खेतेश्वर

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खेतेश्वर महाराज (22 अप्रैल 1912 -- 7 मई, 1984) राजपुरोहित समाज के सन्त तथा आराध्य महात्मा है।[1][2]

खेतेश्वर महाराज
जन्म 22 अप्रेल 1912
गाँव-खेड़ा। सांचोर, राजस्थान
मृत्यु 7 मई 1984(1984-05-07) (उम्र 72)
आसोतरा, भारत
धर्म हिन्दू
के लिए जाना जाता है ब्रह्मधाम आसोतरा के संस्थापक और संरक्षक

श्री खेतेश्वर दाता का जीवन परिचय[संपादित करें]

नाम : श्री खेतसिंहजी राजपुरोहित ( ब्रह्म अंश अवतार ) पिता : श्री शेरसिंह जी राजपुरोहित माता : श्रीमती सणगारी देवी जन्म : 22 अप्रेल 1912 विक्रम संवत 1969 वैशाख शुक्‍ला पंचमि स्थान : ग्राम - खेड़ा , तहसील - सांचोर , जिला - जालोर ( राजस्थान ) ऋषि गोत्र : उदालिक ऋषि गोत्र उदेच बिस्वा-5 ( परवर-अत्री , कर्दमान- उदालिक )

शाखा - मध्या नंदिनी , सूत्र - पारस्कर, माता पिता गायत्री , ॐ मूल स्थान , बड़ा चण

सन्यास : 12 वर्ष की उम्र में ( बाल्यावस्था ) गुरु दीक्षा : संत शिरोमणि श्री गणेशा नंद जी महाराज द्वारा सुविख्यात नाम : ब्रह्म अवतार कुलगूरू श्री श्री 1008 श्री खेतारामजी महाराज असंभव कार्य : 5 मई 1984 को जगत पिता ब्रह्माजी का विश्व के दुसरे विराट मंदिर की स्थापना आसोतरा में निर्वाण : 7 मई 1984 समय :- 12 .36 बजे | स्थान = ब्रह्मधाम आसोतरा (बाड़मेर ) चमत्कार : सर्व सिद्धियों से युक्त महाराज , ब्रह्माजी को सपत्निक धरती पर लाये

दिव्य कर्म एवं विराट उपलब्धि[संपादित करें]

शताब्दी दिव्य पुरुष , वेदों के ज्ञाता , धर्म रक्षक , कलयुग में सिद्ध वाणी , संत शिरोमणि , गौवंश संरक्षण , जिव हत्या विरोधी , पर्यावरण समर्थक , सैकड़ो चमत्कारों से युक्त , ब्रह्म अंश अवतारी दिव्य संत , बाल ब्रह्म अवतारी , प्रख्यात तपस्वी ,एक समाज एक जाजम के प्रणेता, अस्तित्व विहीन ब्रह्म समाज को संगठित कर उनकी आर्थिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर राजपुरोहित समाज को अंतरराष्ट्रीय पहचान प्रदान की। एकता में अनेकता मूल मंत्र से सर्वजन को रास्ता दिखाया तथा समाज के प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास में आपने व्यापक वृद्धि की। भारत के विभिन प्रांतो की आपने यात्रा कर विश्व के दुसरे सबसे विराट एवं भव्य मंदिर निर्माण हेतु समाज बंधुओ से धन संग्रह कर भारत के राजस्थान प्रान्त के बाड़मेर जिले के बालोतरा शहर से 10 किलोमीटर दूर गढ़ सिवाना रोड पर स्तिथ ग्राम आसोतरा में दिनांक ५ मई १९६१ को शुभ नक्षत्र - मुहूर्त में विश्व के दुसरे विराट ब्रह्म मंदिर की नीव रखी जो इंटरनेसनल तीर्थ धाम पुष्कर के बाद विश्व का सबसे बड़ा एवं भव्य मंदिर का निर्माण करवाया जो उक्त निर्माण खेताराम जी महाराज के अनवरत अथक प्रयासों के 24 वर्ष बाद दिनांक ५ मई 1984 को आपने तप , ज्ञान , विधता एवं ब्रह्म शक्ति का सिद्ध प्रयोग कर सृष्ठी रचियता श्री ब्रह्माजी को सपत्निक धरती पर लेकर आये और भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित कर एक विशाल शक्ति धाम की कल्पना - संकल्प साकार कर मानव जाती का उत्थान किया || उक्त ब्रह्मधाम के दर्शन मात्र से मानव जाती का ह्रदय खिल जाता है ||

शाश्त्र सम्मत :-

सृष्टि में यह शाश्त्र सम्मत है की सम्पूर्ण देवी देवताओ के मंदिर एवं पूजा अर्चना होगी परन्तु ब्रह्माजी के मंदिर की नहीं होगी और यदि कोई सिद्ध पुरुष कितना ही दिव्या ज्ञाता हो ब्रह्माजी का मंदिर बनाता है तो मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही मुख्या यजमान को अपने प्राण छोड़ने होंगे अर्थात आसोतरा स्तिथ ब्रह्माजी के सपत्निक मूर्ति प्रतिष्ठा के साथ ही खेतारामजी के प्राण उसी वक्त मूर्ति में विलीन हो गए परन्तु महाराज ने प्रतिष्ठा के 24 घंटे बाद 7 मई 1984 को शरीर त्यागा ...धन्य है आप , नमन आपकी विशालतम समाधी स्थल ( वैन्कुठ्धाम ) ब्रह्म मंदिर के ठीक सामने है जहाँ दर्शन मात्र से कल्याण होता है।

अपेक्षाएं :-

यदि खेताराम जी महाराज कुछ समय के लिए हमारे बीच और रहते तो समाज नयी उंचाईया प्राप्त करता तथा समाज में गोत्र विखंडन , सम गोत्र संबंधो पर प्रतिबन्ध के साथ छोटे बड़े के साथ भेद समाप्त होता ,,,समाज के धन का व्यापक सदुपयोग होता ,,,खेताराम जी महाराज ने समाज को आदर्श व् प्रेरणाए दी परन्तु उन आदर्शो पर कितना अमल हो प् रहा है ये सोचने वाली बात है

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. ‘म्हारे घर आवोनी खेतेश्वर महाराज’[मृत कड़ियाँ]
  2. "वार्षिकोत्सव में खेतेश्वर महाराज के गूंजे जयकारे". मूल से 24 फ़रवरी 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 अक्तूबर 2015.