ऐतिहासिक स्रोत

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ऐतिहासिक स्रोत उन मूल स्रोतों को कहते हैं जिसमें महत्वपूर्ण ऐतिहासिक जानकारी वर्णित हो। इनको 'ऐतिहासिक सामग्री' या 'ऐतिहासिक आंकड़े' भी कहते हैं। ये स्रोत हमें इतिहास के बारे में मूलभूत सूचना प्रदान करते हैं। [1] इन स्रोतों का उपयोग इतिहास का अध्ययन करने के लिए 'संकेत या सुराग' के रूप में किया जाता है।

भारतीय इतिहास के स्रोत[संपादित करें]

साहित्यिक स्रोत[संपादित करें]

  • राजत्रङ्गिणी (कल्हण द्वारा रचित)
  • पृथ्वीराजरासोचन्दबरदाई द्वारा रचित
  • बीसलदेव रासो – नरपति नाल्ह
  • हम्मीर रासो – जोधराज
  • हम्मीर रासो – शार्ङ्गधर
  • संगत रासो – गिरधर आंसिया
  • बेलिकृष्ण रुकमणीरी – पृथ्वीराज राठौड़
  • अचलदास खीची री वचनिका – शिवदास गाडण
  • कान्हड़ दे प्रबन्ध – पदमनाभ
  • पातल और पीथल – कन्हैया लाल सेठिया
  • धरती धोरा री – कन्हैया लाल सेठिया
  • लीलटास – कन्हैया लाल सेठिया
  • रूठीराणी, चेतावणी रा चूंगठिया – केसरीसिंह बारहड
  • राजस्थानी कहांवता – मुरलीधर ब्यास
  • नैणसी री ख्यात – मुहणौत नैणसी
  • मारवाड रे परगाना री विगत – मुहणौत नैणसी
  • हमीर महाकाव्य -- यह नयन चंद्र सूरी द्वारा लिखा गया है इसमें रणथंबोर के चौहानों का इतिहास दिया गया है।
  • राजवल्लभ -- यह मंडन द्वारा लिखा गया है और १५वीं सदी के सैन्य संगठन, स्थापत्य कला, एवं मेवाड़ की जानकारी देता है।
  • राजविनोद -- यह भट्ट सदाशिव द्वारा लिखा गया है और मेवाड़ के गुहिल एवं सोलहवीं शताब्दी में राजस्थान के सामाजिक परिवेश की जानकारी देता है।
  • एकलिंग महात्म्य -- यह कान्ह व्यास द्वारा लिखा गया है जिसमें मेवाड़ के गुहिलों का इतिहास है।
  • करमचंद वंशों कीर्तन काव्यम् -- यह जयसोम द्वारा लिखा गया है जो बीकानेर के राठौरों का इतिहास बीकानेर दुर्ग की निर्माण की जानकारी देता है।
  • अमरसार -- पंडित जीवाधर द्वारा रचित ग्रन्थ जो महाराणा प्रताप एवं महाराणा अमर सिंह इतिहास की जानकारी देता है।
  • अमर काव्य वंशावली -- रणछोड़ भट्ट द्वारा लिखी गई है जो मेवाड़ के गुहीलो का विशेष कर महाराणा राजसिंह की गाथा का वर्णन है।
  • राज रत्नाकर -- सदाशिव द्वारा लिखा गया है और महाराणा राज सिंह सिसोदिया के इतिहास की जानकारी मिलती है।
  • अजीतोदय -- भट्ट जगजीवन द्वारा लिखा गया है और जोधपुर के राठौरों का तथा अजीत सिंह राठौड़ का इतिहास बताता है।
  • भट्टिकाव्य -- भट्टि द्वारा लिखा गया है १५शताब्दी में जैसलमेर की राजनीतिक एवं सामाजिक स्थिति पर महत्वपूर्ण प्रकाश डालता है। ● बांकीदास की ख्यात - महाराजा श्री मानसिंह के शासनकाल में बारहठ बांकीदास ने ख्यात की रचना की थी। इसमें विविध राजपूत वंशों का वर्णन है। जांगलू पहले सांखलो के राज मे था।मांगलिया मेहाजी की पूजा करते हैं। राठोङो के समस्त राजाऔ का संक्षिप्त परिचय है।उमादे भटियाणी, मालदेव की रानी थी। चन्द्र सेन की मा ने चन्द्रसेन को श्राप दिया कि उसका राज नहीं रहेगा। मालदेव की टीपू नाम की पङदायत के दो पुत्र थे,महेश और डुंगरसी। इनके वंशज महेशदासोत और डूंगरोत जोधा कहलाये। महाराजा गजसिह का ससुर सिखरो चौहान था। जीवो घसियारो,अमियो डूम,बखतो साहणी,विजिया देवासी ये सब महाराजा रामसिंह के घनिष्ठ चाकर थे। गुलाब राय, महाराजा श्री की पासवान बनने से पहले अणदराम के घर बडारन थी। [2]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. What Are Historical Sources?
  2. मूल नाम (किशनसिंह परमार), जिन विजय सूरी (1956). बांकीदास की ख्यात. जोधपुर: राजस्थान राज्य प्राच्य विधा प्रतिष्ठान जोधपुर. पपृ॰ 1, 19, 28, 46.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]