई और बीस सालों में इस पर १२०० करोड़ रुपये खर्च हुए।[1] इस योजना की बदौलत गंगा के किनारे बसे शहरों और कारख़ानों में गंदे और जहरीले पानी को साफ़ करने के प्लांट लगाए गए। इनसे गंगा के पानी में थोड़ा सुधार ज़रूर हुआ लेकिन गंगा में गंदगी का गिरना बदस्तूर जारी रहा। अंत में यह समझा गया कि गंगा एक्शन प्लान असफल हो गया। इस प्लान की सबसे बड़ी ख़ामी शायद ये थी कि उसमें गंगा के बहाव को बढ़ाने पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। गंगा में ग्लेशियरों और झरनों से आने वाले पानी को तो कानपुर से पहले ही नहरों में निकाल लिया जाता है। ज़मीन का पानी गंगा की धारा बनाए रखता था लेकिन नंगे पहाड़ों से कट कर आने वाली मिट्टी ने गंगा की गहराई कम करके अब इस स्रोत को भी बंद कर दिया है। बनारस के 'स्वच्छ गंगा अभियान' के संचालक प्रोफ़ेसर वीरभद्र मिश्र इस बारे में चिंतित हैं और बताते हैं कि गंगा पर कितना दबाव है। उन्होंने कहा कि गंगा दुनिया की एकमात्र नदी है जिस पर चालीस करोड़ लोगों का अस्तित्व निर्भर है। इसलिए उस पर दबाव भी ज़्यादा है। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि गंगा को बचाने के लिए सबसे पहले हिमालय के ग्लेशियरों को बचाना होगा।

ब्रह्म-द्रव ‘गंगा’ का पराभव![संपादित करें]

भ्रष्टाचार मुक्त भारत की संकल्पना की ही तर्ज पर ब्रह्म-द्रव गंगा को प्रदूषणमुक्त करने के लिए वर्षों से अकूत संपदा एक्शन प्लान के रूप में बहायी जाती रही है लेकिन नतीजा सिफर ही रहा। गंगा ही नहीं, सभी नदियों की बदहाली है। लीलापुरुषोत्तम श्रीकृष्ण का कालिया मर्दन प्रसंग ही एकमात्र ऐसा एक्शन प्लान है जो जहरीले नद-जगत् को विष हीन अर्थात् प्रदूषण मुक्त कर सकता है। कालिया नाग प्रदूषण का प्रतीक है, जिसके असंख्य फन नाले, नालियों, सीवर लाइनें, फैक्ट्रियों की विषाक्त गंदगी आदि के प्रतीक हैं। इन फनों को कुचलने का तात्पर्य है विषाक्त स्रोतों को रोक देना। सवाल उठता है कि जब नाले नालियां जाम कर दी जायेंगी तो गंदा पानी घरों में जायेगा, हालात खराब होंगे, ऐसा नहीं है। समस्या जब पैदा होती है तब समाधान भी ढूंढा जाता है। जल शुष्क संयंत्र यानी सोख्ते बनाकर इसका निस्तारण किया जा सकता है।

स्वच्छ गंगा अभियान[संपादित करें]

स्वच्छ गंगा अभियान वाराणसी तथा समीपवर्ती स्थानों में गंगा को साफ़ करने के लिए एक सस्ता और सुरक्षित तरीका है। यह तरीका बिजली पर निर्भर नहीं है। इसमें कूड़े-करकट को गुरुत्वाकर्षण का सहारा लेकर एक बड़े कुंड में जमा कर लिया जाता है जहाँ जैविक तरीके से इसकी सफ़ाई होती है। कूड़े में से कीटनाशक, लोहा-लक्कड़ और दूसरे प्रदूषकों को हटा दिया जाता है। अमरीका में नदियों की सफ़ाई इसी तरीके से होती है।[2]

नमामि गंगा[संपादित करें]

इस नदी की सफाई के लिए कई बार पहल की गयी लेकिन कोई भी संतोषजनक स्थिति तक नहीं पहुँच पाया।[3]प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गंगा नदी में प्रदूषण पर नियंत्रण करने और इसकी सफाई का अभियान चलाया।[4] इसके बाद उन्होंने जुलाई २०१४ में भारत के आम बजट में नमामि गंगा नामक एक परियोजना आरम्भ की।[5] इसी परियोजना के हिस्से के रूप में भारत सरकार ने गंगा के किनारे स्थित ४८ औद्योगिक इकाइयों को बन्द करने का आदेश दिया।[6]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "आने वाले समय में मैली नहीं रहेगी राम की गंगा". देनिक भास्कर. अभिगमन तिथि ३० जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)[मृत कड़ियाँ]
  2. "गंगा को स्वच्छ करने का प्रयास". बीबीसी. मूल से 7 मई 2005 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ३० जून २००९.
  3. "Ganga, Yamuna banks cleaned" [गंगा यमुना के किनारे पर सफाई] (अंग्रेज़ी में). द टाइम्स ऑफ़ इण्डिया. १२ नवम्बर २०१३. मूल से 14 दिसंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ३ जून २०१५.
  4. "Why Narendra Modi decided to contest from Varanasi" [नरेन्द्र मोदी ने वाराणसी से चुनाव लड़ने का निर्णय क्यों लिया] (अंग्रेज़ी में). द इकोनॉमिक टाइम्स. १७ मार्च २०१४. मूल से 4 सितंबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ३ जून २०१५.
  5. "Namami Ganga development Project gets 2037 crores" [नमामि गंगा विकास परियोजना को २०३७ करोड़ मिले] (अंग्रेज़ी में). बिहार प्रभा. १० जुलाई २०१४. मूल से 31 मई 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ३ जून २०१५.
  6. "निखरेगा गंगा का रूप, 48 फैक्ट्रियों को बंद करने का आदेश जारी हुआ". पत्रिका समाचार समूह. १५ जुलाई २०१४. अभिगमन तिथि ३ जून २०१५.[मृत कड़ियाँ]