करघा

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कोन्या, तुर्की में ऊर्ध्वाधर करघे पर काम करती एक महिला

करघा एक प्रकार का कपड़ा बुनने का उपकरण है। किसी भी करघे का मूल उद्देश्य होता है धागों को तवान की स्थित में पकड़े रखना ताकी धागों की बुनाई करके कपड़ा बनाया जा सके। करघे की बनावट और कार्यप्रणाली भिन्न हो सकती है, लेकिन ये मूल रूप से एकसा कार्य करते हैं। सुप्रसिद्ध युवा कवि 'गोलेन्द्र पटेल' ने अपनी कविता ‘कठौती और करघा’ में कहा है कि

“रैदास की कठौती और कबीर के करघे के बीच/ तुलसी का दुख एक सेतु की तरह है/ जिस पर से गुज़रने पर/ हमें प्रसाद, प्रेमचंद व धूमिल आदि के दर्शन होते हैं!/

यह काशी/ बेगमपुरा, अमरदेसवा और रामराज्य की नाभि है।” (कवितांश : ‘कठौती और करघा’ से)

बुनाई[संपादित करें]

करघे में बुनाई की जाती है जब बुनने वाले धागों को बुने जाने बाले धागों से मिलाया जाता है।


करघों के प्रकार[संपादित करें]

वापसी पट्टा करघा[संपादित करें]


भारित ताना करघा[संपादित करें]


हथकरघा[संपादित करें]

सबसे आरम्भिक करघे थे लकड़ी के ऊर्ध्वाधर-शाफ्ट करघे, जिसमें शाफ्ट पर हेड्डल लगे होते थे। तने धागे हेड्डल और हेड्डल के बीच के स्थान से एकांतर से गुजरते हैं, ताकि शाफ्ट को उठाने पर आधे धागें ऊपर उठें और शाफ्ट को नीचे करने पर वही धागे नीचे हों-जो धागे हेड्डल के बीच से गुजरते हैं वे एक स्थान पर रहते हैं।

विद्युत करघे[संपादित करें]

powerloom या विद्युत करघे विद्युत द्वारा चलते हैं तथा हाथ करघे के अपेक्षा तीव्रता से कार्य संपादित होता है

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]