खजुराहो
खजुराहो स्मारक समूह | |
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विश्व धरोहर सूची में अंकित नाम | |
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देश |
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प्रकार | सांस्कृतिक |
मानदंड | i, iii |
सन्दर्भ | 240 |
युनेस्को क्षेत्र | एशिया-प्रशांत |
शिलालेखित इतिहास | |
शिलालेख | 1986 (10th सत्र) |
खजुराहो | |
— शहर — | |
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |
देश | ![]() |
राज्य | मध्य प्रदेश |
ज़िला | छतरपुर |
जनसंख्या | 19,282 (2001 के अनुसार [update]) |
क्षेत्रफल • ऊँचाई (AMSL) |
• 283 मीटर (928 फी॰) |
निर्देशांक: 24°51′N 79°56′E / 24.85°N 79.93°E खजुराहो(पूर्व में खजूरपुरा) भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्रमुख शहर है, जो अपने प्राचीन एवं मध्यकालीन मंदिरों के लिये विश्वविख्यात है। यह मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है। खजुराहो को प्राचीन काल में 'खजूरपुरा'(खजूरी) और 'खजूर वाहिका' के नाम से भी जाना जाता था। यहां बहुत संख्या में प्राचीन हिन्दू और जैन मंदिर हैं। मंदिरों का शहर खजुराहो पूरे विश्व में मुड़े हुए पत्थरों से निर्मित मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। खजुराहो को इसके अलंकृत मंदिरों की वजह से जाना जाता है, जो कि देश के सर्वोत्कृष्ठ(सर्वश्रेष्ठ) मध्यकालीन स्मारक हैं। भारत के अलावा दुनिया भर के आगन्तुक और पर्यटक प्रेम के इस अप्रतिम सौंदर्य के प्रतीक को देखने के लिए निरंतर आते रहते हैं। हिन्दू कला और संस्कृति को शिल्पियों ने इस शहर के पत्थरों पर मध्यकाल में उत्कीर्ण(निर्मित) किया था। विभिन्न कामक्रीडाओं को इन मंदिरों में बेहद खूबसूरती के उभारा(बनाया) गया है। खजुराहो का मंदिर एक सभ्य सन्दर्भ, जीवंत सांस्कृतिक संपत्ति, और एक हजार आवाजें, जो सेरेब्रम, से अलग हो रही हैं, खजुराहो ग्रुप ऑफ मॉन्यूमेंट्स, समय और स्थान के अन्तिम बिंदु की तरह हैं, जो मानव संरचनाओं और संवेदनाओं को संयुक्त करती सामाजिक संरचनाओं की भरपाई करती है, जो हमारे पास है। सब रोमांच में। यह मिट्टी से पैदा हुआ एक कैनवास है, जो अपने शुद्धतम रूप में जीवन का चित्रण करने और जश्न मनाने वाले लकड़ी के ब्लॉकों पर फैला हुआ है।
चंदेल वंश द्वारा 950 - 1050 CE के बीच निर्मित, खजुराहो मंदिर भारतीय कला के सबसे महत्वपूर्ण नमूनों में से एक हैं। हिंदू और जैन मंदिरों के इन सेटों को आकार लेने में लगभग सौ साल लगे। मूल रूप से 85 मंदिरों का एक संग्रह, संख्या 25 तक नीचे आ गई है। एक यूनेस्को विश्व विरासत स्थल, मंदिर परिसर को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है: पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी। पश्चिमी समूह में अधिकांश मंदिर हैं, पूर्वी में नक्काशीदार जैन मंदिर हैं, जबकि दक्षिणी समूह में केवल कुछ मंदिर हैं। पूर्वी समूह के मंदिरों में जैन मंदिर चंदेल शासन के दौरान क्षेत्र में फलते-फूलते जैन धर्म के लिए बनाए गए थे। पश्चिमी और दक्षिणी भाग के मंदिर विभिन्न हिंदू देवी-देवताओं को समर्पित हैं। इनमें से आठ मंदिर विष्णु को समर्पित हैं, छह शिव को, और एक गणेश और सूर्य को जबकि तीन जैन तीर्थंकरों को हैं। कंदरिया महादेव मंदिर उन सभी मंदिरों में सबसे बड़ा है, जो बने हुए हैं।
इतिहास[संपादित करें]
खजुराहो का इतिहास लगभग एक हजार साल पुराना है।(950 से 1050 ईसवी में निर्मित) अपने क्षेत्र में खजुराहो की सबसे पुरानी ज्ञात शक्ति वत्स थी। क्षेत्र में उनके उत्तराधिकारियों में, सुंग, कुषाण, पद्मावती के नागा, वाकाटक वंश, गुप्त, पुष्यभूति,मौर्य,गुर्जर-प्रतिहार राजवंश और चन्देल राजवंश शामिल थे। यह विशेष रूप से गुप्त काल के दौरान था कि इस क्षेत्र में वास्तुकला और कला का विकास शुरू हुआ, हालांकि उनके उत्तराधिकारियों ने कलात्मक परंपरा जारी रखी।[1] य शहर चन्देल साम्राज्य की प्रथम राजधानी था। चन्देल वंश और खजुराहो के संस्थापक चन्द्रवर्मन थे। चन्द्रवर्मन मध्यकाल में बुंदेलखंड में शासन करने वाले [ धनगर]] राजा थे। वे अपने आप को चन्द्रवंशी मानते थे। चंदेल राजाओं ने दसवीं से बारहवी शताब्दी तक मध्य भारत में शासन किया। खजुराहो के मंदिरों का निर्माण 950 ईसवीं से 1050 ईसवीं के बीच इन्हीं चन्देल राजाओं द्वारा किया गया।[2] मंदिरों के निर्माण के बाद चन्देलो ने अपनी राजधानी महोबा स्थानांतरित कर दी। लेकिन इसके बाद भी खजुराहो का महत्व बना रहा।
मध्यकाल के विश्व प्रसिद्ध दरबारी कवि चंदबरदाई ने पृथ्वीराज रासो के महोबा खंड में चन्देल की उत्पत्ति का वर्णन किया है। उन्होंने लिखा है, कि काशी के राजपंडित की पुत्री हेमवती अपूर्व सौंदर्य की स्वामिनी थी। एक दिन वह गर्मियों की रात में कमल-पुष्पों से भरे हुए तालाब में स्नान कर रही थी। उसकी सुंदरता देखकर भगवान चन्द्र उन पर मोहित हो गए। वे मानव रूप धारण कर धरती पर आ गए और हेमवती का हरण कर लिया। दुर्भाग्य से हेमवती विधवा थी। वह एक बच्चे की मां थी। उन्होंने चन्द्रदेव पर अपना जीवन नष्ट करने और चरित्र हनन का आरोप लगाया।
अपनी गलती के पश्चाताप के लिए चन्द्र देव ने हेमवती को वचन दिया कि वह एक वीर पुत्र की मां बनेगी। चन्द्रदेव ने कहा कि वह अपने पुत्र को खजूरपुरा ले जाए। उन्होंने कहा कि वह एक महान राजा बनेगा। राजा बनने पर वह बाग और झीलों से घिरे हुए अनेक मंदिरों का निर्माण करवाएगा। चन्द्रदेव ने हेमवती से कहा कि राजा बनने पर तुम्हारा पुत्र एक विशाल यज्ञ का आयोजन करेगा, जिससे तुम्हारे सारे पाप धुल जाएंगे। चन्द्रदेव के निर्देशों का पालन कर हेमवती ने पुत्र को जन्म देने के लिए अपना घर छोड़ दिया और एक छोटे-से गांव में पुत्र को जन्म दिया।
हेमवती का पुत्र चन्द्रवर्मन अपने पिता के समान तेजस्वी, बहादुर और शक्तिशाली था। सोलह साल की उम्र में वह बिना हथियार के शेर या बाघ को मार सकता था। पुत्र की असाधारण वीरता को देखकर हेमवती ने चन्द्रदेव की आराधना की जिन्होंने चन्द्रवर्मन को पारस पत्थर भेंट किया और उसे खजुराहो का राजा बनाया। पारस पत्थर से लोहे को सोने में बदला जा सकता था।
चन्द्रवर्मन ने लगातार कई युद्धों में शानदार विजय प्राप्त की। उसने कालिंजर का विशाल किला बनवाया। मां के कहने पर चन्द्रवर्मन ने तालाबों और उद्यानों से आच्छादित खजुराहो में 85 अद्वितीय मंदिरों का निर्माण करवाया और एक यज्ञ का आयोजन किया जिसने हेमवती को पापमुक्त कर दिया। चन्द्रवर्मन और उसके उत्तराधिकारियों ने खजुराहो में अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया।
दर्शनीय स्थल[संपादित करें]
पश्चिमी समूह[संपादित करें]
जब ब्रिटिश इंजीनियर टी एस बर्ट ने खजुराहो के मंदिरों की खोज की है, तब से मंदिरों के एक विशाल समूह को 'पश्चिमी समूह' के नाम से जाना जाता है। यह खजुराहो के सबसे आकर्षक स्थानों में से एक है। इस स्थान को युनेस्को ने 1986 में विश्व विरासत की सूची में शामिल भी किया है। इसका मतलब यह हुआ, कि अब सारा विश्व इसकी मरम्मत और देखभाल के लिए उत्तरदायी होगा। शिवसागर के नजदीक स्थित इन पश्चिम समूह के मंदिरों के दर्शन के साथ अपनी यात्रा शुरू करनी चाहिए। एक ऑडियो हैडसेट 50 रूपये में टिकट बूथ से 500 रूपये जमा करके प्राप्त किया जा सकता है।(वर्तमान में कुछ नियमों में बदलाव हो सकता है)
इसके अलावा दो सौ रूपये से तीन रूपये के बीच आधे या पूरे दिन में चार लोगों के लिए गाइड सेवाएं भी ली जा सकती हैं। खजुराहो को साइकिल के माध्यम से अच्छी तरह देखा जा सकता है। यह साइकिलें 20 रूपये प्रति घंटे की दर से पश्चिम समूह के निकट स्टैंड से प्राप्त की जा सकती है।
इस परिसर के विशाल मंदिरों की बहुत ज्यादा सजावट की गई है। यह सजावट यहां के शासकों की संपन्नता और शक्ति को प्रकट करती है। इतिहासकारों का मत है, कि इनमें हिन्दू देवकुलों के प्रति भक्ति भाव दर्शाया गया है। देवकुलों के रूप में या तो शिव या विष्णु को दर्शाया गया है। इस परिसर में स्थित लक्ष्मण मंदिर उच्च कोटि का मंदिर है। इसमें भगवान विष्णु को बैकुंठम के समान बैठा हुआ दिखाया गया है। चार फुट ऊंची विष्णु की इस मूर्ति में तीन सिर हैं। ये सिर मनुष्य, सिंह और वराह के रूप में दर्शाए गए हैं। कहा जाता है, कि कश्मीर के चम्बा क्षेत्र से इसे मंगवाया गया था। इसके तल के बाएं हिस्से में आमलोगों के प्रतिदिन के जीवन के क्रियाकलापों, कूच करती हुई सेना, घरेलू जीवन तथा नृतकों को दिखाया गया है।
मंदिर के प्लेटफार्म की चार सहायक वेदियां हैं। 954 ईसवीं में बने इस मंदिर का संबंध तांत्रिक संप्रदाय से है। इसका अग्रभाग दो प्रकार की मूर्तिकलाओं से सजा है जिसके मध्य खंड में मिथुन या आलिंगन करते हुए दंपत्तियों को दर्शाता है। मंदिर के सामने दो लघु वेदियां हैं। एक देवी और दूसरा वराह देव को समर्पित है। विशाल वराह की आकृति पीले पत्थर की चट्टान के एकल खंड में बनी है।
लक्ष्मी मंदिर[संपादित करें]
लक्ष्मी मंदिर, लक्ष्मण मंदिर के सामने बना है।
वराह मंदिर[संपादित करें]
लक्ष्मण मंदिर[संपादित करें]
कंदरिया महादेव मंदिर[संपादित करें]
कंदरिया महादेव मंदिर पश्चिमी समूह के मंदिरों में विशालतम है। यह अपनी भव्यता और संगीतमयता के कारण प्रसिद्ध है। इस विशाल मंदिर का निर्माण महान चन्देल राजा विद्याधर ने महमूद गजनवी पर अपनी विजय के उपलक्ष्य में किया था। लगभग 1050 ईसवीं में इस मंदिर को बनवाया गया। यह एक शैव मंदिर है। तांत्रिक समुदाय को प्रसन्न करने के लिए इसका निर्माण किया गया था। कंदरिया महादेव मंदिर लगभग 107 फुट ऊंचा है। मकर तोरण इसकी मुख्य विशेषता है। मंदिर के संगमरमरी लिंगम में अत्यधिक ऊर्जावान मिथुन हैं। अलेक्जेंडर कनिंघम के अनुसार यहां सर्वाधिक मिथुनों की आकृतियां हैं। उन्होंने मंदिर के बाहर 646 आकृतियां और भीतर 246 आकृतियों की गणना की थीं।
सिंह मंदिर[संपादित करें]
यह मंदिर कंदरिया महादेव मंदिर और देवी जगदम्बा मंदिर के बीच बना है |
देवी जगदम्बा मंदिर[संपादित करें]
कंदरिया महादेव मंदिर के चबूतरे के उत्तर में जगदम्बा देवी का मंदिर है। जगदम्बा देवी का मंदिर पहले भगवान विष्णु को समर्पित था और इसका निर्माण 1000 से 1025 ईसवीं के बीच किया गया था। सैकड़ों वर्षों पश्चात यहां छतरपुर के महाराजा ने देवी पार्वती की प्रतिमा स्थापित करवाई थी इसी कारण इसे देवी जगदम्बा मंदिर कहते हैं। यहां पर उत्कीर्ण मैथुन मूर्तियों में भावों की गहरी संवेदनशीलता शिल्प की विशेषता है। यह मंदिर शार्दूलों के काल्पनिक चित्रण के लिए प्रसिद्ध है। शार्दूल वह पौराणिक पशु था जिसका शरीर शेर का और सिर तोते, हाथी या वराह का होता था।
सूर्य (चित्रगुप्त) मंदिर[संपादित करें]
खजुराहो में एकमात्र सूर्य मंदिर है जिसका नाम चित्रगुप्त है। चित्रगुप्त मंदिर एक ही चबूतरे पर स्थित चौथा मंदिर है। इसका निर्माण भी विद्याधर के काल में हुआ था। इसमें भगवान सूर्य की सात फुट ऊंची प्रतिमा कवच धारण किए हुए स्थित है। इसमें भगवान सूर्य सात घोड़ों के रथ पर सवार हैं। मंदिर की अन्य विशेषता यह है कि इसमें एक मूर्तिकार को काम करते हुए कुर्सी पर बैठा दिखाया गया है। इसके अलावा एक ग्यारह सिर वाली विष्णु की मूर्ति दक्षिण की दीवार पर स्थापित है।
बगीचे के रास्ते में पूर्व की ओर पार्वती मंदिर स्थित है। यह एक छोटा-सा मंदिर है जो विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर को छतरपुर के महाराजा प्रताप सिंह द्वारा 1843-1847 ईसवीं के बीच बनवाया गया था। इसमें पार्वती की आकृति को गोह पर चढ़ा हुआ दिखाया गया है। पार्वती मंदिर के दायीं तरफ विश्वनाथ मंदिर है जो खजुराहो का विशालतम मंदिर है। यह मंदिर शंकर भगवान से संबंधित है। यह मंदिर राजा धंग द्वारा 999 ईसवीं में बनवाया गया था। चिट्ठियां लिखती अपसराएं, संगीत का कार्यक्रम और एक लिंगम को इस मंदिर में दर्शाया गया है।
- Khajuraho India, Chitragupta Temple, Front View.JPG
सूर्य मंदिर
विश्वनाथ मन्दिर[संपादित करें]
शिव मंदिरों में अत्यंत महत्वपूर्ण विश्वनाम मंदिर का निर्माण काल सन् १००२- १००३ ई. है। पश्चिम समूह की जगती पर स्थित यह मंदिर अति सुंदरों में से एक है। इस मंदिर का नामाकरण शिव के एक और नाम विश्वनाथ पर किया गया है। मंदिर की लंबाई ८९' और चौड़ाई ४५' है। पंचायतन शैली का संधार प्रासाद यह शिव भगवान को समर्पित है। गर्भगृह में शिवलिंग के साथ- साथ गर्भगृह के केंद्र में नंदी पर आरोहित शिव प्रतिमा स्थापित की गयी है।
नन्दी मंदिर[संपादित करें]
नन्दी मंदिर, विश्वनाथ मंदिर के सामने बना है | .
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पार्वती मंदिर[संपादित करें]
प्रकाश एवं ध्वनि कार्यक्रम[संपादित करें]
शाम को इस परिसर में अमिताभ बच्चन की आवाज़ में लाईट एंड साउंड कार्यक्रम प्रद्रर्शित किया जाता है। यह कार्यक्रम खजुराहो के इतिहास को जीवंत कर देता है। इस कार्यक्रम का आनंद उठाने के लिए भारतीय नागरिक से प्रवेश शुल्क ५० रूपये और विदेशियों से २०० रूपये का शुल्क लिया जाता है। सितम्बर से फरवरी के बीच अंग्रेजी में यह कार्यक्रम शाम ७ बजे से ७:५० तक होता है जबकि हिन्दी का कार्यक्रम रात आठ से नौ बजे तक आयोजित किया जाता है। मार्च से अगस्त तक इस कार्यक्रम का समय बदल जाता है। इस अवधि में अंग्रेजी कार्यक्रम शाम ७:३० -८:२० के बीच होता है। हिन्दी भाषा में समय बदलकर ८:४० - ९:३० हो जाता है।[कृपया उद्धरण जोड़ें]
पूर्वी समूह[संपादित करें]
पूर्वी समूह के मंदिरों को दो विषम समूहों में बांटा गया है। जिनकी उपस्थिति आज के गांधी चौक से आरंभ हो जाती है। इस श्रेणी के प्रथम चार मंदिरों का समूह प्राचीन खजुराहो गांव के नजदीक है। दूसरे समूह में जैन मंदिर हैं जो गांव के स्कूल के पीछे स्थित हैं। पुराने गांव के दूसरे छोर पर स्थित घंटाई मंदिर को देखने के साथ यहां के मंदिरों का भ्रमण शुरू किया जा सकता है। नजदीक ही वामन और जायरी मंदिर भी दर्शनीय स्थल हैं। 1050 से 1075 ईसवीं के बीच वामन मंदिर का निर्माण किया गया था। विष्णु के अवतारों में इसकी गणना की जाती है। नजदीक ही जायरी मंदिर हैं जिनका निमार्ण 1075-1100 ईसवीं के बीच माना जाता है। यह मंदिर भी विष्णु भगवान को समर्पित है। इन दोनों मंदिरों के नजदीक ब्रह्मा मंदिर हैं जिसकी स्थापना 925 ईसवीं में हुई थी। इस मंदिर में एक चार मुंह वाला लिंगम है। ब्रह्मा मंदिर का संबंध ब्रह्मा से न होकर शिव से है।
वामन मंदिर[संपादित करें]
जावरी मंदिर[संपादित करें]
- Khajuraho India, Javari Temple, Roof, Photographed on 10-03-2012.JPG
जावरी मंदिर
जैन मंदिर[संपादित करें]
इन मंदिरों का समूह एक कम्पाउंड में स्थित है। जैन मंदिरों को दिगम्बर सम्प्रदाय ने बनवाया था। यह सम्प्रदाय ही इन मंदिरों की देखभाल करता है। इस समूह का सबसे विशाल मंदिर र्तीथकर आदिनाथ को समर्पित है। आदिनाथ मंदिर पार्श्वनाथ मंदिर के उत्तर में स्थित है। जैन समूह का अन्तिम शान्तिनाथ मंदिर ग्यारहवीं शताब्दी में बनवाया गया था। इस मंदिर में यक्ष दंपत्ति की आकर्षक मूर्तियां हैं।
दक्षिणी समूह[संपादित करें]
इस भाग में दो मंदिर हैं। एक भगवान शिव से संबंधित दुलादेव मंदिर है और दूसरा विष्णु से संबंधित है जिसे चतुर्भुज मंदिर कहा जाता है। दुलादेव मंदिर खुद्दर नदी के किनारे स्थित है। इसे 1130 ईसवी में मदनवर्मन द्वारा बनवाया गया था। इस मंदिर में खंडों पर मुंद्रित दृढ़ आकृतियां हैं। चतुर्भुज मंदिर का निर्माण 1100 ईसवीं में किया गया था। इसके गर्भ में 9 फुट ऊंची विष्णु की प्रतिमा को संत के वेश में दिखाया गया है। इस समूह के मंदिर को देखने लिए दोपहर का समय उत्तम माना जाता है। दोपहर में पड़ने वाली सूर्य की रोशनी इसकी मूर्तियों को आकर्षक बनाती है।
चतुर्भुज मंदिर[संपादित करें]
यह मंदिर जटकारा ग्राम से लगभग आधा किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। यह विष्णु मंदिर निरधार प्रकार का है। इसमें अर्धमंडप, मंडप, संकीर्ण अंतराल के साथ- साथ गर्भगृह है। इस मंदिर की योजना सप्ररथ है। इस मंदिर का निर्माणकाल जवारी तथा दुलादेव मंदिर के निर्माणकाल के मध्य माना जाता है। बलुवे पत्थर से निर्मित खजुराहो का यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें मिथुन प्रतिमाओं का सर्वथा अभाव दिखाई देता है। सामान्य रूप से इस मंदिर की शिल्प- कला अवनति का संकेत करती है। मूर्तियों के आभूषण के रेखाकन मात्र हुआ है और इनका सूक्ष्म अंकन अपूर्ण छोड़ दिया है। यहाँ की पशु की प्रतिमाएँ एवं आकृतियाँ अपरिष्कृत तथा अरुचिकर है। अप्सराओं सहित अन्य शिल्प विधान रुढिगत हैं, जिसमें सजीवता और भावाभिव्यक्ति का अभाव माना जाता है। फिर भी, विद्याधरों का अंकन आकर्षक और मन को लुभाने वाली मुद्राओं में किया गया है। इस तरह यह मंदिर अपने शिल्प, सौंदर्य तथा शैलीगत विशेषताओं के आधार पर सबसे बाद में निर्मित दुलादेव के निकट बना माना जाता है।
चतुर्भुज मंदिर के द्वार के शार्दूल सर्पिल प्रकार के हैं। इसमें कुछ सुर सुंदरियाँ अधबनी ही छोड़ दी गयी हैं। मंदिर की अधिकांश अप्सराएँ और कुछ देव दोहरी मेखला धारण किए हुए अंकित किए गए हैं तथा मंदिर की रथिकाओं के अर्धस्तंभ बर्तुलाकार बनाए गए हैं। ये सारी विशेषताएँ मंदिर के परवर्ती निर्माण सूचक हैं।
दुल्हादेव मन्दिर[संपादित करें]
यह मूलतः शिव मंदिर है। इसको कुछ इतिहासकार कुंवरनाथ मंदिर भी कहते हैं। इसका निर्माणकाल लगभग सन् १००० ई. है। मंदिर का आकार ६९ न् ४०' है। यह मंदिर प्रतिमा वर्गीकरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण मंदिर है। निरंधार प्रासाद प्रकृति का यह मंदिर अपनी नींव योजना में समन्वित प्रकृति का है। मंदिर सुंदर प्रतिमाओं से सुसज्जित है। इसमें गंगा की चतुर्भुज प्रतिमा अत्यंत ही सुंदर ढ़ंग से अंकित की गई है। यह प्रतिमा इतनी आकर्षक एवं प्रभावोत्पादक है कि लगता है कि यह अपने आधार से पृथक होकर आकाश में उड़ने का प्रयास कर रही है। मंदिर की भीतरी बाहरी भाग में अनेक प्रतिमाएँ अंकित की गई है, जिनकी भावभंगिमाएँ सौंदर्यमयी, दर्शनीय तथा उद्दीपक है। नारियों, अप्सराओं एवं मिथुन की प्रतिमाएँ, इस तरह अंकित की गई है कि सब अपने अस्तित्व के लिए सजग है। भ्रष्ट मिथुन मोह भंग भी करते हैं, फिर अपनी विशेषता से चौंका भी देते हैं।
इस मंदिर के पत्थरों पर "वसल' नामक कलाकार का नाम अंकित किया हुआ मिला है। मंदिर के वितान गोलाकार तथा स्तंभ अलंकृत हैं और नृत्य करती प्रतिमा एवं सुंदर एवं आकर्षिक हैं। मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग योनि- वेदिका पर स्थापित किया गया है। मंदिर के बाहर मूर्तियाँ तीन पट्टियों पर अंकित की गई हैं। यहाँ हाथी, घोड़े, योद्धा और सामान्य जीवन के अनेकानेक दृश्य प्रस्तुत किये गए हैं। अप्सराओं को इस तरह व्यवस्थित किया गया है कि वे स्वतंत्र, स्वच्छंद एवं निर्बाध जीवन का प्रतीक मालूम पड़ती है।
इस मंदिर की विशेषता यह है कि अप्सरा टोड़ों में अप्साओं को दो- दो, तीन- तीन की टोली में दर्शाया गया है। मंदिर, मंण्डप, महामंडप तथा मुखमंडप युक्त है। मुखमंडप भाग में गणेश और वीरभद्र की प्रतिमाएँ अपनी रशिकाओं में इस प्रकार अंकित की गई है कि झांक रही दिखती है। यहाँ की विद्याधर और अप्सराएँ गतिशील हैं। परंतु सामान्यतः प्रतिमाओं पर अलंकरण का भार अधिक दिखाई देता है। प्रतिमाओं में से कुछ प्रतिमाओं की कलात्मकता दर्शनीय एवं सराहनीय है। अष्टवसु मगरमुखी है। यम तथा नॠत्ति की केश सज्जा परंपराओं से पृथक पंखाकार है।
मंदिर की जगती ५' उँची है। जगती को सुंदर एवं दर्शनीय बनाया गया है। जंघा पर प्रतिमाओं की पंक्तियाँ स्थापित की गई हैं। प्रस्तर पर पत्रक सज्जा भी है। देवी- देवता, दिग्पाल तथा अप्सराएँ छज्जा पर मध्य पंक्ति देव तथा मानव युग्लों एवं मिथुन से सजाया गया है। भद्रों के छज्जों पर रथिकाएँ हैं। वहाँ देव प्रतिमाएँ हैं। दक्षिणी भद्र के कक्ष- कूट पर गुरु- शिष्य की प्रतिमा अंकित की गई है।
शिखर सप्तरथ मूल मंजरी युक्त है। यह भूमि आम्लकों से सुसज्जित किया गया है। उरु: श्रृंगों में से दो सप्तरथ एक पंच रथ प्रकृति का है। शिखर के प्रतिरथों पर श्रृंग हैं, किनारे की नंदिकाओं पर दो- दो श्रृंग हैं तथा प्रत्येक करणरथ पर तीन- तीन श्रृंग हैं। श्रृंग सम आकार के हैं। अंतराल भाग का पूर्वी मुख का उग्रभाग सुरक्षित है। जिसपर नौं रथिकाएँ बनाई गई हैं, जिनपर नीचे से ऊपर की ओर उद्गमों की चार पंक्तियाँ हैं। आठ रथिकाओं पर शिव- पार्वती की प्रतिमाएँ अंकित की गई हैं। स्तंभ शाखा पर तीन रथिकाएँ हैं, जिनपर शिव प्रतिमाएँ अंकित की गई हैं, जो परंपरा के अनुसार ब्रह्मा और विष्णु से घिरी हैं। भूत- नायक प्रतिमा शिव प्रतिमाओं के नीचे हैं, जबकि विश्रांति भाग में नवग्रह प्रतिमाएँ खड़ी मुद्रा में हैं। इस स्तंभ शाखा पर जल देवियाँ त्रिभंगी मुद्राओं में है। मगर और कछुआ भी यहाँ सुंदर प्रकार से अंकित किया गया है। मुख प्रतिमाएँ गंगा- यमुना की प्रतीक मानी जाती है। शैव प्रतिहार प्रतिमाओं में एक प्रतिमा महाकाल भी है, जो खप्पर युक्त है।
मंदिर के बाहरी भाग की रथिकाओं में दक्षिणी मुख पर नृत्य मुद्रा में छः भुजा युक्त भैरव, बारह भुजायुक्त शिव तथा एक अन्य रथिका में त्रिमुखी दश भुजायुक्त शिव प्रतिमा है। इसकी दीवार पर बारह भुजा युक्त नटराज, चतुर्भुज, हरिहर, उत्तरी मुख पर बारह भुजा युक्त शिव, अष्ट भुजायुक्त विष्णु, दश भुजा युक्त चौमुंडा, चतुर्भुज विष्णु गजेंद्रमोक्ष रूप में तथा शिव पार्वती युग्म मुद्रा में है। पश्चिमी मुख पर चतुर्भुज नग्न नॠति, वरुण के अतिरिकत वृषभमुखी वसु की दो प्रतिमाएँ हैं। उत्तरी मुख पर वायु की भग्न प्रतिमा के अतिरिक्त वृषभमुखी वसु की तीन तथा चतुर्भुज कुबेर एवं ईशान की एक- एक प्रतिमा अंकित की गई है।
संग्रहालय[संपादित करें]
खजुराहो के विशाल मंदिरों को टेड़ी गर्दन से देखने के बाद तीन संग्रहालयों को देखा जा सकता है। वेस्टर्न ग्रुप के विपरीत स्थित भारतीय पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में मूर्तियों को अपनी आंख के स्तर पर देखा जा सकता है। पुरातत्व विभाग के इस संग्रहालय को चार विशाल गृहों में विभाजित किया गया है जिनमें शैव, वैष्णव, जैन और 100 से अधिक विभिन्न आकारों की मूर्तियां हैं। संग्रहालय में विशाल मूर्तियों के समूह को काम करते हुए दिखाया गया है। इसमें विष्णु की प्रतिमा को मुंह पर अंगुली रखे चुप रहने के भाव के साथ दिखाया गया है। संग्रहालय में चार पैरों वाले शिव की भी एक सुन्दर मूर्ति है।
जैन संग्रहालय में लगभग 100 जैन मूर्तियां हैं। जबकि ट्राईबल और फॉक के राज्य संग्रहालय में जनजाति समूहों द्वारा निर्मित पक्की मिट्टी की कलाकृतियां, धातु शिल्प, लकड़ी शिल्प, पेंटिंग, आभूषण, मुखौटों और टेटुओं को दर्शाया गया है।
भारतीय पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में प्रवेश शुल्क 5 रूपये रखा गया है। वेस्टर्न ग्रुप के टिकट के साथ इस संग्रहालय में मुफ्त प्रवेश किया जा सकता है। सुबह दस से शाम साढे चार बजे तक यह संग्रहालय खुला रहता है। शुक्रवार को यह संग्रहालय बन्द रहता है। शुल्क: जैन संग्रहालय सुबह सात बजे से शाम छ: बजे तक खुला रहता है और इसमें कोई प्रवेश शुल्क नहीं लिया जाता।
राज्य संग्रहालय में शुल्क के रूप में 20 रूपये लिए जाते हैं। यह दोपहर बारह बजे से शाम आठ बजे तक खुला रहता है। सोमवार और सार्वजनिक अवकाश वाले दिन यह बन्द रहता है।
निकटवर्ती दर्शनीय स्थल[संपादित करें]
खजुराहो के आसपास अनेक ऐसे स्थान हैं जो पर्यटन और भ्रमण के लिहाज से काफी प्रसिद्ध हैं।
कालिंजर और अजयगढ़ का दुर्ग[संपादित करें]
मैदानी इलाकों से थोड़ा आगे बढ़कर विन्ध्य के पहाड़ी हिस्सों में अजयगढ़ और कालिंजर के किले हैं। इन किलों का संबंध चन्देल वंश के उत्थान और पतन से है। 105 किलोमीटर दूर स्थित कालिंजर का किला है। यह एक प्राचीन किला है। प्राचीन काल में यह शिव भक्तों की कुटी थी। इसे महाभारत और पुराणों के पवित्र स्थलों की सूची में शामिल किया गया था। इस किले का नामकरण शिव के विनाशकारी रूप काल से हुआ जो सभी चीजों का जर अर्थात पतन करते हैं। काल और जर को मिलाकर कालिंजर बना। इतिहासकारों का मत है कि यह किला ईसा पूर्व का है। महमूद गजनवी के हमले के बाद इतिहासकारों का ध्यान इस किले की ओर गया। 108 फुट ऊंचे इस किले में प्रवेश के लिए अलग-अलग शैलियों के सात दरवाजों को पार करना पड़ता है। इसके भीतर आश्चर्यचकित कर देने वाली पत्थर की गुफाएं हैं। चोटी पर भारत के इतिहास की याद दिलाती हिन्दू और मुस्लिम शैली की इमारतें हैं। कहा जाता है कि कालिंजर के भूमितल से पतालगंगा नामक नदी बहती है जो इसकी गुफाओं को जीवंत बनाती है। बहुत से बेशकीमती पत्थर यहां बिखर पड़े हैं।
खजुराहो से 80 किलोमीटर दूर अजयगढ़ का दुर्ग है। यह दुर्ग चन्देल शासन के अर्द्धकाल में बहुत महत्वपूर्ण था। विन्ध्य की पहाड़ियों की चोटी पर यह किला स्थित है। किले में दो प्रवेश द्वार हैं। किले के उत्तर में एक दरवाजा और दक्षिण-पूर्व में तरहौनी द्वार है। दरवाजों तक पहुंचने के लिए चट्टान पर 45 मिनट की खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। किले के बीचों बीच अजय पलका तालाव नामक झील है। झील के अन्त में जैन मंदिरों के अवशेष बिखर पड़े हैं। झील के किनारे कुछ प्राचीन काल के स्थापित मंदिरों को भी देखा जा सकता है। किले की प्रमुख विशेषता ऐसे तीन मंदिर हैं जिन्हें अंकगणितीय विधि से सजाया गया है। भारतीय पुरातत्व विभाग ने कुछ समय पहले इस किले की देखभाल का जिम्मा उठाया है।
खरीददारी[संपादित करें]
खजुराहो में अनेक छोटी-छोटी दुकानें हैं जो लोहे, तांबे और पत्थर के गहने बेचते हैं। यहां विशेष रूप से पत्थरों और धातुओं पर उकेरी गई कामसूत्र की भंगिमाएं प्रसिद्ध हैं। इन्हें यहां की दुकानों से खरीदा जा सकता है। मृगनयनी सरकारी एम्पोरियम के शटर अधिकांश समय गिरे रहते हैं। दिसम्बर में राज्य के ट्राईबल और फॉक संग्रहालय में कारीगरों की एक कार्यशाला आयोजित की जाती है। कार्यशाला से यहां के कारीगर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। उनकी अद्भुत कला के नमूनों को यहां से खरीदा जा सकता है।
आवागमन[संपादित करें]
खजुराहो जाने के लिए अपनी सुविधा के अनुसार वायु, रेल या सड़क परिवहन को अपनाया जा सकता है।
वायु मार्ग[संपादित करें]
खजुराहो वायु मार्ग द्वारा दिल्ली, वाराणसी, आगरा और काठमांडु से जुड़ा हुआ हैं। खजुराहो एयरपोर्ट, शहर से तीन किलोमीटर दूर है।
रेल मार्ग[संपादित करें]
खजुराहो रेलवे स्टेशन से दिल्ली,आगरा,जयपुर,उदयपुर,वाराणसी,भोपाल, इन्दौर,उज्जैन के लिए रेल सेवा उपलब्ध है। दिल्ली और मुम्बई से आने वाले पर्यटकों के लिए झांसी भी सुविधाजनक रेलवे स्टेशन है। जबकि चेन्नई और वाराणसी से आने वालों के लिए सतना अधिक सुविधाजनक होगा। नजदीकी और सुविधाजनक रेलवे स्टेशन से टैक्सी या बस के माध्यम से खजुराहो पहुंचा जा सकता है। सड़कों की स्थिति बहुत अच्छी है।
सड़क मार्ग[संपादित करें]
खजुराहो महोबा, हरपालपुर, छतरपुर, सतना, पन्ना, झांसी, आगरा, ग्वालियर, सागर, जबलपुर, इंदौर, भोपाल, वाराणसी और इलाहाबाद से नियमित और सीधा जुड़ा हुआ है। दिल्ली के राष्ट्रीय राजमार्ग २ से पलवल, कौसी कला और मथुरा होते हुए आगरा पहुंचा जा सकता है। राष्ट्रीय राजमार्ग ३ से धौलपुर और मुरैना के रास्ते ग्वालियर जाया जा सकता है। उसके बाद राष्ट्रीय राजमार्ग ७५ से झांसी, मउरानीपुर और छतरपुर से होते हुए बमीठा और वहां से राज्य राजमार्ग की सड़क से खजुराहो पहुंचा जा सकता है। .[3][4]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ Schellinger, Paul; Salkin, Robert, संपा॰ (1996). International Dictionary of Historic Places, Volume 5: Asia and Oceania. Chicago: Fitzroy Dearborn Publishers. पपृ॰ 468–469. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1-884964-04-4.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 16 नवंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मई 2009.
- ↑ "Khajuraho airport equipped with infrastructure to boost tourism: Union minister Ganpathi Raju". Pradesh18.com. Press Trust of India. 23 January 2016. मूल से 12 मार्च 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 January 2017.
- ↑ "Khajuraho Departures". मूल से 24 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 मार्च 2020.
अन्य पठनीय सामग्री[संपादित करें]
- Project Love Temple: machines, myths and miracles
- Phani Kant Mishra, Khajuraho: With Latest Discoveries, Sundeep Prakashan (2001) ISBN 81-7574-101-5
- Devangana Desai, The Religious Imagery of Khajuraho, Franco-Indian Research P. Ltd. (1996) ISBN 81-900184-1-8
- Devangana Desai, Khajuraho, Oxford University Press Paperback (Sixth impression 2005) ISBN 978-0-19-565643-5