कन्हैया गीत
कन्हैया गीत राजस्थान के पूर्वी भाग में विशेषकर मीणा और गुर्जर समुदाय में प्रचलित सामूहिक गायन हैं जिसे 'नौबत' और 'घेरा' 'मजीरा' ढोलक नामक वाद्य यंत्रो की मदद से गाया जाता हैं। पूर्वी भाग में ये लोगो के बीच आपसी भाईचारे और बंधुत्व को बढ़ाने में एक अनुकरणीय योगदान दे रहे हैं।
कन्हैया दंगल
[संपादित करें]कन्हैया गीतों के आयोजन जिसमे दो या दो से अधिक पार्टियो के बीच कन्हैया गीतों का मुकाबला होता हैं, 'कन्हैया दंगल[1]' कहलाता हैं। इसका आयोजन ज्यादातर पूरे गाँव के मध्य होता हैं। इसमें भाग लेने के लिए दो या दो से अधिक गाँवो को निमंत्रण भेजा जाता हैं जिसको 'कागज़ भेजना' कहा जाता है। अगर दूसरा गाँव भाग लेने पर सहमत हो जाता है तो उसे 'कागज लेना' कहते हैं और अगर सहमत नही होता हैं तो कहा जाता हैं कि उस गाँव ने 'कागज़ झेलने' से मना कर दिया।
मेडिया
[संपादित करें]कन्हैया गीतों को एक निश्चित प्रारूप में बहुत सारे लोग एक घेरा बनाकर गाते हैं, इनको निर्देश देने के लिए बीच में कुछ मुख्य कलाकार खड़े रहते हैं, जिनको मेडिया कहा जाता है। ये मुख्य कलाकार होते हैं जो गीत के बीच में बोल देते हैं और गीत के प्रवाह को तय करते हैं। सामान्यतः एक पार्टी में 2 मेडिया होते हैं जो बारी-बारी से बोल उठाकर अपनी तरफ के लोगो को गीत के प्रवाह से जोड़ते हैं।
बोल गीत की वो कड़ी हैं जिसके माध्यम से मेडिया अपने गीत के प्रसंग को श्रोताओं को समझाता हैं। ये या तो पद्य रूप में बताये जाते हैं, या फिर साधारण बोलकर। इनके बिना गीत की दिशा को नही जाना जा सकता और इनको मेडिया द्वारा ही गाया जाता हैं। मेडिया इनके अलावा इन गीतों के आयोजन, गाने वालों को सिखाने, उनके एकत्रितीकरण का इंतज़ाम करता हैं, इस प्रकार उसकी भूमिका इनमें एक मार्गदर्शक के रूप में उभरती है और वो सम्मान का हक़दार बन जाता है, इसलिए दूसरे कलाकार भी मेडिया बनने के लिए संघर्षरत रहते हैं। इनका चयन कलाकारों को करना चाहिए परन्तु गाँव के पंच-पटेल कई बार इनका चयन करते हैं जिसमे वो पक्षपात जैसी चीज़े ले आते हैं जिसका नतीजा कलाकारों की अरुचि के रूप में सामने आता हैं और गीतों का पतन जैसी चीजे सामने आ जाती हैं।
प्रमुख गीत
[संपादित करें]इसमें भाग लेने वाले गाँवो को अलग-अलग वृत्तांतों पर गायन करने में महारत हासिल है। हर एक गाँव के अपने-अलग गीत हैं, जिनको वे अपने रुचिकर प्रसंगो से तैयार करके दंगल के दौरान प्रस्तुत करते हैं। कुछ लोकप्रिय गाँव और उनके गीत यहाँ दिए गए हैं -
क्रम संख्या | गाँव | गीत | टिप्पणी |
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1 | श्यामपुर मूँडरी | भयमाता की कथा | |
2 | गांवड़ी मीणा | गुरु वशिष्ठ बुलाय राम ने सिंहासन बैठाया, कई नाथ मेरे मन की लगन मिटा दे जीत लिए सब भूप यज्ञ मेरो अश्वमेघ यज्ञ करा दे | गुरु वशिष्ठ-राम संवाद |
3 | परीता | विलोचन राजा को पेट तो बढ़े रात दिन दूजो... | |
4 | ऐंडा | रूप बदल कर राजा बणग्यो, बढ़ता खागो जाडी को, मन को कांटों कढ़ गयो, धोखेबाज कबाड़ी को | शनिदेव का राजा चंद्रदेव से संवाद |
5 | ऐंडा | चौपड़ पर, भायली मोरू तालिया ने नीबू, नारंगी का फूल झड़ग्या बगिया में | ऊंखा एवं अनिरुद्घ के बीच का संवाद |
6 | डेकवा | pandvo ka kapat raja uttanpad | |
7 | पीलोदा | राजा मोरध्वज | |
8 | छारोदा | 1सीता जी की खोज 2रकमणीहरण कि कथा 3 भरत मीलाप | |
9 | चकेरी | ||
10 | बिच्छिदोना | हरदोल भक्त का भात | |
11. jharoda kunjawati ka bhat
12 jharoda padamawati ki katha सामाजिक प्रतिक्रिया[संपादित करें]इन गीतों को सुनने के लिए दंगलों में कई गाँवो के लोगो के आने से एक हुजूम जम जाता हैं। इस भीड़ का फायदा उठाने के लिए कई राजनेता भी इनका प्रयोग राजनीतिक लाभों के लिए करने लगे हैं और इनमें शिरकत करके लोगो के बीच लोकप्रियता हासिल करते रहते हैं।
-17 जुलाई 2010 सूचना एवं जनसंपर्क राज्य मंत्री श्री अशोक बैरवा, सवाई माधोपुर जिले के डेकवा गांव में पद दंगल के शुभारंभ अवसर-
-राजस्थान प्रदेश महिला कांग्रेस कमेटी की महासचिव इंदिरा मीणा 26 मई 2012 को मामड़ोली की ओर से सवाई सिंह जी महाराज के चौक में आयोजित पद दंगल कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह में-
क्षेत्रीय स्थिति[संपादित करें]इनका विस्तार सवाई माधोपुर, टोंक, दौसा, करौली, भरतपुर, अलवर व बूंदी के गाँवो में देखा जा सकता हैं। खासकर सवाई माधोपुर में इनका अधिक प्रचलन है। यहाँ चकेरी, जड़ावता, ढेकवा, खानदीप आदि गाँवो में इनका अधिक प्रचलन हैं। सन्दर्भ[संपादित करें]
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