कल्‍पनाथ सिंह

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कल्‍पनाथ सिंह
(नेताजी)
स्पष्टवादी और ईमानदार

कार्यकाल
1962,1967,1969,1977
उत्तरा धिकारी विवेक चंद (पौत्र)
उत्तरा धिकारी अजय सिंह (पौत्र)

सूर्यांश सिंह (प्रपौत्र)

नेता वरिष्ठ नेता जनता दल- 1988- 1991

जन्म डेरवां बड़हलगंज गोरखपुर उत्तरप्रदेश
मृत्यु 27-02-1914
राष्ट्रीयता भारतीय
धर्म हिंदू

कल्‍पनाथ सिंह,भारत के उत्तर प्रदेश की तीसरी विधानसभा सभा में विधायक रहे। 1962 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के 191 - चिल्‍लूपार विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से प्रजा सोशलिस्‍ट पार्टी की ओर से चुनाव में भाग लिया।

[1]बाबू कल्पनाथ सिंह के जन्म से कुछ दिनों पूर्व ही उनके पिता राजाराम सिंह का निधन हो गया। वे अपनी मां के इकलौते पुत्र थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा गांव के प्राथमिक व जूनियर पाठशाला पर हुई। मिडिल तक शिक्षा ग्रहण करने वाले श्री सिंह हिंदी के साथ अंग्रेजी, उर्दू, संस्कृत व बांग्ला भाषा के जानकार थे। बाल्यावस्था में ही उनकी शादी इसी क्षेत्र के नेवादा गांव की बतीसा देवी से हुई। उनकी तीन पुत्रियां हैं। सन 1946 में वे सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य बन कर लाल झंडे के सिपाही हो गए। वर्ष 1957 में वे पहली बार चिल्लूपार-गोला विधानसभा क्षेत्र से सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़े और कैलाशी देवी से उन्हें पराजय मिली। इस चुनाव में वे घर-घर पोस्टकार्ड भेज लोगों से वोट मांगे थे। वर्ष 1962 में वे प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से दुबारा चुनाव लड़े और मात्र 27 सौ रुपया खर्च कर तत्कालीन विधायक कैलाशी देवी को हरा कर गोरखपुर व बस्ती क्षेत्र में अपनी पार्टी का झंडा फहराने वाले पहले विधायक बने। वर्ष 1967 में सोशलिस्ट पार्टी का कांग्रेस में विलय होने के बाद वे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और निर्दल उम्मीदवार राजकोमल को हरा कर दुबारा विधानसभा में पहुंचे। 1969 के मध्यावधि चुनाव में उन्होंने जनसंघ के उम्मीदवार श्रीभागवत तिवारी को हराया। छह माह बाद कांग्रेस का विभाजन हुआ और प्रदेश सरकार के नये मंत्रिमंडल में उन्हें सिंचाई राज्य मंत्री बनाया गया। 1974, 1980 और 1985 के चुनाव में उन्होंने खुद को राजनीति से दूर रखा। 1889 में वे जनता दल के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े लेकिन पं.हरिशंकर तिवारी से हार गए।

चिल्लूपार के गांधी के रूप में जाने जाने वाले बाबू कल्पनाथ सिंह के निधन के साथ ही एक राजनीतिक युग का अंत हो गया। बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में श्रमदान से बंधा बनवा कर उन्होंने चिल्लूपार में अलग तरह का सत्याग्रह किया। वर्तमान राजनीति के विद्रूप चेहरे को देख वे मर्माहत थे। उनका मानना था कि आज की राजनीति से नैतिकता गायब हो चुकी है।


चार बार विधानसभा का प्रतिनिधित्व करने वाले पूर्व मंत्री कल्पनाथ सिंह को आज की राजनीतिक गिरावट पर कोई आश्चर्य नहीं था, वह कहते थे कि इसकी शुरुआत चौधरी चरण सिंह ने 1967 में कर दी थी। वह 17 विधायकों को लेकर दलबदल करके प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए थे। उनका सहयोग उस समय जनसंघ और कम्युनिस्ट जैसी धुर विरोधी पार्टियाें सहित कई दलों ने किया था। मुख्यमंत्री बनने पर उनका नाम सदन में कुछ सदस्यों ने चेयर सिंह रख दिया था।

चिल्लूपार विधानसभा से चार बार विधायक और राज्यमंत्री रहे कल्पनाथ सिंह का राजनीतिक सफर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) से शुरू हुआ था। वह पहली बार 1962 में विधायक चुने गए। उसके बाद 1967, 1969 और 1977 में विधायक चुने गए। वे कहते हैं कि मैं पहला चुनाव 2600 रुपये खर्च करके जीता था। आज वार्ड के पार्षद का चुनाव भी इतने पैसों में नहीं लड़ा जा सकता है। वह विधायक चुनकर गए तो कांग्रेस की सरकार बनी। जनसंघ और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी दो प्रमुख विपक्षी पार्टियां थीं।

1967 में वह दुबारा विधानसभा में पहुंचे तो चंद्रभानु गुप्ता प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। चौधरी चरण सिंह ने 17 विधायकों के साथ पार्टी छोड़ दी और अन्य विपक्षी दलों के सहयोग से चंद्रभानु गुप्त की सरकार गिराकर मुख्यमंत्री बन गए। लेकिन जनता को वह निर्णय स्वीकार नहीं था। लोगों ने विधानसभा के सामने जोरदार विरोध प्रदर्शन किया।

कल्पनाथ सिंह आज के राजनीतिक हालात कुछ अलग मानते थे। वे कहते थे कि आज जातीय आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण हो रहा है जो ठीक नहीं है। आज के नेताओं के चरित्र के बारे में उनका कहना था-‘केकर केकर र्लेइं नाव कमरी ओढ़ले सारा गांव।’

नेताजी कल्पनाथ सिंह जी के संबंध पूर्व प्रधानमंत्री श्री वी पी सिंह जी एवं पूर्व प्रधानमंत्री श्री चन्द्रशेखर सिंह जी से बहुत हि प्रगाढ़ थे, राजनैतिक सुचिता रखते हुए समकालीन पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह जी ,मुलायम सिंह यादव जी,मधु लिमए, मोरारजी देसाई, हेमवती नन्दन बहुगुणा जी,जार्ज फर्नांडिस जी, रामकृष्ण हेगड़े से बहुत अच्छे संबंध रखते थे।

अपनी बेबाक बातचीत और सादगी का जीवन उनकी अलग पहचान‌ बनाता था।

वर्ष 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में चिल्लूपार से बसपा प्रत्याशी राजेश त्रिपाठी को जिताने के लिए पूर्व मंत्री कल्पनाथ सिंह ने प्रबंधन की कमान संभाली। उनके मार्गदर्शन में यहां पहली बार बसपा का खाता खुला। राजेश त्रिपाठी जीते। प्रदेश में बसपा की सरकार बनी और राजेश त्रिपाठी मंत्री बनाए गए। चार साल बाद बसपा सरकार की कार्यशैली को देख कल्पनाथ सिंह दुखी हुए, 9 मार्च 2011 को महामहिम राज्यपाल से मिल कर तत्कालीन सरकार को उसके असंवैधानिक कृत्य पर मुअत्तल करने की मांग की।

चिल्लूपार विधानसभा से चार बार विधायक और राज्यमंत्री रहे कल्पनाथ सिंह का राजनीतिक सफर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) से शुरू हुआ था। वह पहली बार 1962 में विधायक चुने गए। उसके बाद 1967, 1969 और 1977 में विधायक चुने  गए,और 1974 का चुनाव वो नहीं लड़े,वे कहते थे कि मैं पहला चुनाव 2600 रुपये खर्च करके जीता था। आज वार्ड के पार्षद का चुनाव भी इतने पैसों में नहीं लड़ा जा सकता है। वह विधायक चुनकर गए तो कांग्रेस की सरकार बनी। जनसंघ और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी दो प्रमुख विपक्षी पार्टियां थीं।

चिल्लूपार के गांधी के रूप में जाने जाने वाले बाबू कल्पनाथ सिंह के निधन के साथ ही एक राजनीतिक युग का अंत हो गया। बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में श्रमदान से बंधा बनवा कर उन्होंने चिल्लूपार में अलग तरह का सत्याग्रह किया। वर्तमान राजनीति के विद्रूप चेहरे को देख वे मर्माहत थे। उनका मानना था कि आज की राजनीति से नैतिकता गायब हो चुकी है।

बाबू कल्पनाथ सिंह के जन्म से कुछ दिनों पूर्व ही उनके पिता राजाराम सिंह का निधन हो गया। वे अपनी मां के इकलौते पुत्र थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा गांव के प्राथमिक व जूनियर पाठशाला पर हुई। मिडिल तक शिक्षा ग्रहण करने वाले श्री सिंह हिंदी के साथ अंग्रेजी, उर्दू, संस्कृत व बांग्ला भाषा के जानकार थे। बाल्यावस्था में ही उनकी शादी इसी क्षेत्र के नेवादा गांव की बतीसा देवी से हुई। उनकी तीन पुत्रियां हैं। सन 1946 में वे सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य बन कर लाल झंडे के सिपाही हो गए। वर्ष 1957 में वे पहली बार चिल्लूपार-गोला विधानसभा क्षेत्र से सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़े और कैलाशी देवी से उन्हें पराजय मिली। इस चुनाव में वे घर-घर पोस्टकार्ड भेज लोगों से वोट मांगे थे। वर्ष 1962 में वे प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से दुबारा चुनाव लड़े और मात्र 27 सौ रुपया खर्च कर तत्कालीन विधायक कैलाशी देवी को हरा कर गोरखपुर व बस्ती क्षेत्र में अपनी पार्टी का झंडा फहराने वाले पहले विधायक बने। वर्ष 1967 में सोशलिस्ट पार्टी का कांग्रेस में विलय होने के बाद वे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और निर्दल उम्मीदवार राजकोमल को हरा कर दुबारा विधानसभा में पहुंचे। 1969 के मध्यावधि चुनाव में उन्होंने जनसंघ के उम्मीदवार श्रीभागवत तिवारी को हराया। छह माह बाद कांग्रेस का विभाजन हुआ और प्रदेश सरकार के नये मंत्रिमंडल में उन्हें सिंचाई राज्य मंत्री बनाया गया। 1980 और 1985 के चुनाव में उन्होंने खुद को राजनीति से दूर रखा। 1889 में वे जनता दल के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े लेकिन पं.हरिशंकर तिवारी से हार गए।


चिल्लूपार में तमाम विकास कार्यों को बाबू साहब ने किया था, जिसमें कोठा से लेकर मझवलिया तक बंधा, राम-जानकी मार्ग सड़क निर्माण ,बाढ प्रभावित क्षेत्रों को संसाधन इत्यादि प्रमुख रहे।

आखिरी तमन्ना रह गई अधूरी

वर्ष 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में चिल्लूपार से बसपा प्रत्याशी राजेश त्रिपाठी को जिताने के लिए पूर्व मंत्री कल्पनाथ सिंह ने प्रबंधन की कमान संभाली। उनके मार्गदर्शन में यहां पहली बार बसपा का खाता खुला। राजेश त्रिपाठी जीते। प्रदेश में बसपा की सरकार बनी और राजेश त्रिपाठी मंत्री बनाए गए। चार साल बाद बसपा सरकार की कार्यशैली को देख कल्पनाथ सिंह दुखी हुए, 9 मार्च 2011 को महामहिम राज्यपाल से मिल कर तत्कालीन सरकार को उसके असंवैधानिक कृत्य पर मुअत्तल करने की मांग की।


आखिरी तमन्ना रह गई अधूरी

वर्ष 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में चिल्लूपार से बसपा प्रत्याशी राजेश त्रिपाठी को जिताने के लिए पूर्व मंत्री कल्पनाथ सिंह ने प्रबंधन की कमान संभाली। उनके मार्गदर्शन में यहां पहली बार बसपा का खाता खुला। राजेश त्रिपाठी जीते। प्रदेश में बसपा की सरकार बनी और राजेश त्रिपाठी मंत्री बनाए गए। चार साल बाद बसपा सरकार की कार्यशैली को देख कल्पनाथ सिंह दुखी हुए, 9 मार्च 2011 को महामहिम राज्यपाल से मिल कर तत्कालीन सरकार को उसके असंवैधानिक कृत्य पर मुअत्तल करने की मांग की।चिल्लूपार विधानसभा से चार बार विधायक और राज्यमंत्री रहे कल्पनाथ सिंह (90 )का राजनीतिक सफर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) से शुरू हुआ था। वह पहली बार 1962 में विधायक चुने गए। उसके बाद 1967, 1969 और 1977 में विधायक चुने गए। वे कहते हैं कि मैं पहला चुनाव 2600 रुपये खर्च करके जीता था। आज वार्ड के पार्षद का चुनाव भी इतने पैसों में नहीं लड़ा जा सकता है। वह विधायक चुनकर गए तो कांग्रेस की सरकार बनी। जनसंघ और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी दो प्रमुख विपक्षी पार्टियां थीं।चार बार विधानसभा का प्रतिनिधित्व करने वाले पूर्व मंत्री स्व•कल्पनाथ

चिल्लूपार विधानसभा से चार बार विधायक और राज्यमंत्री रहे कल्पनाथ सिंह राजनीतिक सफर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) से शुरू हुआ था। वह पहली बार 1962 में विधायक चुने गए। उसके बाद 1967, 1969 और 1977 में विधायक चुने गए,1974 का चुनाव नहीं लड़े। वे कहते हैं कि मैं पहला चुनाव 2600 रुपये खर्च करके जीता था। आज वार्ड के पार्षद का चुनाव भी इतने पैसों में नहीं लड़ा जा सकता है। वह विधायक चुनकर गए तो कांग्रेस की सरकार बनी। जनसंघ और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी दो प्रमुख विपक्षी पार्टियां थीं।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "उत्तर प्रदेश विधान सभा". मूल से 10 अगस्त 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 जून 2020.