कांकेश्वरी देवी

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बस्तर संभाग के प्रथम जिले कांकेर के बस स्टेण्ड के ठीक पीछे राजापारा के ऊपर पहाडियों की ओर यहां आने और जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति का ध्यान बरबस चला जाता है। कंक ऋषि की तपोभूमि कांकेर प्राचिन समय में कौकर्य, कंकण और कंकारय के नाम से प्रसिध्द थी। कांकेर चारों ओर पहाडियों से घिरा हुआ है यदि हम उसे पर्वर्तो का नगर कहे तो आतिशयोक्ति नहीँ होगी। कांकेर का ऊत्तर भाग में महानदी बहती है तो दक्षिण में गढिया पहाड है। इतिहास बताता है कि प्राचिन समय में कांकेरा राज्य का गढ अथवा किला यह पहाडी रही है। इसीलिये इस पहाडी का नाम गढिया पहाडी पडा है। इस पहाडी में अभेद किला है। यह सोमवंश, कंड्रावंश और प्रारंभ में चंद्रवंशी राजाओं रहा है। इन वंश के राजाओ ने आसपास के राजाओं के आक्रमण व हमलो से बचने के लिए इस पहाडी को किले का रूप प्रदान किया गया। पहले इस पहाड में चढने के लिए भंडारीपारा का गढपिछवारे की ओर से पहाडी रास्ते थे। किन्तु अब शहर व बाहर से आने वाले लोग राजापारा से बने रास्ते से पहाडी के ऊपर सीढी के माध्यम से जाते है। यहां वर्ष में एक बार महाशिवरात्रि के अवसर पर मेला लगता है। जिसमे शामिल होने दूर-दूर से पर्यटक कांकेर आते है। कांकेर के नगरवासियों द्वारा दोनो ही नवरात्रि में पहाडी पर स्थित योगमाया मा कांकेश्वरी देवी (मा शीतला गढिया पहाडवाली) के मंदिर में ज्योति कलश की स्थापना एवं नवरात्रि पर्व पर मेला ऊत्सव का आयोजन किया जाता है। लगभग ६०० सीढिया चढने की बाद पहाडी पर स्थित दर्शनीय स्थल प्रारंभ होते है-

सिंह द्वार[संपादित करें]

गढिया पहाड के ऊपर चढने से सबसे पहले यह द्वार मिलता है। कहा जाता है कि कंडरा राजा धरमदेव ने गढिया पहाड को एक मजबूत किले का रूप दिया था। यह द्वार राजा के किले में प्रवेश द्वार था। इसे ही सिंह द्वार के नाम से जाना जाता है।

सुरंग[संपादित करें]

सिंह द्वार के पास एक सुरंग है कहा जाता है कि जान बचाने के लिए इस सुरंग का इस्तेमाल किया जाता था। वर्तमान में इस सुरंग में प्रवेश कर पाना बहुत कठिन है।

महल[संपादित करें]

सिंह द्वार को पार करने के बाद जैसे ही मैदानी क्षेत्र प्रारंभ होता है तो वहां बायीं तरफ एक टीला सा बना हुआ है वह हिस्सा महल का है। उस स्थान पर महल के अवशेष रूपी पत्थर व ईटें आज भी मौजुद है।

खजाना[संपादित करें]

यह स्थान राजा के महल के अवशेष के पास स्थित है तथा काफी विशाल पत्थर है उससे लगा दरवाजानुमा पत्थर है इसे देखने से एसा प्रतीत होता है कि मानो दरवाजा खोलकर उस विशाल पत्थर के कमरे में प्रवेश किया जाता था। कांकेर के मध्य कालीन राजाओ का खजाना इसी स्थल पर सुरक्षित रहता था।

झंडा शिखर[संपादित करें]

गढिया पहाडी की सबसे ऊंची चोटी पर लगे खंभे पर कांकेर स्थित रियासत का झंडा लहराता रहता था। जब राजा कांकेर से बाहर जाता था तब झंडा नहीँ फहराया जाता था। इस शिखर से कांकेर शहर का विहंगम दृश्य आज भी अत्यंत सुंदर दिखाई देता है।

फांसी भाठा[संपादित करें]

इस पहाडी में किले के बीच बस्ती का हृदय स्थल टूरी हटरी कहलाता है। जो बाजार, जनसम्मेलन, मेला आदि कई तरह से उपयोग में आता था। इस स्थान में हजारो व्यक्तियो के बैठने की क्षमता वाला समतल जगह है।

धर्म द्वार[संपादित करें]

गढिया किले के पूर्वी दिशा में स्थित द्वार धरमदेव राजा के नाम पर धरम द्वार कहलाता था। उस द्वार से लगी हुई विशाल पत्थरों की दीवार है। इस द्वार के भग्नावशेष आज भी मौजूद है।

शिव मंदिर[संपादित करें]

काफी प्राचिनतम इस मंदिर के ऊपर के बाहर दीवार में सूर्य देव की कलात्मक प्रस्तर प्रतिमा लगी हुई है। इस पहाडी में सूर्योदय होने पर ऊसकी किरण सबसे से पहले सूर्यदेव की प्रतिमा पर पडती है। तो एसा जान पडता है कि मानो सूर्योदय की प्रतिमा से किरणे फूट पडती है।

छुरी पगार (गुफा)[संपादित करें]

इस गुफा के अंदर जाने से छुरी नुमा पत्थर मिलते है, कहा जाता है कि जब किले पर दुश्मनो द्वारा हमला किया जाता था, तब राजा अपने परिवार के साथ गुफा में छिप जाता था

सोनाई रूपई तालाब[संपादित करें]

इस तालाब के बारे में किवंदंती है कि कुडंरा राजा धरमदेव की दो कन्याए सोनाई व रूपई थी। एक दिन वे उसी स्थान पर घरौंदा बनाकर खेल रही थी कि एकाएक देव योग से घनघोर वर्षा हुई एवं वहां पर पानी का स्रोत निकल आया और वह स्थल लबालब पानी से भर गया इससे दोनो बहने तालाब में डूब गई। इस घटना के बाद से उस तालाब के एक भाग सोनाई व दूसरा भाग रूपई नाम से प्रसिद्ध हो गया। इस तालाब की विशेषता यह है कि इसका जल कभी भी नहीँ सूखता तथा सूर्योदय के समय इस तालाब का आधा पानी सोने की तरह तथा आधा पानी चांदी की तरह चमकता है।

योगमाया कांकेश्वरी देवी[संपादित करें]

कांकेर नगर के महाराज द्वारा सोनाई रूपई तालाब के पूर्व दिशा में बना हुआ शीतला मंदिर बाद में योगमाया कांकेश्वरी देवी के नाम पर नगर का नामकरण कांकेर हुआ।

कांकेर सदैव से शक्ति के उपासना का केन्द्र रहा है। बस्तर संभाग के प्रवेश द्वार चारामा से तीस किमी दूर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। वर्तमान में जिला मुख्यालय होने की वजह से इस नगर का महत्त्व सामाजिक, राजनीतिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से बढ गया है। गढिया पहाडी के अलावा कांकेर से दस किमी पहले बना हुआ ईशानवन व दूसरी ओर १५ किमी स्थित चर्रे मर्रे का जल प्रपात अपनी अलग ही छटा बिखेरता है। गढिया पहाडी से रात्रि में कांकेर शहर का दृश्य अत्यंत मनोहरी लगता है।