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ख्यातिवाद

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सामान्य अर्थ में ख्याति से तात्पर्य प्रसिद्धि, प्रशंसा, प्रकाश, ज्ञान आदि समझा जाता है। पर दार्शनिकों ने इसे सर्वथा भिन्न अर्थ में ग्रहण किया है। उन्होंने वस्तुओं के विवेचन की शक्ति को ख्याति कहा है और विभिन्न दार्शनिकों ने उसकी अलग-अलग ढंग से व्याख्या की है।

भारतीय दर्शन के सभी सम्प्रदायों में अपने भ्रम-सिद्धान्त प्रचलित हैं। अद्वैतवेदान्त के प्राचीन ग्रन्थों में अनिर्वचनीय ख्याति सहित पञ्चख्याति (पाँच ख्याति) का उल्लेख है। उन ख्यातियों के नाम हैं-

आत्मख्यातिरसत्ख्यातिरख्याति ख्यातिरन्यथा।
तथाऽनिर्वचनख्यातिरित्येतत् ख्यातिपञ्चकम्॥ -- ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्य
अर्थ : आत्मख्याति, असत्ख्याति, अख्याति, अन्यथाख्याति, अनिर्वचनख्याति - ये ५ ख्याति (ज्ञान) हैं।

इष्टसिद्धि के रचनाकार विमुक्तात्ममुनि ने इष्टसिद्धि में संक्षेपतः ख्याति तीन प्रकार की बतलाई है।

(१) सत्ख्याति,
(२) असत्ख्याति, एवं
(३) सदसदनिर्वचनीय ख्याति

भासर्वज्ञ ने न्यायभूषण में अष्टख्यातियों का उल्लेख किया है-

  • १- अख्याति - निरालम्बन ख्याति ही अख्याति है ( माध्यमिक)
  • २- असत्ख्याति- असदवलम्बन ख्याति असत्ख्याति है (माध्यमिक एकदेशी)
  • ३- प्रसिद्धार्थख्याति- ( चार्वाक )
  • ४- अलौकिकार्थख्याति - (भट्टोम्बेक प्रमुख)
  • ५- स्मृतिविप्रमोषख्याति- (प्राभाकर)
  • ६- आत्मख्याति - (सौत्रान्तिक वैभाषिक योगाचार )
  • ७- सदसत्वाद्यनिर्वचनीय ख्याति - (अद्वैतवेदान्ती)
  • ८- विपरीतख्याति- (न्याय)

परवर्ती काल में रामानुज सम्प्रदाय का सत्ख्यातिवाद, माध्व का असत्ख्यातिवाद (इसे साधिष्ठानक असत्ख्यातिवाद कहा गया है) प्रसिद्ध हुये हैं । साङ्ख्यदर्शन द्वारा सदसत्ख्याति स्वीकृत है। भासर्वज्ञ ने निरालम्बन अख्याति की चर्चा की है जो कि अन्यत्र चर्चित नहीं है।

संक्षिप्त परिचय

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1. आत्मख्याति - विज्ञानवादी बौद्धों के अनुसार आत्मा के साथ जो बुद्धि है उसकी ख्याति विषय के रूप में प्रतिभासित होती है। यथा-सीप को देखकर चाँदी का भ्रम उत्पन्न होता है। इस भ्रम का कारण बुद्धि द्वारा उनका तदाकार मान लिया जाना है। इस स्थिति में अन्य को बाह्य विषय की उपेक्षा नहीं होती।

2. असत् ख्याति - शून्यवादी बौद्धों के मत से चाँदी का सीप प्रतीत होना असत ख्याति है। वाचस्पति ने इसी असत ख्याति का प्रतिपादन किया है।

3. अख्याति - 'यह चाँदी है' - इस वाक्य में यह प्रत्यक्ष प्रतीति का विषय है। चाँदी प्रत्यक्ष प्रतीति का विषय नहीं है क्योंकि नेत्रादि का उसके साथ कोई संबंध नहीं। वस्तुत: चाँदी की प्रतीति स्मरण रूप मात्र है। किंतु यह भेद समझ नहीं पड़ता। इसलिये यह अख्याति है। मीमांसक इस प्रकार के अख्यातिवादी हैं।

4. अन्यथा ख्याति - एक वस्तु से दूसरे वस्तु के आकार की प्रतीति को अन्यथाख्याति कहते हैं। यथा-सदोष इंद्रियों के संयोग के कारण ही सीप चाँदी जान पड़ता है। यह नैयायिकों का कहना है।

5. अनर्विचनीय ख्याति - जिसमें सत् असत् समझ न पड़े; इस प्रकार वस्तु की प्रतीति इसका स्वरूप है। यथा-सीप के स्थान पर चाँदी का आभास सत्य नहीं है। प्रमाण का निरूपण करने से सत् वस्तु का बोध होता है या नहीं, यह विचारणीय है। विवेचन से जान पड़ता है कि यह चाँदी नहीं है। इस प्रमाण से वह असत है किंतु वह असत है ही यह निश्चित नहीं; क्योंकि असत है उसकी प्रतीति संभव नहीं। यहाँ सीपी चाँदी जान पड़ती है। इस प्रकार भ्रामक पदार्थ की प्रतीति अनिर्वचनीय ख्याति है, यह वेदांतियों का कथन है।

सन्दर्भ

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इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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