गंगानाथ झा अनुसंधान संस्थान, प्रयाग
राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (गंगानाथ झा कैम्पस) एक तुल्यविश्वविद्यालय है। यह १९४३ से १९७१ तक 'गंगानाथ झा अनुसंधान संस्थान' के नाम से तथा १९७१ से २००२ तक 'गंगानाथ झा केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ' के नाम से जाना जाता था। इसकी स्थापना 17 नवम्बर 1943 को डॉ गंगानाथ झा के नाम एवं कार्यों को अमर बनाने के लिए किया गया था।
परिचय
[संपादित करें]महामहोपाध्याय डाक्टर गंगानाथ झा के स्मारक रूप में एक प्राच्यविद्या अनुसंधान संस्था की १७ नवम्बर १९४३ ई० में स्थापना हुई। पं॰ मदनमोहन मालवीय ने इसका उद्घाटन किया। आरंभ में कुछ दिन यह संस्था मदनमोहन कालेज के भवन ही में थीं। बाद को डॉ॰ अमरनाथ झा के प्रयत्न से उत्तर प्रदेश सरकार ने स्थानीय अल्फ्रडे पार्क (मोतीलाल नेहरू पार्क) में लगभग दो एकड़ भूमि बिना मूल्य संस्था के भवन बनाने को दी।
डाक्टर सर तेजबहादुर सप्रू ने इस संस्था का सभापतिपद स्वीकार किया। डॉ॰ अमरनाथ झा उपसभापति, पं॰ ब्रजमोहन व्यास इसके कोषाध्यक्ष तथा महामहोपध्याय डाक्टर श्री उमेश मिश्र, मंत्री निर्वाचित हुए। श्री भगवतीशरण सिंह (आनापुर के जमीदार), डॉ॰ अत्तार सिद्दीकी, पं॰ क्षेत्रेशचंद्र चट्टोपाध्याय, पं॰ देवीप्रसाद शुल्क, डॉ॰ ताराचंद, प्रोफेसर रानडे तथा डॉ॰ ईश्वरीप्रसाद - ये लोग इसकी कार्यकारिणी समिति के सदस्य थे।
इसमें लगभग ८ हजार हस्तलिखित उत्तम संस्कृत के कुछ अरबी और फारसी के तथा हिंदी के भी हस्तलिखित एवं लगभग १० हजार मुद्रित ग्रंथ हैं। रूस, जर्मनी एवं अन्य पाश्चात्य देशों से उपहार रूप में अनुसंधान की पुस्तकों की प्राप्ति होती रहती है। इसका अपना भवन है।
उत्तर भारत में यह एक अच्छी अनुसंधान संस्था है। इस समय इसका विशेष ध्येय है योग्य विद्वानों द्वारा संस्कृत विद्या का इतिहासप्रणयन, इंडोलॉजी के अनुसंधानों के प्रत्येक विभाग की एक विस्तृत विवरणपत्रिका का प्रकाशन तथा भारतीय विद्याओं में भारतीय दृष्टिकोण से आकर ग्रंथों पर अनुसंधान करना।
१२ जनवरी १९४५ ई० को यह संस्था पंजीकृत हुई थी।
लक्ष्य
[संपादित करें]- (१) संस्कृत तथा अन्य भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहन देना, उनमें अनुसंधान करना इसका प्रधान उद्देश्य है।
- (२) इसके अंतर्गत पुस्तकालय तथा वाचनालय की व्यवस्था करना,
- (३) प्राचीन तथा दुर्लभ संस्कृत के ग्रंथों का प्रकाशन करना,
- (४) प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों का संग्रह करना,
- (५) शोधपूर्ण तथा लोकप्रिय सांस्कृतिक व्याख्यानों का प्रबंध करना,
- (६) त्रैमासिक अनुसंधान पत्रिका का प्रकाशन करना तथा
- (७) पुरस्कार एवं छात्रवृति देकर योग्य विद्वानों द्वारा अनुसंधान कराना इसके अन्य उद्देश्य हैं।
प्रति वर्ष नवंबर मास में इसका वार्षिक अधिवेशन होता है जिसमें किसी विशिष्ट विद्वान् का भाषण होता है। अभी तक जिनके भाषण हुए हैं उनमें से कुछ के नाम निम्नलिखित हैं:
- डॉ॰ के. एस. कृष्णन्, डॉ॰ सर सर्वपल्ली राधाकृष्णन्, डॉ॰ भगवान दास, एम. एस. संपूर्णानंद, डॉ॰ गोरखप्रसाद, प्रोफेसर आर. डी. रानड़े।
डॉ॰ सर तेजबहादुर सप्रू के निधन के पश्चात् क्रमश: डॉ॰ भगवान दास तथा डॉ॰ सर सर्वपल्ली राधाकृष्णन् इसके सभापति हुए। डॉ॰ राय रामचरण अग्रवाल-कोषाध्यक्ष, पं॰ आदित्यनाथ झा, आई. सी. एस. तथा डॉ॰ ईश्वरीप्रसाद-उपसभापति एवं प्रोफेसर परमानंद, पं॰ गदाधरप्रसाद भार्गव, प्रो॰ आर. एन. कौल, पं॰ क्षेत्रेशचंद्र चट्टोपाध्यय, श्री वैद्यनाथ चौधरी तथा पं॰ सरस्वतीप्रसाद चतुर्वेदी इसके सदस्य हैं। इलाहाबाद के कमिश्नर इसके पदेन सदस्य होते हैं।
प्रकाशित ग्रंथ
[संपादित करें](१) संस्कृत डॉकुमेंट,
(२) मीमांसा जुरिसप्रूडेंस
(३) इंडोलॉजिकल स्टडीज, भाग १,३,४,
(४) प्रातिमोक्षसूत्र,
(५) डिस्क्रिपटिव कैटलाग ऑव मैनुस्क्रिप्टस्,
(६) अनुसंधान पत्रिका, १,- १८ भाग।