कट ऑफ मूल्य

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(कट ऑफ प्राइज से अनुप्रेषित)

कोई कंपनी लोगों के बीच जाने हेतु एक अग्रणी मर्चेट बैंकर को नियुक्त करती है, जिसे बुक रनिंग लीड मैनेजर कहते हैं। ये मर्चेंट बैंकर एक सूचीपत्र (प्रॉस्पेक्टस) तैयार करता है और उसे नियामक संस्था भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के पास पंजीकृत कराता है। जब मूल्य पट्टी स्थायी होती है तो भावी निवेशकों को आमंत्रित किया जाता है कि वे कीमत तय करें। इस प्रक्रिया से शेयरों की मांग कितनी होगी, यह समझने में भी सहायता मिलती है। यदि लीड मैनेजर को ये प्रतीत होता है, कि नीलामी की अधिक संभावना नहीं है तो वह इसे रद्द भी कर सकता है। विभिन्न कीमतों पर बोली का आकलन करने के बाद जारीकर्ता अंतिम कीमतों का निर्धारण करता है, जिस पर बिल्डिंग प्रक्रिया पूरी होने के बाद शेयरों को निवेशकों को जारी किया जाता है। इसको कट ऑफ मूल्य (कट ऑफ प्राइज) कहा जाता है। जो इसमें सफल रहते हैं उन्हें शेयरों का आवंटन कर दिया जाता है और शेष को उनकी राशि वापस कर दी जाती है।