कथन (तर्क)
तर्कशास्त्र में कथन (statement) ऐसा वाक्य होता है जिसमें कोई दावा करा जा रहा हो जो या तो या तो सत्य है या असत्य। यह ज़रूरी नहीं है कि यह ज्ञात हो कि कथन सत्य है या असत्य।[1][2]
उदाहरण
[संपादित करें]निम्नलिखित वाक्य कथन हैं, क्योंकि इन सब में ऐसे दावे निहित हैं जो या तो सत्य हैं या असत्य:
- अशोक प्राचीन भारत में एक सम्राट थे।
- मंगल ग्रह पर हाथी रहते हैं।
- त्रिकोण की तीन भुजाएँ होती हैं।
निम्नलिखित वाक्य तार्किक दृष्टि से कथन नहीं हैं:
- भागो!
- तुम्हारा नाम क्या है?
- हरियाणा का राजा बहुत बुद्धिमान है।
- राजमा स्वादिष्ट होता है।
इन ग़ैर-कथनीय उदाहरणों में तीसरा वाक्य कथन नहीं है क्योंकि हरियाणा का कोई राजा नहीं है - यानि इस वाक्य का दावा निरर्थक है और इसके सत्य/असत्य होने का प्रश्न ही नहीं उठता। चौथा वाक्य भी कथन नहीं है क्योंकि यह अलग-अलग व्यक्ति के लिए सही या ग़लत है (यानि पूर्ण रूप से सत्य या असत्य नहीं हो सकता)।
अन्य टिप्पणियाँ
[संपादित करें]तर्क के बारे में सात संभावनाएं-
- ऐसा है ।
- ऐसा नही है।
- ऐसा है भी और ऐसा नही भी है।
- अनिर्वचनीय
- ऐसा है अनिर्वचनीय।
- ऐसा नही है अनिर्वचनीय।
- ऐसा है भी और नही भी है अनिर्वचनीय।
तर्क न.1 का उदाहरण सहित उपियोग - १. यह घड़ा है। २. यह घड़ा नही है। ३. यह घड़ा है भी और नही भी है। ४. अनिर्वचनीय ५. यह घड़ा है अनिर्वचनीय। ६. यह घड़ा नही है अनिर्वचनीय। ७. यह घड़ा है भी और नही भी है अनिर्वचनीय।
तर्क के बारे में स्वामी महावीर ने "सप्त भंगी न्याय" दिया है स्वामी महावीर अपने किसी भी कथन से पूर्व "शायद" लगाते थे जैसे- यदि कोई स्वामी महावीर से पूछे के
क्या ईश्वर है? तो स्वामी महावीर उत्तर देते है के 1. शायद ईश्वर है 2. श्याद ईश्वर नही है, इन उत्तरों को सुन कर कोई कहे कि समझ नही आया तो महावीर कहते है कि 3. शायद ईश्वर है भी और नही भी है। अब यदि कोई महावीर से कहे कि जिस चीज के बारे में यदि साफ-साफ बात नही कही जा सकती तो क्या कहे तब महावीर कहते है 4. अनिर्वचनीय। 5. शायद ईश्वर है अनिर्वचनीय। 6. शायद ईश्वर नही है अनिर्वचनीय। 7. शायद ईश्वर है भी और नही भी है अनिर्वचनीय।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ A. G. Hamilton, Logic for Mathematicians, Cambridge University Press, 1980, ISBN 0-521-29291-3.
- ↑ Rouse, David L., "Sentences, Statements and Arguments", A Practical Introduction to Formal Logic. (PDF)