कमला भसीन

कमला भसीन (जन्म 24 अप्रैल 1946) ( मृत्यु 25 सितम्बर 2021)एक भारतीय विकास नारीवादी कार्यकर्ता, कवयित्री, लेखिका तथा सामाजिक विज्ञानी हैं। भसीन का काम, जो कि 35 साल के आरपार फैला हुआ है, लिंग, शिक्षा, मानवीय विकास और मीडिया पर केन्द्रित है।[1] वे नई दिल्ली, भारत में रहती थी । वे अपनी एनजीओ, संगत, जो कि नारीवादी साउथ एशियन नैटवर्क का हिस्सा है, और अपनी कविता "क्योंकि मैं लड़की हुँ मुझे पढ़ना है"[2] के लिए बेहतरीन जाना जाता है। ग्रामीण और शहरी ग़रीबों को तगड़ा करने के लिए उनकी सरगर्मियों की शुरुआत 1972 में राजस्थान में सरगर्म एक स्वैछिक संगठन से हुई थी। बाद में वे युनाइटड नेशंस फ़ूड एंड एग्रीकल्चरल ऑर्गनाइज़ेशन (एफ़एओ) के एनजीओ दक्षिण एशिया प्रोगराम से जुड़ी थी जहाँ उन्होंने 27 साल तक काम किया।
निधन [3]
जानी-मानी कवियत्री और महिलाओं के लिए सदैव तत्पर रहने वाली सामाजिक कार्यकर्ता भसीन का 25 सितम्बर की सुबह करीब 3 बजे निधन हो गया।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Shifa, Nazneen. ""The Womens Movement is a larger thing" - Interview with Kamla Bhasin". South Asia Citizens Web. Archived from the original on 12 दिसंबर 2013. Retrieved 7 December 2013.
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(help) - ↑ "'Men are not biologically violent' | Dhaka Tribune". archive.dhakatribune.com. Archived from the original on 18 अक्तूबर 2016. Retrieved 2016-10-18.
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(help) - ↑ सैनी, दिनेश (2021-09-25). "जानी-मानी कवियत्री और सामाजिक कार्यकर्ता कमला भसीन का निधन , राजस्थान की पूर्व मंत्री बीना काक की बहिन थीं". Naya India (in अमेरिकी अंग्रेज़ी). Archived from the original on 25 सितंबर 2021. Retrieved 2021-09-25.
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