कीर्तिवर्मन चन्देल (प्रथम)

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कीर्तिवर्मन चन्देल
श्रीमंत-चक्रवर्ती सम्राट
परमभट्टरक, परमेश्वर, परममहेश्वर, महाराजाधिराज, महोबानरेश, माहिष्मतीनरेश, श्रीकलंजराधिपति
12वें चन्देल सम्राट
शासनावधिc. 1060-1100 CE
पूर्ववर्तीदेववर्मन
उत्तरवर्तीसलक्शनवर्मन
जन्मकालिंजर दुर्ग, महोबा, उत्तर प्रदेश
निधनकालिंजर दुर्ग, महोबा, उत्तर प्रदेश
जीवनसंगीसुलक्शना - देवी रघुवंशी, राजकुमारी )
संतानसलक्शनवर्मन
पूरा नाम
श्रीमद कीर्तिवर्मन-देव चन्देल (प्रथम)
शासनावधि नाम
कीर्ति-वर्मन
घरानाहैहय, चन्द्रवंश
राजवंशचन्देल
पिताविजयपाल चन्देल
माताभुवन - देवी (जादौन, राजकुमारी )
धर्मवैष्णव धर्म, हिंदू धर्म

कीर्तिवर्मन या कीर्तिवर्मन प्रथम चन्देल (1060-1100 ई0) भारत के महान हिन्दू चक्रवर्ती सम्राट थे। उनका जन्म पुरबिया राजपूतों के हैहय-चन्देल राजवंश में हुआ था। वे कलंजर, जेजाकभुक्ति, उत्तर प्रदेश से शासन करते थे। 1060 ई0 में उन्होंने त्रिपुरी के चक्रवर्ती राजा लक्ष्मी-कर्ण को परास्त कर अपनी राजधानी पर पुन: कब्जा किया जिसे सामंत लक्ष्मी ने हथिया लिया था, तत्पश्चात कीर्तिवर्मन राजसूय यज्ञ कर सम्राट बने। 1089 ई0 के दौरान ग़ज़नवी साम्राज्य के पंजाब के अमीर सलमान, राज्यपाल महमूद एवं 1090 ई0 के करीब उन्होंने गजनविदो के सुलतान इब्राहिम ग़ज़नवी को पराजित किया।

निजी जीवन[संपादित करें]

सम्राट कीर्तिवर्मन का प्रेम विवाह कोशल राज्य के रघुवंशी सामंत राजा की पुत्री सुलक्षणा देवी से हुआ था।

सैन्य अभियान[संपादित करें]

त्रिपुरा साम्राज्य पर पुनः विजय[संपादित करें]

देववर्मन के शासनकाल के दौरान चन्देलों को उन्हीं सामंत त्रिपुरा के कलचुरी राजा लक्ष्मी-कर्ण ने अपने अधीन कर लिया था और राजधानी कालिंजर पे कबजा कर सम्राट की उपाधि ग्रहण की। कीर्तिवर्मन ने लक्ष्मी-कर्ण को हराकर चन्देल साम्राज्य पे पुनः कब्जा किया और चन्देल राजवंश की प्रतिष्ठा को पुनर्जीवित किया। उनके वंशज वीरवर्मन के अजयगढ़ शिलालेख में कहा गया है कि उन्होंने कर्ण को हराकर एक नया साम्राज्य बनाया।[1]

एक महोबा शिलालेख उनकी तुलना पुरुषोत्तम (विष्णु) से करता है, और कहता है कि अभिमानी लक्ष्मी-कर्ण को अपनी मजबूत भुजाओं से कुचल दिया। प्रबोध-चंद्रोदयम्कीर्तिवर्मन के समकालीन श्री कृष्ण मिश्रा द्वारा लिखित एक नाटक में कहा गया है कि श्री गोपाल चन्देल नाम के एक व्यक्ति जो की उनका चचेरा भाई था उसने लक्ष्मी-कर्ण को हराया और कीर्तिवर्मन के उदय का कारण बना। श्री गोपाल के ही वंशज चन्देलवंशी वनाफर आल्हा ऊदल हुए।[2] क्योंकि यह नाटक कीर्तिवर्मन के दरबार में हुआ था, ऐसा प्रतीत होता है कि श्री गोपाल चन्देल को राजा ने बहुत सम्मान दिया था।[3]

अन्य विजय[संपादित करें]

चन्देल शिलालेख भी अन्य जीत के साथ कीर्तिवर्मन को श्रेय देते हैं, जिसमें कहा गया है कि उन्होंने कई दुश्मनों को परास्त किया और उनकी आज्ञा "समुद्र की सीमाओं तक पहुंच गई"।[4]

ग़ज़नवी साम्राज्य से युद्ध[संपादित करें]

गजनविदो ने सिरसागढ छेत्र पे कब्जा कर वहांकी सीमा बेतवा नदी के पास के ब्राह्मणों पे अत्याचार और गौ हत्या शुरू कर दिया, ये बात जैसे ही राजा कीर्तिवर्मन को पता चली उन्होंने तत्काल ग़ज़नवी साम्राज्य के राज्यपाल सलमान पर हमला कर सिरसागढ़ ( आधुनिक पंजाब से मालवा की सीमारेखा) पे कब्जा कर गजनविदो को मार दिया। इस हमले से चन्देल साम्राज्य एवं ग़ज़नवी साम्राज्य के बीच युद्ध की स्तिथि और बिगड़ गई।

Emperor Kirtti-Varman I Chandel worshipping Kuldevta Mahadeva

मुस्लिम क्रॉनिकल दीवान-ए-सलमान में कहा गया है कि गजनविद सुलतान इब्राहिम (1059-1099 सीई) ने चन्देल साम्राज्य की राजधानी कलंजर (आधुनिक कालिंजर) पर असफल हमला किया था। इससे पता चलता है कि कीर्तिवर्मन को इब्राहिम के आक्रमण का सामना करना पड़ा होगा। इस बात का कोई सबूत नहीं है कि चन्देलों ने अपने शासनकाल के दौरान राजधानी कलंजर पर नियंत्रण गजनवियो से खो दिया था परंतु कीर्तिवर्मन ने गजनविदो के रक्त को धुलने के लिए कीर्ति सागर का निर्माण करवाया था।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Mitra, Sisir Kumar (1977). The Early Rulers of Khajur (Second Revised Edition) (अंग्रेज़ी में). Motilal Banarsidass Publ. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-208-1997-9.
  2. Chandraprabodhayanatakam|mishra
  3. Mitra, Sisir Kumar (1977). The Early Rulers of Khajur (Second Revised Edition) (अंग्रेज़ी में). Motilal Banarsidass Publ. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-208-1997-9.
  4. Dikshit, R. K. (1976). The Candellas of Jejākabhukti (अंग्रेज़ी में). Abhinav Publications. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7017-046-4.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]