कोलाज़ेन इंडक्सन थेरापी

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कोलाज़ेन इंडक्सन थेरापी (Collagen induction therapy) या माइक्रोनिडलिंग एक ऐसी सौंदर्यशास्त्रीय चिकित्सा पद्धति है जिसके तहत त्वचा में जीवाणुहीन किए गये सुई की मदद से छोटे-छोटे छिद्र किए जाते है। इस प्रक्रिया के तहत त्वचा को पहले सुन्न किया जाता है और फिर सुईओं से भरा हुआ यंत्र त्वचा के ऊपर फिराया जाता है। सुई अंतरत्वक (डरमिस) की गहराई के अनुरूप अंदर तक डाली जाती है।

सुई के अंदर जाने से त्वचा को आघात पहुँचता है और आहत त्वचा फाइब्रोबलस्ट्स को संकेत भेज कर छतिग्रस्त हो गये कोलाज़ेन की जगह नये कोलाज़ेन के निर्माण के लिए प्रेरित करती है।

नये कोलाज़ेन की उत्पत्ति से त्वचा की रंगत और इसके खिचाँव में बेहतरी आती है साथ ही साथ पुराने दाग, धब्बे और रोमकूपों के आकार पर भी फ़र्क पड़ता है। [1]

इतिहास[संपादित करें]

इस प्रक्रिया के सर्वप्रथम प्रणेता फ्रांसीसी डॉक्टर माइकल पिस्तोर थे जिन्हे मेसोतेरापी के अविष्कार का भी श्रेय दिया जाता है। ११९० में मंट्रियाल, कनाडा के काया चिकित्सक आंद्रे कामीरांड ने बिना इंक के टॅटू गन्स का उपयोग करते हुए शल्य चिकित्सा के बाद होने वाले निशान को मिटाने का कार्य किया।

उपचार पद्धति[संपादित करें]

इस प्रक्रिया के दौरान रोगी को सहज बनाए रखने के लिए थोड़े समय तक असर करने वाली निश्चेतक क्रीम लगाई जाती है। रोगी की अवस्था और आवश्यकता के अनुसार एकाधिक बार यह प्रक्रिया करनी पड़ सकती है। मध्यम आकार के मुँहासे के धब्बों को दूर करने में तीन से चार माइक्रोनीडलिंग बार करनी पड़ सकती है।

जबकि गहरे दाग और शल्य चिकित्सा के निशान मिटाने में पाँच से छह प्रयास आवश्यक होते हैं। दो उपचारों के मध्य ४ से ६ सप्ताह का अंतर होना चाहिए। इससे संबंधित कई चिकित्सक इसका असर बनाए रखने के लिए ६ से १२ महीने के अंतराल पर दुबारा माइक्रोनीडलिंग कराने की सलाह देते हैं। [2]

विशेष लाभ[संपादित करें]

यह एक ऐसी तकनीक है जिसके सन्दर्भ में विशेष शोध अभी चल ही रही है फिर भी इसका व्यापक रूप से उपयोग शुरू हो गया है। यह प्रक्रिया आम तौर पर लेज़र और आई. पी. एल. उपचार के फोटोरेज़ूनीवेसन के सिद्धांत पर आधारित है। फ़र्क यह है क़ि माइक्रोनीडलिंग में असली शारीरिक आघात पर ज़ोर दिया जाता है।

यह पद्धति सुरक्षित रूप से त्वचा के उपचार की सरल और तेज उपाय के रूप में लोकप्रिय हो रही है। इस प्रक्रिया को बिना हानि के बार-बार दोहराया जा सकता है और यह उन क्षेत्रों के लिए भी अच्छी मानी जाती है जहाँ लेज़र उपचार आसानी से उपलब्ध नहीं होता।

विशिष्ट यंत्र[संपादित करें]

इस पद्धति में आम तौर पर एक विशेष तरह का यंत्र उपयोग किया जाता है जो एक हस्तचालित बेलानाकार यंत्र अथवा एक स्वचालित मुहर के जैसा यंत्र हो सकता है। स्वचालित यंत्र आमतौर पर एक मोटर द्वारा चालित होते हैं और इनकी आवृति (स्टॅंप्स/ सेकंड) और सुई की गहराई को नियंत्रित किया जा सकता है।

इस तरह के पेन बाजार में कई ब्रांड नाम जैसे कि स्किनपेन, माइक्रो पेन और इंनो पेन के नाम से उपलब्ध हैं। हाल के समय में बाजार में व्यास और लंबाई की भिन्नता वाले कई तरह के यंत्र उपलब्ध हो गये हैं जिनकी मुटाई ०.३ से लेकर ५ मिली मीटर तक होती है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  2. "डरमारोलर". डॉबातुल.कॉम. मूल से 16 मई 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १५ जून २०१६.