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ख़ादिम-उल-हरमैन-उल-शरिफ़ैन

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दो मुक़द्दस मसाजिद के ख़ादिम
خَادِمُ ٱلْحَرَمَيْنِ ٱلشَّرِيفَيْنِ
Arabic:  Khādim al-Ḥaramayn aš-Šarīfayn (अरबी में)
पदस्थ
शाह सलमान
23 January 2015 से
विवरण
संबोधन शैली Custodian of the Two Holy Mosques (formal)
or
साहब-ए-जलाल (diplomatic relations)
प्रथम एकाधिदारुक सलाहुद्दीन अय्यूबी
स्थापना 12th century आम ज़माना (दर हक़ीक़त)
November 1986 (अज़रूए-क़ानून)
निवास Al-Yamamah Palace
(Riyadh)
Al-Salam Palace
(Jeddah)
वेबसाइट alharamain.gov.sa

ख़ादिम-उल-हरमैन-उल-शरीफ़ैन (Custodian of the Two Holy Mosques) (अरबी: خادم الحرمين الشريفين) एक सालेह शाही ख़िताब है जिसे बहुत से मुस्लिम हुक्मरानों ने इस्तेमाल किया है बशमूल अय्यूबी ख़ानदान, ममलूक सलातीन मिस्र, सलातीन उस्मानी और मौजूदा दौर के शाहान-ए-सऊदी अरब। ख़ादिम-उल-हरमैन-उल-शरीफ़ैन के मायने "दो मुक़द्दस हरम (मस्जिदुल हराम व मस्जिद-ए-नबवी) के ख़ादिम" के हैं।

तारीख़ी तौर पर कहा जाता है कि सबसे पहले मर्तबा इस ख़िताब का इस्तेमाल सलाहुद्दीन अय्यूबी के लिए गया गया था।[1]इसके बाद ममलूक हुक्मरानों को शिकस्त देने के बाद उस्मानियों ने मक्का और मदीना फ़तेह किया तो सुल्तान सलीम-ए-अव्वल ने ये ख़िताब अपनाया। सलीम-ए-अव्वल के बाद मुहम्मद वहीदुद्दीन (जो सुल्तनत-ए-उस्मानिया के आख़िरी सुल्तान थे) तक तमाम उस्मानी सुल्तानों के लिए ये ख़िताब इस्तेमाल किया गया। सऊदी अरब के फ़रमानरवों में सबसे पहले शाह फ़हद बिन अब्दुल अज़ीज़ ने ये ख़िताब 1986 में अपनाया। इससे पहले सऊदी बादशाहों के लिए साहब-ए-जलाल का लफ़्ज़ इस्तेमाल किया जाता था जसे शाह फ़हद ने तब्दील करा कर ख़ादिम-उल-हरमैन-उल-शरिफ़ैन कर दिया। शाह फ़हद की वफ़ात के बाद शाह अब्दुल्ला बिन अब्दुल अज़ीज़ और शाह सुलैमान बिन अब्दुल अज़ीज़ आल सऊद ने भी ख़िताब अपनाया।

मज़ीद देखिये

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हवाले जात

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