कबीर जयंती

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यह साल में एक बार हिंदी पंचाग के ज्येष्ठ महीने में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार मई या जून का महीना होता है। ऐसा माना जाता है कि परमसंत कबीर साहेब इसी दिन 1398 ई. में काशी के लहरतारा तालाब में कमल पर शिशु रूप में सशरीर प्रकट हुए थे। उन्हें नीरू- नीमा जुलाहा दंपति उठा ले गए जिनके घर पर ही उनकी परवरिश हुई। कबीर जयंती 2021 में 24 जून को मनाया गया था और 2022 की तिथि 14 जून है। मोको कहां ढूँढे रे बंदे, मन लागा मेरा यार फकीरी में और उनके दोहे चलती चक्की देख के आदी सुप्रसिद्ध रचनाएं हैं।


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महत्व[संपादित करें]

कबीर प्रकट दिवस 1398 ईस्वी में हिंदू कैलेंडर के ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा के दिन पृथ्वी पर कबीर साहिब के प्रकट होने के दिन को चिह्नित करता है। यह विवादित है कि वह पृथ्वी पर कैसे प्रकट हुए। कुछ का मानना ​​है कि उन्होंने माता-पिता से जन्म लिया, जबकि अन्य का कहना है कि वह स्वयं "लहारतारा" झील में एक कमल के फूल पर प्रकट हुए थे। वास्तव में, लहरतारा झील पर आज एक कबीरपंथ है जो इसी विश्वास को पुष्ट करता है।

संदर्भ[संपादित करें]

  1. "संत कबीर के प्रकट उत्सव पर 100 पौधे लगाए व बांटे". Dainik Bhaskar. अभिगमन तिथि 2022-05-24.
  2. "संत कबीर प्रकट दिवस पर जुटे रामपाल समर्थक, सामूहिक विवाह में थाइलैंड से भी पहुंचा जोड़ा". Dainik Jagran. अभिगमन तिथि 2022-05-24.
  3. "कबीर प्रकटोत्सव में नहीं आएंगे राष्ट्रपति". Amar Ujala. अभिगमन तिथि 2022-05-24.