इस लेख के उद्धरण अस्पष्ट हैं। उद्धरणों एवं सन्दर्भों एक ही शैली में लिख कर उन्हें * 15 नवंबर 1570, राय कल्याण सिंह ने अपनी भतीजी का विवाह अकबर से किया (राठौर-बीकानेर)
1570, मालदेव ने अपनी पुत्री रुक्मावती का अकबर से विवाह किया (राठौर-जोधपुर)
1573, नगरकोट के राजा जयचंद की पुत्री से अकबर का विवाह (नगरकोट)
मार्च 1577, डूंगरपुर के रावल की बेटी से अकबर का विवाह (गहलोत-डूंगरपुर)
1581, केशवदास ने अपनी पुत्री का विवाह अकबर से किया (राठौर-मोरता)
16 फरवरी, 1584, राजकुमार सलीम (जहांगीर) का भगवंत दास की बेटी से विवाह (कछवाहा-आंबेर)
1587, राजकुमार सलीम (जहांगीर) का जोधपुर के मोटा राजा की बेटी से विवाह (राठौर-जोधपुर)
2 अक्टूबर 1595, रायमल की बेटी से दानियाल का विवाह (राठौर-जोधपुर)
28 मई 1608, जहांगीर ने राजा जगत सिंह की बेटी से विवाह किया (कछवाहा-आंबेर)
1 फरवरी, 1609, जहांगीर ने राम चंद्र बुंदेला की बेटी से विवाह किया (बुंदेला, ओर्छा)
अप्रैल 1624, राजकुमार परवेज का विवाह राजा गज सिंह की बहन से (राठौर-जोधपुर)
1654, राजकुमार सुलेमान शिकोह से राजा अमर सिंह की बेटी का विवाह (राठौर-नागौर)
17 नवंबर 1661, मोहम्मद मुअज्जम का विवाह किशनगढ़ के राजा रूप सिंह राठौर की बेटी से (राठौर-किशनगढ़)
5 जुलाई 1678, औरंगजेब के पुत्र मोहम्मद आजाम का विवाह कीरत सिंह की बेटी से हुआ. कीरत सिंह मशहूर राजा जय सिंह के पुत्र थे (कछवाहा-आंबेर) स्पष्ट बनाने में मदद करें।(मई 2015)
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खाटू श्याम मंदिर भारतीय राज्य राजस्थान के सीकर जिले में सीकर शहर से सिर्फ 43 किमी दूर खाटू गांव में एक हिंदू मंदिर है। यह देवता कृष्ण और बर्बरीक की पूजा करने के लिए एक तीर्थ स्थल है, जिन्हें अक्सर कुलदेवता के रूप में पूजा जाता है। भक्तों का मानना है कि मंदिर में बर्बरीक का असली सिर है, जो एक महान योद्धा थे, जिन्होंने कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण के कहने पर अपना सिर काटकर उन्हें गुरु दक्षिणा के रूप में अर्पित कर दिया था और बाद में श्री कृष्ण ने उन्हें श्याम नाम से पूजित होने का आशीर्वाद दिया। दिव्या श्री श्याम कथा जो 40 बर्ष के संसोधन वह पुराणो के अनुसार लिखा गया है। हमे श्याम बाबा के जीवन रचनात्मक रूप धारण किए हुए हैं। लेखक स्वामी योगीराज प्यारेनन्द महराज 5 दिवसीय कथा का बिधान भी है श्याम कथा बाचक अनिल कृष्ण गोस्वामी
हिन्दू धर्म के अनुसार, खाटू श्याम जी ने द्वापरयुग में श्री कृष्ण से वरदान प्राप्त किया था कि वे कलयुग में उनके नाम श्याम से पूजे जाएँगे। बर्बरीक जी का शीश खाटू नगर (वर्तमान राजस्थान राज्य के सीकर जिला) में इसलिए उन्हें खाटू श्याम बाबा कहा जाता है। कथा के अनुसार एक गाय उस स्थान पर आकर रोज अपने स्तनों से दुग्ध की धारा स्वतः ही बहा रही थी। बाद में खुदाई के बाद वह शीश प्रकट हुआ, जिसे कुछ दिनों के लिए एक ब्राह्मण को सूपुर्द कर दिया गया। एक बार खाटू नगर के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिए और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिए प्रेरित किया गया। तदन्तर उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया, जिसे बाबा श्याम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कँवर द्वारा बनाया गया था। मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर १७२० ई. में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।[1]
इन्हें*"अनेन यः सुह्रदयं श्रावणेsभ्यर्च्च दर्शके। वैशाखेच त्रयोदश्यां कृष्णपक्षे द्विजोत्तमाः। शतदीपैः पूरिकाभिः संस्तवेत्तस्य तुष्यति"।।* (माहेश्वरखंड के कुमारिकाखंड के ६६वें अध्याय का ११६वाँ श्लोक) *।।*
इस श्लोक का अर्थ है - "हे श्रेष्ठ ब्राह्मणों! श्रावणी अमावस्या के दिन अथवा वैशाख महिने के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथियों को एक सौ (१००) दीपकों के साथ जो पूड़ी (तली हुई रोटी) निवेदन करके जो बर्बरीक जी की वंदना करता है, सुह्रदय जी (बर्बरीकजी) उस भक्त से प्रसन्न (संतुष्ट) हो जाते हैं"।
आप माता कामकटंकटा के कोखरूपी सरोवर के राजहंस हैं। आपकी जय हो । आप घटोत्कच का आनंदवर्द्धन करते हैं , आपकी जय हो , आपकी जय हो । आपने कृष्ण के उपदेश से गुप्तक्षेत्रवासिनी देवियों की आराधना द्वारा अतुलित वीर्यलाभ किया , आपकी जय हो , आपकी जय हो । आप पिंगला द्रुहद्रुहा, रेपलेन्द्र तथा 9 कोटि राक्षसपति पलाशी राक्षसरूप वन के दावानल रूप हैं । आपकी जय हो । आपने भूमि तथा पाताल के अन्तराल भाग की उपयाचिका नागकन्याओं का प्रत्याखान किया था , आपकी जय हो । आपने भीमसेन के भी गर्व को खर्व किया । आप मुहूर्तमात्र में समस्त कौरवसैन्य संहारार्थ प्रवृत्त हो गये थे । आपकी जय हो । आपने कृष्ण से सबको वर देने की शक्ति का वरलाभ किया । आपकी जय हो । आप कलिकाल में सर्वसाधारण के वन्दनीय होंगे , आपकी जय हो । आपको प्रणाम ! आपको प्रणाम ! आप रक्षा करें , रक्षा करें ॥११५॥