कल्याणी (उपन्यास)
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कल्याणी (उपन्यास) | |
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[[चित्र:|150px]] कल्याणी का मुखपृष्ठ | |
लेखक | जैनेंद्र कुमार |
देश | भारत |
भाषा | हिंदी |
विषय | कल्याणी की कहानी |
प्रकाशन तिथि | 1939 |
सन 1939 में जैनेंद्र कुमार के चौथे उपन्यास कल्याणी का प्रकाशन हुआ। यह उपन्यास भी आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया है। सामान्यतः इस शैली में जो उपन्यास लिखे जाते हैं, उनमें कथा के किसी महत्वपूर्ण पात्र की ओर से ही उसका संपूर्ण विवरण प्रस्तुत किया जाता है परंतु इस उपन्यास की विशेषता यह है कि कथा का प्रस्तुतकर्ता उपन्यास का गौण पात्र है। उपन्यास की प्रधान पात्री श्रीमती असरानी हैं, जिनके नाम पर ही उपन्यास का नामकरण भी हुआ है। प्रस्तुतकर्ता ने अपने कुछ परिचितों की जीवनकथा के रूप में यह कहानी सामने रखी है। चूँकि वह स्वयं कथा में प्रधानता नहीं रखता, इसलिए उसके प्रति अपना दृष्टिकोण भी अधिकांशतः तटस्थ रखने का प्रयत्न करता है। इसी कारण कथानक के विकास-चक्र में कहीं-कहीं कुछ ऐसे अंश आ गए हैं, जो उसके प्रवाह की गति भंग कर देते हैं। प्रासंगिक रूप से जो दार्शनिक विचार इसमें समावेशित किए गए हैं, वे भी चिंतनपूर्ण नहीं है।