क्रॅसि
क्रॅसि (पोलिश: Kresy) पूर्वी यूरोप का एक क्षेत्र है जो द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले पोलैंड का पूर्वी हिस्सा हुआ करता था लेकिन जिसे उस देश से अलग करके सोवियत संघ का भाग बना दिया गया। १९९१ में सोवियत संघ के टूटने के बाद अब यह इलाक़ा पश्चिमी युक्रेन, पश्चिमी बेलारूस और पूर्वी लिथुएनिया में सम्मिलित है।
नाम का अर्थ और उच्चारण
[संपादित करें]पोलिश भाषा में 'क्रॅसि' का अर्थ 'सरहदी क्षेत्र' होता है। इसमें 'ऍ' की मात्रा और उच्चारण पर ध्यान दें। यह 'ए' (main, मेन) और 'ऐ' (man, मैन) दोनों के उच्चारण से अलग है और अंग्रेज़ी के 'मॅन' (men) शब्द में आनी वाली ध्वनि से मिलता-जुलता है।
इतिहास
[संपादित करें]क्रॅसि अपने इतिहास में बहुत दफ़ा अलग-अलग राष्ट्रों के क़ब्ज़े में जा चुका है। इसमें गहरा पोलिश प्रभाव रहा है और यहाँ बहुत से पोलिश लोग रहा करते थे हालांकि वे कभी भी इस पूरे क्षेत्र में बहुसंख्यक समुदाय नहीं बने। अलग-अलग समयों पर इसके पूरे या कुछ क्षेत्र पर कीवियाई रूस, पोलैंड, रूसी साम्राज्य, जर्मनी, सोवियत संघ, युक्रेन, बेलारूस और लिथुएनिया का भाग रहा है।
शुरूआती पोलिश प्रभाव और रूसी साम्राज्य
[संपादित करें]सन् १०१८ में उस समय के पोलिश राजा बोलेस्वाफ़ प्रथम च्रोब्री (Bolesław I Chrobry) ने पूर्व की ओर कूच करके कीवियाई रूस राज्य पर हमला बोल दिया। १३४० में क्रॅसि का और भी इलाक़ा पोलिश क़ब्ज़े में आ गया और पोलिश लोग यहाँ जाकर बसने लगे। इस क्षेत्र में आबादी बहुत कम घनी थी और स्थानीय लिथुएनी और रुथेनी लोगों को पोलिश नियंत्रण स्वीकारना पड़ा। १५६९ में 'लूबलिन की संधि' नामक घोषणा के अंतर्गत पोलिश-लिथुएनी राष्ट्रमंडल (Polish-Lithuanian Commonwealth) स्थापित हुआ। इस बड़े साम्राज्य के बनाने के बाद बहुत से पोलिश लोग बड़ी मात्रा में क्रॅसि में जाकर बस गए। स्थानीय ग़ैर-पोलिश लोगों के उच्च वर्गों ने भी मजबूरन पोलिश संस्कृति अपनानी शुरू कर दी। फिर भी इन क्षेत्रों में पोलिश लोग अल्पसंख्यक समुदाय ही थे। १७७२ में पूर्व से शक्तिशाली रूसी साम्राज्य ने पोलिश-लिथुएनी राष्ट्रमंडल के पूर्वी आधे भाग पर क़ब्ज़ा कर लिया। हालांकि इस इलाक़ें में पोलिश लोग बहुसंख्यक नहीं थे, यह क्षेत्र पोलिश संस्कृति और राष्ट्रीय मान-मर्यादा में बहुत अहम हो चुका था। पोलिश लोगों ने इसे 'चोरी की गई धरती' (Ziemie Zabrane, Stolen Lands) बुलाना शुरू कर दिया और इसे वापस लेने की तीव्र इच्छा पोलिश मानसिकता में पनपने लगी। रूस इसे 'पश्चिमी क्राय' बुलाता था। यहाँ रूस के ख़िलाफ़ विद्रोह हुए जिन्हें ज़ोर से कुचला गया और बहुत से स्थानीय पोलिश निवासियों को साइबेरिया भेज दिया गया।
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद
[संपादित करें]१९१९ में प्रथम विश्वयुद्ध ख़त्म हुआ। रूसी साम्राज्य की जगह सोवियत संघ एक नए देश के रूप में उपस्थित हुआ। पोलैंड में एक नए राष्ट्र का गठन हुआ, जिसे ऐतिहासिक रूप से 'द्वितीय पोलिश गणतंत्र' (Second Polish Republic) कहा जाता है। ब्रिटिश विदेश विभाग ने पूर्वी यूरोप में शांति बनाए रखने के लिए सोवियत संघ और पोलैंड के बीच एक सीमा का प्रस्ताव रखा। इसका नाम भारत के भूतपूर्व वाइसरॉय लार्ड कर्ज़न पर रखा गया और इसे 'कर्ज़न सीमा' (Curzon Line) बुलाया जाने लगा। लेकिन १९१८ से १९२२ के काल में पोलैंड ने तीन जंगें लड़ी - पोलिश-यूक्रेनी युद्ध, पोलिश-सोवियत युद्ध और पोलिश-लिथुएनी युद्ध - और तीनों ही जीत गया। कर्ज़न सीमा से पूर्व में स्थित क्रॅसि क्षेत्र पर पोलैंड का क़ब्ज़ा हो गया। पोलैंड ने यहाँ पोलिश लोग बसाने शुरू कर दिए जिस से स्थानीय युक्रेनियों के साथ बहुत झड़पें होती थीं जिन्हें पोलैंड कुचलता गया।
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान
[संपादित करें]१९३३ में पोलैंड से पश्चिम में स्थित जर्मनी में नात्ज़ी (Nazi) सरकार आ गई जो पूर्व की तरफ़ विस्तार करना चाहती थी। उन्होंने सोवियत संघ के साथ १९३९ में एक गुप्त समझौता किया जिसके अंतर्गत पोलैंड को उन देशों के बीच बांट लेने की आपसी सांठ-गांठ हो गई। १७ सितम्बर १९३९ को सोवियत संघ ने क्रॅसि पर क़ब्ज़ा कर लिया। क्रॅसि के पोलिश समुदाय के एक बड़े भाग को ज़बरदस्ती सुदूर पूर्व साइबेरिया और कज़ाख़स्तान भेज दिया गया। यूरोप में द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ गया और जर्मनी ने आगे चलकर सोवियत संघ पर धावा बोलकर क्रॅसि और अन्य इलाक़ों पर नियंत्रण कर लिया। १९४३-१९४४ में युक्रेनी विद्रोही सेना ने युक्रेनी किसानों की मदद से दक्षिण-पूर्वी क्रॅसि में ५० हज़ार से १ लाख के बीच पोलिश लोगों का क़त्ल किया। १९४४ तक जर्मनी सोवियत संघ से हारने लगा और पूरा क्रॅसि फिर से वापस सोवियत क़ब्ज़े में आ गया। १९४३ के तेहरान सम्मलेन में अमेरिका, ब्रिटेन और सोवियत संघ में समझौता हो चुका था कि युद्ध के बाद क्रॅसि सोवियत संघ को दे दिया जाएगा। लन्दन में टिकी हुई पोलैंड की निर्वासित सरकार (Polish government in exile) ने इसका विरोध किया लेकिन उनकी किसी ने न सुनी।
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद
[संपादित करें]१९४५ में द्वितीय विश्वयुद्ध के समाप्त होने पर पोलिश साम्यवादी (कोम्युनिस्ट) सरकार क्रॅसि से अधिकाँश पोलिश लोगों को हटाने के लिए रज़ामंद हो गई। पोलैंड को जर्मनी के कुछ पूर्वी इलाक़े दे दिए गए थे और क्रॅसि से समूचे गाँव-बस्तियों के पोलिश लोग वहाँ रेल के ज़रिये ले जाए गए। उदाहरण के लिए क्रॅसि का ल्वुफ़ (Lwów) शहर 'लविव' (Lviv) के नाम से युक्रेन का भाग बन गया (जो सोवियत संघ का हिस्सा था)। पश्चिम में जर्मनी का ब्रेस्लाऊ (Breslau) शहर व्रातस्वाफ़ (Wrocław) के नाम से पोलैंड का भाग बन गया। ल्वुफ़/लविव के बहुत से पोलिश लोगों को वहाँ से हटाकर व्रातस्वाफ़/ब्रेस्लाऊ में बसाया गया। १९४४-४६ काल में १० लाख से ज़्यादा पोलिश लोग क्रॅसि से हटाकर इन नए पश्चिमी इलाक़ों में बसाए गए। पोलिश लोग अपनी सरकार के चुपचाप सोवियत संघ को क्रॅसि दे देने से बहुत नाराज़ हुए और साम्यवादियों को देशद्रोही समझने लगे। जब तक साम्यवादी सत्ता में रहे तब तक वह सोवियत संघ पर निर्भर थे और पोलैंड में खुलकर क्रॅसि वापस होने की मांग को सख्ती से दबाया जाता रहा।[1] १९८९ में साम्यवादी सत्ता खो बैठे और तब से पोलैंड में क्रॅसि को लेकर बहुत साहित्य प्रकाशित हुआ है। कई पोलिश समीक्षक इस इलाक़े के खोए जाने पर दुःख प्रकट करते हैं।[2]
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ People on the Move: Forced Population Movements in Europe in the Second World War and Its Aftermath, Berg, 2008, ISBN 9781845208240, ... Roman Graczyk was obviously right in his comment that: in the Communist days, to come from the 'Kresy' was nearly equivalent to opposing the system. Anyone who exclaimed with pride 'I am from Lwow' was in a way challenging the the Communist authorities ... The 'Kresy' functioned in collective consciousness nearly as a cradle of true 'Polishness', free of Communist depravation ...
- ↑ Fodor's Poland, Fodor's Travel Publications, Random House Digital, Inc., 2007, ISBN 9781400017515, ... The concept of the Eastern borderlands, or Kresy, is very much alive in the Polish psyche, and yet it is not easy to define the region in concrete. physical. and geographical terms ...