काराख़ानी ख़ानत

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१००० ईसवी में काराख़ानी ख़ानत
अर्सलान ख़ान द्वारा ११२७ में आज़ान के लिए बनवाई गई बुख़ारा की कलयन मीनार

काराख़ानी ख़ानत (Kara-Khanid Khanate) मध्यकाल में एक तुर्की क़बीलों का परिसंघ था जिन्होंने मध्य एशिया के आमू-पार क्षेत्र और कुछ अन्य भूभाग में ८४० से १२१२ ईसवी तक अपनी ख़ानत (साम्राज्य) चलाई। इसमें कारलूक, यग़मा, चिग़िल​ और कुछ अन्य क़बीले शामिल थे जो पश्चिमी तियान शान और आधुनिक शिनजियांग इलाक़ों के रहने वाले थे। काराख़ानियों ने मध्य एशिया में ईरानी मूल के सामानी साम्राज्य का ख़ात्मा कर दिया और इसके बाद मध्य एशिया में तुर्की-भाषियों का अधिक बोलबाला रहा। काराख़ानी दौर में ही महमूद काश्गरी ने अपनी प्रसिद्ध 'दीवान-उ-लुग़ात​-उत-तुर्क' नामक तुर्की भाषा के कोष की रचना की।[1]

नाम[संपादित करें]

'कारा' का मतलब तुर्की भाषाओँ में 'काला' (रंग) होता है। 'कारा-ख़ान' का मतलब 'काले रंग वाले ख़ान'। यह ठीक ज्ञात नहीं है कि इनको काला क्यों कहा जाता था लेकिन शायद यह नाम इस ख़ानत को स्थापित करने वाले कारलूक लोगों से आया हो। 'काराख़ानी' में 'ख़' अक्षर के उच्चारण पर ध्यान दें क्योंकि यह बिना बिन्दु वाले 'ख' से ज़रा भिन्न है। इसका उच्चारण 'ख़राब' और 'ख़रीद' के 'ख़' से मिलता है।

पतन[संपादित करें]

११वीं सदी के बाद काराख़ानियों में आपसी लड़ाईयाँ शुरू होया गईं और इसके पड़ोस में सलजूक तुर्क भी शक्तिशाली हो गए। काराख़ानी पश्चिमी और पूर्वी हिस्सों में बंट गए और फ़रग़ना वादी इनकी बीच की सरहद पर पड़ी। शुरू में तो बंटे हुए काराख़ानी भी सलजूकों से टक्कर ले पाए और कुछ देर के लिए उन्होंने सलजूकों के ख़ुरासान क्षेत्र के कुछ शहरों पर भी क़ब्ज़ा ज़माने में सफल हुए। लेकिन सन् १०८९ में सलजूकों ने समरक़ंद​ पर क़ब्ज़ा कर लिया। पश्चिमी काराख़ानियों ने सलजूकों की अधीनता स्वीकार कर ली। कुछ समय बाद पूर्वी काराख़ानी भी उनके अधीन हो गए।

११२५ में मध्य एशिया से दूर उत्तरी चीन में जुरचेन लोगों ने जब वहाँ बस रहे ख़ितानी लोगों के लियाओ राजवंश पर हमला किया तो ख़ितानी पश्चिम की ओर कूच करके सलजूक के अधीन काराख़ानी इलाक़ों में आ धमके। उन्होंने पश्चिमी काराख़ानियों को ख़ुजंद​ में हरा दिया और ११४१ में कारा-ख़ितान ख़ानत यहाँ का प्रमुख साम्राज्य हो गई। कारा-ख़ितानी बौद्ध धर्म और ओझा प्रथा में विश्वास रखते थे जबकि काराख़ानी मुस्लिम थे, फिर भी कारा-ख़ितानी धर्म-निरपेक्ष थे इसलिए उन्होंने अपने अधीन काराख़ानी रियासतों को चलने दिया। लेकिन १२१० में कुचलुग नाम के एक नायमन व्यक्ति ने धोखे से कारा-ख़ितान ख़ानत की सत्ता हथिया ली और मुस्लिम-विरोधी नीतियाँ लागू कर दीं जिस से विद्रोह भड़का। इसका फ़ायदा उठाकर १२१८ में मंगोल साम्राज्य की फ़ौजों ने सारे कारा-ख़ितान क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा कर लिया और कुचलुग को मार डाला।[1]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. The Palgrave Concise Historical Atlas of Central Asia, Rafis Abazov, pp. 40, Macmillan, 2008, ISBN 978-1-4039-7542-3, ... The Karakhanid tribal confederation emerged in the mid-tenth century with its center in eastern Turkistan ... The Karakhanid era signifies important changes in Turkic culture, including the formation of Muslim Turkic identity and the codification of the Turkic cultural legacy in the 1070s ...