क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी
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दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश का शासक। कुतुबुद्दीन मुुुबारक खिलजी ने सन 1316 ई० से 1320 ई० तक दिल्ली में शासन किया। इसके एक विश्वास-पात्र वजीर खुुुसरो खां ने इसकी हत्या(15अप्रैल,1320ई०को) करके सिन्हासन पर कब्जा किया। क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी 19 अप्रैल 1316 ई. को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा था। उसने 1316 ई. से 1320 ई. तक राज्य किया। गद्दी पर बैठने के बाद ही उसने देवगिरि के राजा हरपाल देव पर चढ़ाई की और युद्ध में विजई हुआ। बाद में इस क्रूूर शासक ने हरपाल देव को बंदी बनाकर उनकी खाल उधड़वा दी। अपने शासन काल में उसने गुजरात के विद्रोह का भी दमन किया था। अपनी इन विजयों के कारण ही उसका दिमाग फिर गया। वह अपना समय सुरा तथा सुन्दरियों में बिताने लगा। वह हिन्दू धर्म का परिवर्तित मुसलमान था एवं कहा कि इस्लाम खतरे में है। उसकी इन विजयों के अतिरिक्त अन्य किसी भी विजय का वर्णन नहीं मिलता है। क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी ने अपने सैनिकों को छः माह का अग्रिम वेतन दिया था। विद्धानों एवं महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की छीनी गयी जागीरें उन्हें वापस कर दीं। अलाउद्दीन ख़िलजी की कठोर दण्ड व्यवस्था एवं बाज़ार नियंत्रण आदि व्यवस्था को उसने समाप्त कर दिया था। क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी को नग्न स्त्री-पुरुषों की संगत पसन्द थी। अपनी इसी संगत के कारण कभी-कभी वह राज्य दरबार में स्त्री का वस्त्र पहन कर आ जाता था। 'बरनी' के अनुसार मुबारक कभी-कभी नग्न होकर दरबारियों के बीच दौड़ा करता था। उसने ‘अल इमाम’, ‘उल इमाम’ एवं ‘ख़िलाफ़़त-उल्लाह’ की उपाधियाँ धारण की थीं। उसने ख़िलाफ़़त के प्रति भक्ति को हटाकर अपने को ‘इस्लाम धर्म का सर्वोच्च प्रधान’ और ‘स्वर्ण तथा पृथ्वी के अधिपति का 'ख़लीफ़ा घोषित किया था। साथ ही उसने ‘अलवसिक विल्लाह’ की धर्म की प्रधान उपाधि भी धारण की थी।
मृत्यु[संपादित करें]
मुबारक़ के वज़ीर नासिरुद्दीन खुसरों खाँ ने 15 अप्रैल 1320 ई. को उसकी हत्या कर स्वयं दिल्ली की गद्दी को हथिया लिया।
- अलाउद्दीन खिलजी