साम्राज्ञी कोमियो

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साम्राज्ञी कोमियो का रायुरायोक्यो शिनसाय द्वारा निर्मित चित्र
साम्राज्ञी कोमियो के सुलेख और उनके हस्ताक्षर का एक उदाहरण — गैकी-रौन (c. 756).

साम्राज्ञी कोमियो (光明皇后?) (701–760) बौद्ध साधिका एवं जापान के नारा दौर के सम्राट शोम्यू (701–756) की पत्नी थीं।[1]

आरंभिक जीवन[संपादित करें]

साम्राज्ञी कोमियो कंजन शिमोमुरा द्वारा (1897)

उनके पिता फूजीवारा नो फूहितो फूजीवारा राजवंश के सदस्य थे।[2] उनकी माँ 'अगाता इनूकाई नो मिचियो' थीं। वे तीसरी बेटी थीं औ्र असूकेबहाइम (安宿媛), कोमियोशी (光明子), तथा तोसंजो (藤三娘), के नाम से भी जानी जाती थीं।

716 ई. में, कोमियो ने भावी सम्राट शोम्यु से विवाह किया जो उस समय युवराज थे। दो वर्ष बाद उन्होंने राजकुमारी एब को जन्म दिया जिन्होंने बाद में साम्राज्ञी कोकेन तथा साम्राज्ञी शोतकु के नाम से शासन किया। 727 ई. में उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया जिसे तुरंत ही युवराज घोषित कर दिया गया किंतु नवजात अवस्था में ही उसकी मृत्यु हो गई। इस संबंध में यह अफवाह फैल गई की राजकुमार नगया ने नवजात राजकुमार पर काले जादू का प्रयोग किया था जिसकी प्रतिक्रिया स्वरूप नगया को आत्महत्या करने के लिए बाध्य कर दिया गया। [3]

७२९ ई. में कोमियो को महारानी अर्थात् "कोगो" घोषित किया गया जो साम्राज्ञी बनने से पूर्व की स्तिति थी। [4] महारानी के लिए एक अतिरिक्त करीबी कार्यालय "कोगोगुशिकि" बनाया गया। यह नई प्रशासनिक व्यवस्था हयन काल तक चलती रही।[5] वे एक प्रभावशाली राजनीतिज्ञ थीं। उन्होंने फूजीवारा औ्र गैर फूजीवारा धड़ों के बीच तनाव को संतुलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

बौद्ध मत[संपादित करें]

कोमियो बौद्ध प्रभावों के बीच बड़ी हुईं। उन दिनों उनके पिता कोफूकूजी के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। उनकी माँ भी एक बौद्ध अनुयायी प्रतीत होती हैं जिन्होंने ७२९ ई. में प्रवज्जा ले ली थी। उनके चाचा जो बौद्ध भिक्षु थे जिन्होंने अध्ययन के लिए चीन की यात्रा की।[6]

कोमियों के अपने विश्वासों का पता ७२७ ई. के ऐतिहासिक दस्तावेजों से चलता है जब उन्होंने अपने बेटे के कुशल जन्म के लिए सूत्रों की प्रतिलिपि करना शुरु किया। वे आठवीं सदी में सूत्रों की प्रतिलिपि तैयार कराने वाली सबसे सक्रिय संरक्षक थीं। वे बहुत सक्रीय प्रतिलिपिशाला चलाती थीं जो पहले उनके घर से ही जुड़ा हुआ था और बाद में तोदैजी से जुड़ गया।[7]

वे कोकुबंजी तंत्र की मुख्य प्रस्तावक थीं जिसने प्रत्एक प्रांत में विहारों और महिला मठों के निर्माण की माँग की थी। वे अनेक समाजसेवी संस्थाएं जैसे चिकित्सालय और जरूरतमंदों के लिए आश्रय चलाती थीं।[8]

ये परोपकारी संस्थाएं बौद्ध मूल्यों तथा बोद्धिसत्व के आचरणों से प्रेरित थीं। ७५४ में उन्होंने अपने पति के साथ बौद्ध धर्मादेश ्पराप्त किया।

संदर्भ[संपादित करें]

  1. Ponsonby-Fane, Richard. (1959). The Imperial House of Japan, pp. 57-58.
  2. Brown, Delmer. (1979). Gukanshō, p. 274.
  3. Ooms, Herman (2009). Imperial politics and symbolics in ancient Japan : the Tenmu dynasty, 650-800. Honolulu: University of Hawai'i Press. पपृ॰ 237–241. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780824832353.
  4. Lowe, Bryan D. (2017). Ritualized writing : Buddhist practice and scriptural cultures in ancient Japan. Honolulu. पृ॰ 124. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780824859435.
  5. Piggott, Joan R. (1997). The Emergence of Japanese Kingship, p. 308.
  6. Engendering faith : women and Buddhism in premodern Japan. Ann Arbor, Mich.: Center for Japanese Studies, University of Michigan. 2002. पपृ॰ 21–40. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781929280155.
  7. Lowe, Bryan D. (2017). Ritualized writing : Buddhist practice and scriptural cultures in ancient Japan. Honolulu. पपृ॰ 122–131. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780824859435.
  8. Engendering faith : women and Buddhism in premodern Japan. Ann Arbor, Mich.: Center for Japanese Studies, University of Michigan. 2002. पपृ॰ 21–40. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781929280155.