केवटों का इतिहास
निषाद शिरोमणि निषादराज गुह्य के वंशज डॉ0 बी0 कश्यप एवं निषादराज गुह्य की कुलवधू रीता निषाद ने उपलब्ध वंशावली के माध्यम से बताया है कि "केवट " त्रेतायुग में भगवान राम के बाल सखा श्रृंग्वेरपुर महाराज निषादराज गुह्य के अनुचर थे। जिसने वन गमन के समय भगवान राम, सीता और लक्ष्मण को अपनी नाव में बैठा कर गंगापार कराया था। "यह प्रसंग रामायण के अयोध्या कांड में निहित है"
केवट "हरिवंश कीर समाज" का था। "केवट" श्री रामचन्द्र का अनन्य भक्त था।
पौराणिक किदवंती के अनुसार सृष्टि के आरम्भ में जब सम्पूर्ण जगत जलमग्न था तब "केवट" का जन्म कच्छप की योनि में हुआ। उस योनि में भी उसका भगवान के प्रति अगाध आसक्ति थी। आपने मोक्ष के लिए उसने 5शेष शैय्या पर शयन करते हुये भगवान श्री हरि विष्णु के अँगूठे को स्पर्श करने का असफल प्रयास किया था , क्योंकि उस समय वो शेषनाग के फुंकार के कारण उनके चरण स्पर्श नहीं कर पाया था, तब विष्णु भगवान ने उनको कहा था कि त्रेतायुग में उनको यह अवसर प्राप्त होगा, तत्पश्चात एक युग से भी अधिक अवधि तक अनेक जन्म लेकर उसने भगवान की तपस्या की और अन्त में त्रेतायुग में “केवट” के रूप में जन्म लेकर भगवान विष्णु, जो कि श्रीराम के रूप में अवतरित हुये थे तब “केवट” ने चरण पखार कर भगवान की सेवा की और मोक्ष की प्राप्ति कर सकुटुंब बैकुण्ठ धाम को प्राप्त हुए थे।
*श्रृंगवेरपुर का धार्मिक एवं पौराणिक महत्व*
निषाद शिरोमणि निषादराज गुह्य के मूल वंशज डा०बी०के० कश्यप एवं उन्हीं वंश की कुल वधू रीता निषाद ने अपने वंशजों से प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर बताते है कि, उस युग में श्रृंग्वेरपुर का महत्व किसी तीर्थ से कम नहीं रहा।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रंगवेरपुर वही स्थान है जहां भगवान श्रीराम ने सीता और लक्ष्मण के साथ वनगमन के रास्ते पर गंगा नदी को पार कर किया था, श्रृंग्वेरपुर प्रयागराज के आस-पास के प्रमुख भ्रमण स्थलों में से एक है। श्रृंग्वेरपुर निषाद शिरोमणि निषादराज गुह्य के प्रसिद्ध राज्य की राजधानी या 'मछुआरों का राजा' के रूप में उल्लेख किया गया है। रामायण में भगवान श्रीराम, पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण का श्रृंग्वेरपुर आने का प्रमाण पाया गया है। श्रृंगवेरपुर में किये गये पुरातात्विक उत्खनन कार्यों से श्रृंगी ऋषि के मंदिर का पता चला है, यह व्यापक रूप से माना जाता है कि गांव का नाम उन ऋषि से ही मिला है, मुगल काल के समाप्ति के अवधि में वहाँ वास करने वाले विभिन्न वंश के क्षत्रियों द्वारा अराजक ताकतों का सामना करने के लिए सिंगरौर समूह बनाया गया था उन्हीं सिंगरौर समूह के क्षत्रिय के नाम पर तत्कालीन नाम सिंगरौर रखा गया है।
भगवान राम, अनुज लक्ष्मण और भार्या सीता, वनगमन जाने से पूर्व श्रृंग्वेरपुर में एक रात रहे है, ऐसा कहा जाता है कि नाविकों ने उन्हें गंगा नदी पार कराने से मना कर दिया था तब निषाद शिरोमणि निषादराज गुह्य ने स्वयं उस स्थल का निरिक्षण किया जहां भगवान राम इस विषय को सुलझाने में लगे थे। उन्होंने भगवान श्री राम से आग्रह किया कि, यदि भगवान राम उन्हें अपना पैर धोने दें तभी वें भगवान श्री राम को नदी पार कराएंगे, राम ने अनुमति दी और इसका भी उल्लेख है कि निषादराज ने गंगा जल से भगवान राम के पैरों को पखारा और उनके प्रति अपना श्रद्धा दिखाने के लिए जल का आचमन भी किया, जिस स्थान पर निषादराज ने राम के पैरों को पखारे थे, वही एक मंच द्वारा चिह्न्ति किया गया है और इसका नाम रामचौरा रखा गया है। इस स्थान पर एक छोटा मंदिर भी बनाया गया है जहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ सदैव बनी रहती है।
*रामायण में श्रीराम और निषादराज का प्रसंग, भगवान श्रीराम के बाल सखा थे निषादराज गुह्य*
*वनगमन के समय श्रीराम भूमि पर विश्राम कर रहे थे, यह देखकर निषादराज ने लक्ष्मण से कहा कि हमारे प्रभु तो अयोध्या नगरी में महल के अंदर सुंदर पलंग पर सोते होंगे, यहां घास पर सोना पड़ रहा है यह समय की कैसी विडम्बना है !!
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी है। निषादराज गुह्य की जयंती मनाई जाती है। रामायण के अनुसार निषादराज गुह्य श्रीराम के प्रिय मित्र थे। वनगमन के समय निषादराज ने श्रीराम की सहायता की थी। श्रीराम, सीता और लक्ष्मण वनवास के लिए अयोध्या से निकले तो वन में गंगा नदी के किनारे पहुंच गए। विश्राम के लिए सभी वही ठहर गए थे। जब यह सूचना हमारे पूर्वज महाराज निषादराज गुह्य को मिली तो वे अपनी प्रजा के संग भगवान के दर्शन करने वहां आ गए। श्रीराम के भेंट देने के लिए फल, कंदमूल ले आए।
श्रीराम निषादराज गुह्य को अपना प्रिय मित्र मानते थे। निषादराज ने श्रीराम से कहा कि आप कृपा करके हमारे राजमहल में चले और मुझे सेवा का अवसर प्रदान कीजिए।
श्रीराम ने कहा कि प्रिय मित्र मुझे मेरे पिता की आज्ञा से चौदह वर्ष तक वन में ही ऋषि मुनियों की तरह जीवन यापन करना है। मैं अब किसी गांव या नगर के भीतर प्रवेश नहीं कर सकता। इस बात से निषादराज बहुत दुखी हुआ। तब उन्होंने एक पेड़ के नीचे कुश और कोमल पत्तों से श्रीराम के आराम करने की व्यवस्था कर दी। वहां श्रीराम विश्राम करने के लिए सो गए। निषादराज श्रीराम की ऐसी अवस्था देखकर लक्ष्मण से बोले कि महल में तो सुंदर पलंग पर भगवान विश्राम करते होंगे। यहां जमीन पर सोना पड़ रहा है। ये स्थिति देखकर निषादराज ने कहा कि लोग सच ही कहते हैं कि भाग्य ही प्रधान है। इसके बाद निषादराज ने केवट की मदद से श्रीराम, सीता और लक्ष्मण को गंगा नदी पार करवाई।
हमारे पूर्वजों की प्राचीन परंपरा रही है कि हम सदैव ही सहायता करने की भूमिका में रहें हैं
उसी परंपरा को श्रृंग्वेरपुर, प्रयागराज में निषादराज गुह्य के मूल वंशज डॉ० बी०के० कश्यप एवं कुल वधू श्रीमती रीता निषाद अक्षरशः निभाने का प्रयास कर रहे हैं !!