कॉर्पस जुरिस सिविलिस
| Body of Civil Law कॉर्पस जुरिस सिविलिस | |
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| प्रादेशिक सीमा | Eastern Roman Empire |
| द्वारा अधिनियमित | Petrus Sabbatius Iustinianus Augustus, Roman emperor |
| द्वारा पेश | John the Cappadocian, Tribonian |
कॉर्पस जुरिस सिविलिस (अंग्रेज़ी: Corpus Juris Civilis), जिसे जस्टिनियन कोड के नाम से भी जाना जाता है,[1] प्राचीन रोमन क़ानून का सबसे महत्वपूर्ण और व्यवस्थित संकलन है।[2] इसे ६वीं सदी ईस्वी में बीजान्टिन सम्राट जस्टिनियन प्रथम के आदेश पर तैयार किया गया। इसका उद्देश्य रोमन क़ानून के नियमों और न्यायिक सिद्धांतों को एकत्रित करना, न्यायपालिका में स्पष्टता लाना और कानूनी शिक्षा को संरचित करना था। यह संहिता आधुनिक यूरोपीय नागरिक कानून प्रणालियों की नींव भी मानी जाती है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
[संपादित करें]६वीं सदी ईस्वी में बीजान्टिन साम्राज्य के समय क़ानूनी प्रणाली असंगठित थी। रोमन साम्राज्य के पहले के क़ानून और न्यायविदों के लेख अलग-अलग स्रोतों में बिखरे हुए थे। सम्राट जस्टिनियन ने इन सभी क़ानूनों को व्यवस्थित और संकलित करने का निर्णय लिया ताकि न्याय में समानता और कानूनी स्पष्टता सुनिश्चित हो सके। इस परियोजना को ५२९ ईस्वी में शुरू किया गया और ५३४ईस्वी तक पूरा किया गया।[3]
जस्टिनियन का योगदान
[संपादित करें]सम्राट जस्टिनियन ने खुद इस परियोजना का नेतृत्व किया और सर्वोच्च आदेश जारी किए। उन्होंने न्यायविद त्रियोमियस और इयोविनियस जैसे विद्वानों को नियुक्त किया, जिन्होंने रोमन क़ानून के सभी लेखों और निर्णयों का संकलन किया। जस्टिनियन का उद्देश्य केवल क़ानूनों का संग्रह करना नहीं था, बल्कि न्यायपालिका, समाज और राज्य प्रशासन में स्थायित्व और एकरूपता लाना था। उनके आदेशों से यह संकलन न केवल क़ानूनी बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी अमूल्य है।[4]
संरचना
[संपादित करें]कॉर्पस जुरिस सिविलिस को चार मुख्य भागों में विभाजित किया गया:
१. कोडेक्स जस्टिनियानस (Codex Justinianus): सम्राट जस्टिनियन और पूर्व सम्राटों के आदेशों का संकलन। इसे ५२९ ईस्वी में प्रकाशित किया गया।
२. डिजेस्टा / पांडेक्ट्स (Digesta / Pandectae): रोमन न्यायविदों के लेखों का संग्रह, जिसे ५३३ ईस्वी में तैयार किया गया। इसमें क़ानूनी सिद्धांत और न्यायिक व्याख्याएँ शामिल हैं।
३. इंस्टिट्यूट्स (Institutiones): छात्रों और नए वकीलों के लिए लिखी गई कानूनी पाठ्यपुस्तिका, जिसमें रोमन क़ानून की मूल बातें सरल भाषा में प्रस्तुत की गई हैं।
४. नोवेला (Novellae Constitutiones): ५३४ ईस्वी के बाद जारी नए कानून, जो समय के अनुसार क़ानूनी परिवर्तनों को दर्शाते हैं।
कानूनी और सामाजिक महत्व
[संपादित करें]कॉर्पस जुरिस सिविलिस ने न्यायिक प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया और संपत्ति अधिकार, अनुबंध, परिवार और अपराधों के नियम स्पष्ट किए। डिजेस्ट और इंस्टिट्यूट्स ने न्यायविदों और छात्रों को रोमन क़ानून का व्यवस्थित अध्ययन करने का अवसर दिया। नोवेला ने इसे समय के अनुसार अद्यतन रखा। इस संहिता ने मध्यकालीन यूरोप के नागरिक क़ानून प्रणालियों का आधार तैयार किया और आज भी आधुनिक यूरोपीय कानून में इसके सिद्धांतों का पालन किया जाता है।
आधुनिक प्रभाव
[संपादित करें]कॉर्पस जुरिस सिविलिस ने फ्रांस, जर्मनी, इटली और अन्य यूरोपीय देशों में नागरिक क़ानून प्रणालियों के विकास में प्रमुख भूमिका निभाई। इसके सिद्धांत आधुनिक अंतरराष्ट्रीय क़ानून और कैनन लॉ (काथोलिक चर्च के क़ानून) में भी दिखाई देते हैं। इसके अध्ययन से न्यायविदों को कानून की व्याख्या, न्यायिक निर्णय और कानूनी तर्क विकसित करने में मदद मिलती है।
समकालीन उपयोग और अध्ययन
[संपादित करें]आज कॉर्पस जुरिस सिविलिस केवल ऐतिहासिक महत्व नहीं रखता। कई देशों में कानून की शिक्षा, न्यायिक प्रक्रिया और कानूनी शोध का आधार यह संहिता है। इसकी प्रणाली और सिद्धांत आधुनिक न्याय व्यवस्था में कानूनी व्याख्या और निर्णय लेने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। यूरोपीय विश्वविद्यालयों और कानून विद्यालयों में यह संहिता अभी भी प्रमुख पाठ्यक्रम का हिस्सा है।
संदर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Code of Justinian | Definition & Creation | Britannica". www.britannica.com (अंग्रेज़ी भाषा में). अभिगमन तिथि: 2025-10-04.
- ↑ The name "Corpus Juris Civilis" occurs for the first time in 1583 as the title of a complete edition of the Justinianic code by Dionysius Godofredus. (Kunkel, W. An Introduction to Roman Legal and Constitutional History. Oxford 1966 (translated into English by J.M. Kelly), p. 157, n. 2)
- ↑ Cartwright, Mark (2018-04-24). "Corpus Juris Civilis: The Justinian Law Code". World History Encyclopedia (अंग्रेज़ी भाषा में).
- ↑ Honoré, Tony (1998). Justinian's Codification of Roman Law. Cambridge University Press.