कुर्मी

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कुर्मी
पारम्परिक परिधान में कुर्मी महिलाओं का एक समूह
पारम्परिक परिधान में कुर्मी महिलाओं का एक समूह
धर्म हिन्दू
भाषा हिंदी, भोजपुरी ,अंग्रेज़ी ,संस्कृत
वासित राज्य भारतीय उपमहाद्वीप

कुर्मी उत्तर भारत में पूर्वी गंगा के मैदान की एक गैर-कुलीन किसान जाति है।[1][2][3] कुर्मी भारत के प्रमुख प्राचीन कृषक जाति के रूप में जाना जाता है। [4]

कुर्मी को कोइरी और यादव के साथ उच्च पिछड़ी जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है|[5][6]

१९ व २०वी शताब्दि में, गैर-कुलीन निम्न-स्तरीय जातियों में कुर्मी सबसे पहले थे जिन्होंने संस्कृतिकरण (ऊंची जाति के तौर तरीके अपनाने) की प्रक्रिया अपनायी थी।[7]

व्युत्पत्ति

कुर्मी की व्युत्पत्ति के 19वीं सदी के अंत के कई सिद्धांत हैं। जोगेंद्र नाथ भट्टाचार्य (1896) के अनुसार, यह शब्द एक भारतीय जनजातीय भाषा से लिया गया हो सकता है, या एक संस्कृत यौगिक शब्द हो सकता है, "कृषि कर्मी।"[8] गुस्ताव सॉलोमन ओपर्ट (1893) का एक सिद्धांत मानता है कि यह कोमी से व्युत्पन्न, जिसका अर्थ है "हलचलाने वाला"।[9]

इतिहास

कुर्मियों को मुगलोंब्रिटिश द्वारा उनकी कार्य-नैतिकता, जुताई और खाद, और लिंग-तटस्थ के लिए प्रशंसा प्राप्त होती थी।[10]

अठारहवीं शताब्दी

उस समय के रिकॉर्ड बताते हैं कि पश्चिमी बिहार के भीतर, कुर्मियों ने सत्तारूढ़ उज्जैनिया राजपूतों के साथ गठबंधन किया था। 1712 में मुगलों के खिलाफ विद्रोह करने पर कुर्मी समुदाय के कई नेताओं ने उज्जैनिया राजा कुंवर धीर के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी थी। उनके विद्रोह में शामिल होने वाले कुर्मी समुदाय के नेताओं में नीमा सीमा रावत और ढाका रावत शामिल थे।[11]18 वीं शताब्दी की शुरुआत में मुगल शासन के लगातार जारी रहने के साथ, भारतीय उपमहाद्वीप के भीतरी इलाकों के निवासी, जिनमें से कई सशस्त्र और खानाबदोश थे, वे अक्सर बसे हुए क्षेत्रों में दिखाई देने लगे और शहरवासियों और कृषकों के साथ मेलजोल करने लगे। [12]

उन्नीसवीं सदी के मध्य तक, प्रभावशाली राजस्व विशेषज्ञ रिपोर्ट कर रहे थे कि वे एक ज़मींदार की जाति को केवल उसकी फसलों को देखकर बता सकते हैं।उत्तर में, इन पर्यवेक्षकों ने दावा किया, 'दूसरी-दर वाली जौ' का एक क्षेत्र एक राजपूत या ब्राह्मण का होगा जिसने हल चलाने में लज्जा महसूस किया और अपनी महिलाओं को घूंघट में रखा।ऐसा व्यक्ति अपनी अनुत्पादक जमींदारी बनाए रखने के लिए अपनी भूमि को बेचने पर खुद के पतन के लिए जिम्मेदार होगा। इसी तर्क से, गेहूं का एक फलता-फूलता क्षेत्र गैर-द्विज मितव्ययी जाट या कुर्मी का होगा , गेहूं एक फसल है जिसे खेती करने वाले की ओर से कौशल और उद्यम की आवश्यकता होती है। डेन्ज़िल इब्बेट्सन और ई ए एच ब्लंट जैसे टिप्पणीकार ने कहा इसी तरह के गुण छोटे बाजार-बागवानी करते हुए आबादी के बीच पाए जाएंगे, उन्हें हिंदुस्तान में कोइरी के नाम से जाना जाता है।

— सुसान बेलि [10]

18 वीं शताब्दी में पश्चिमी और उत्तरी अवध में कुर्मियों को मुस्लिमों के द्वारा काफी सस्ते दाम पे जंगल को साफ़ करके कृषि योग्य जमींन  बनाने का कार्य मिलता था।[12] जब जमींन में अच्छे से पैदावार होने लगती थी तब उस जमींन का किराया ३० से ८० प्रतिशत बढ़ा दिया जाता था।[12]  ब्रिटिश इतिहासकारों के हिसाब से जमींन के किराये बढ़ाये जाने का मुख्य कारण यह था की गाँव की ऊँची जातियों को हल चला पसंद नहीं था ।  ब्रिटिश इतिहासकारों का यह भी मानना है की कुर्मियों की अधिक उत्पादिकता का यह भी कारण था की उनकी खाद  डालने की प्रक्रिया बाकि से बेहतर थी।[12]   

बीसवीं सदी

कुर्मी विशेष रूप से अवधिया कुर्मी समूह, जिनसे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार संबंधित हैं की पिछड़ी जातियों में व्यावहारिक रूप से वही स्थिति है जो ऊंची जातियों में ब्राह्मणों की है। 1960 और 70 के दशक से, कुर्मियों ने नौकरशाही, शिक्षा, इंजीनियरिंग और स्वास्थ्य में प्रमुख पदों पर काम किया है। वास्तव में, वे 1970 के दशक में जमींदारों की सेना (मिलिशिया) बनाने में भूमि-स्वामी उच्च जातियों में शामिल हो गए। वे 1970 के दशक में पटना जिले के बेलछी में दलितों के नरसंहार में शामिल थे। इंदिरा गांधी ने कुर्मी जमींदारों के क्रोध के खिलाफ दलितों को आश्वस्त करने के लिए हाथी की पीठ पर बेलची की यात्रा की थी, जिससे उन्हें वंचित वर्गों का समर्थन हासिल करने और 1980 में सत्ता में वापस आने में मदद मिली।[13]

1970 और 1990 के दशक के बीच बिहार में कई निजी जाति-आधारित सेनाएँ सामने आईं, जो कि बड़े पैमाने पर जमींदार किसानों से प्रभावित थीं और वामपंथी अतिवादी समूहों के बढ़ते प्रभाव पर प्रतिक्रिया व्यक्त करती थीं।  इनमें से भूमि सेना थी, जिसकी सदस्यता मुख्य रूप से उन युवाओं से ली गई थी जिनकी कुर्मी उत्पत्ति थी।[14]भूमि सेना का पटना क्षेत्र में बहुत डर था और नालंदा, जहानाबाद और गया जिलों में भी उनका प्रभाव था।[15]

इक्कीसवीं सदी

बिहार में मानव विकास संस्थान द्वारा किए गए सर्वेक्षण से पता चलता है कि कुर्मी (0.45 एकड़) प्रति व्यक्ति सबसे अधिक भूमि मानदंड में भूमिहार (0.56 एकड़) के बाद दूसरा स्थान पर है और प्रति व्यक्ति आय के अंतरगत पिछड़ी जाति वर्ग में कुशवाहा(18,811 रुपये) और कुर्मी(17,835) शीर्ष पर है|[16]


इन्हें भी देखें

संदर्भ

  1. Bayly, Susan (2001), Caste, Society and Politics in India from the Eighteenth Century to the Modern Age, Cambridge University Press, पपृ॰ 200–, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-521-79842-6
  2. Bapu, Prabhu (2013), Hindu Mahasabha in Colonial North India, 1915-1930: Constructing Nation and History, Routledge, पपृ॰ xiv–, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-415-67165-1 Quote: "Kurmi: a peasant caste of the eastern Gangetic plain."
  3. Gupta, C. (30 May 2002), Sexuality, Obscenity and Community: Women, Muslims, and the Hindu Public in Colonial India, Palgrave Macmillan US, पपृ॰ 340–, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-230-10819-6 Quote: "Kurmi: a peasant caste of the eastern Gangetic plain."
  4. Tyagi, Vidya Prakash (2009), Martial races of undivided India, Kalpaz Publications, पृ॰ 265, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788178357751 Quote: "The kurmi is known as chief ancient agricultural caste of india. Colonel dalton regards them as descendents of some of the early aryan colonists"
  5. Kumar, Ashwani (2008). Community Warriors: State, Peasants and Caste Armies in Bihar (अंग्रेज़ी में). Anthem Press.
  6. Backward Classes Commission (1981). Report of Backward Class Commission. Controller of Publications, 1981. अभिगमन तिथि 23 February 2021. Among the upper backward castes, the Yadavas and Kurmis had begun to organise themselves along the caste lines during the first decade of this century (Rao, 1979) . The All – India Yadav Mahasabha has its headquarters at Patna, and the Bihari Yadavas, along with their counterparts in ... The political fall out of the Yadava, Kurmi and Koeri movements were, however, limited in the beginning
  7. Jaffrelot, Christoph (2003). India's Silent Revolution: The Rise of the Lower Castes in North India. C. Hurst & Co. Publishers. पृ॰ 197. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781850656708.
  8. Jogendra Nath Bhattacharya (1896). Hindu castes and sects: an exposition of the origin of the Hindu caste system and the bearing of the sects towards each other and towards other religious systems / Jogendra Nath Bhattacharya. Thacker, Spink. पपृ॰ 270–.
  9. Gustav Salomon Oppert (February 1978). On the original inhabitants of Bharatavarṣa or India. Arno Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780405105579.
  10. Bayly, Susan (2001), Caste, Society and Politics in India from the Eighteenth Century to the Modern Age, Cambridge University Press, पृ॰ 212, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-521-79842-6, मूल से 1 जून 2019 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 2 जून 2020
  11. Gopal, Surendra (2017-12-22). Mapping Bihar: From Medieval to Modern Times (अंग्रेज़ी में). Routledge. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-351-03416-6.
  12. Bayly, C. A. (1988-05-19). Rulers, Townsmen and Bazaars: North Indian Society in the Age of British Expansion, 1770-1870 (अंग्रेज़ी में). CUP Archive. पृ॰ 478. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-521-31054-3.
  13. "The Kurmis – particularly the Awadhia Kurmi group which Nitish belongs to – have practically the same status among the backward castes as the Bramins have among the upper castes". मूल से पुरालेखित 11 अप्रैल 2021. अभिगमन तिथि 4 अगस्त 2023.सीएस1 रखरखाव: BOT: original-url status unknown (link)
  14. CHAUDHURI, KALYAN. "End of a terror trail". Frontline (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2020-05-15.
  15. "A lasting signature on Bihar's most violent years". archive.indianexpress.com. 2020-05-15.
  16. "The survey conducted by the Institute of Human Development revealed that in 2009, Bhumihars had the highest land per capita (0.56 acres) followed by Kurmis (0.45 acres)". मूल से पुरालेखित 22 जनवरी 2021. अभिगमन तिथि 9 अगस्त 2023.सीएस1 रखरखाव: BOT: original-url status unknown (link)