शरद अरविंद बोबडे

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न्यायमूर्ति
शरद अरविन्द बोबडे

पद बहाल
18 नवम्बर 2019 – 23 अप्रैल 2021
नियुक्त किया राम नाथ कोविंद
पूर्वा धिकारी रंजन गोगोई
उत्तरा धिकारी एन वी रमना

पद बहाल
12 अप्रैल 2013 – 17 नवम्बर 2019
नियुक्त किया प्रणब मुखर्जी

पद बहाल
16 अक्टूबर 2012 – 11 अप्रैल 2013

जन्म 24 अप्रैल 1956 (1956-04-24) (आयु 67)
नागपुर, महाराष्ट्र
राष्ट्रीयता भारतीय
व्यवसाय न्यायाधीश

शरद अरविन्द बोबडे एक भारतीय न्यायाधीश तथा वर्तमान में भारत के मुख्य न्यायाधीश है। वे पूर्व में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रह चुके है तथा मुंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे।[1]न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे भारत के 47 वें मुख्य न्यायाधीश है।

शरद अरविन्द बोबडे का जन्म 24 अप्रैल 1956 में महाराष्ट्र के नागपुर में हुआ। उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से कला एवं कानून में स्नातक की उपाधि हासिल की। वर्ष 1978 में महाराष्ट्र बार परिषद में उन्होंने बतौर अधिवक्ता अपना पंजीकरण कराया। उन्होने मुम्बई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ में 21 साल तक अपनी सेवाएं दी। वे वर्ष 1998 में वरिष्ठ अधिवक्ता बने और 29 मार्च 2000 में मुम्बई उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। 16 अक्टूबर 2012 को वे मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश बने। 12 अप्रैल 2013 को उनकी पदोन्नति सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति के रूप में हुई।

प्रमुख निर्णय[संपादित करें]

  • अयोध्या राम जन्मभूमि पर फैसला देकर 1950 से चल रहे विवाद का पटाक्षेप करने वाली 5 जजों की बेंच में जस्टिस बोबडे भी थे।
  • अगस्त 2017 में तत्कालीन मुख्य न्यायधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता में 9 जजों की पीठ ने एकमत से निजता के अधिकार को भारत में संवैधानिक रूप से संरक्षित मूल अधिकार होने का फैसला दिया था। इस पीठ में भी जस्टिस बोबडे शामिल थे।
  • हाल ही में न्यायमूर्ति बोबडे की अध्यक्षता वाली 2 सदस्यीय पीठ ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) का प्रशासन देखने के लिए पूर्व नियंत्रक एवं महालेखाकार विनोद राय की अध्यक्षता में बनाई गई प्रशासकों की समिति को निर्देश दिया कि वे निर्वाचित सदस्यों के लिए कार्यभार छोड़ें।
  • न्यायमूर्ति बोबडे की अध्यक्षता में ही सुप्रीम कोर्ट की 3 सदस्यीय समिति ने पूर्व मुख्य न्यायधीश गोगोई को उन पर न्यायालय की ही पूर्व कर्मी द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोप में क्लीन चिट दी थी। इस समिति में न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा भी शामिल थीं। न्यायमूर्ति बोबडे 2015 में उस 3 सदस्यीय पीठ में शामिल थे जिसने स्पष्ट किया कि भारत के किसी भी नागरिक को आधार संख्या के अभाव में मूल सेवाओं और सरकारी सेवाओं से वंचित नहीं किया जा सकता।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Two judges sworn in Supreme Court, strength raised to 30" [दो जजों को शपथ ग्रहण करवाने के बाद संख्या बढ़कर ३० हुई] (अंग्रेज़ी में). ज़ी न्यूज़. १२ अप्रैल २०१३. मूल से 31 अक्तूबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 अक्तूबर 2019.