एनएसईएल केस

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एनएसईएल केस नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड में 2013 में हुई फाइनेंशियल टेक्नोलॉजीज इंडिया लिमिटेड से जुड़े एक पेमेंट डिफॉल्ट से संबंधित है। जब कमोडिटीज़ मार्केट रेगुलेटर के बाद पेमेंट डिफॉल्ट हुआ, फॉरवर्ड मार्केट्स कमीशन (एफएमसी) ने एनएसईएल को लॉन्चिंग कॉन्ट्रैक्ट्स रोकने का निर्देश दिया। इसके चलते जुलाई 2013 में एक्सचेंज को बंद करदिया गया।[1]

एक दिन के अनुबंध में फॉरवर्ड ट्रेडिंग का संचालन करने के लिए एफसीआरए की धारा 27 के तहत सरकार द्वारा तीन स्पॉट एक्सचेंज, एनएसईएल, एनएसपीओटी और नेशनल एपीएमसी को छूट दी गई थी। यह आयतन बढ़ाने के लिए किया गया था ताकि उनकी आर्थिक व्यवहार्यता में सुधार हो। जबकि वित्तीय प्रौद्योगिकी (भारत) ने एनएसईएल को बढ़ावा दिया एवं उसे 5 जून,2007 को सामान्य छूट प्रदान की गई, जबकि NSPOT और राष्ट्रीय एपीएमसी को क्रमशः23 जुलाई, 2008 और 11 अगस्त, 2010 को समान प्रावधानों के तहत छूट प्राप्त हुई।[2] एफएमसी की त्रुटिपूर्ण सिफारिशों पर, उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने एनएसईएल को सभी मौजूदा अनुबंधों को निपटाने और किसी भी नए अनुबंध का शुभारंभ नहीं करने का आदेश दिया, जिससे संकट पैदा हो गया।

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) के नेतृत्व में जांच से एनएसईएलमामले में दलालों और डिफॉल्टरों की भूमिका का पता चला। दलालों ने निश्चित रिटर्न का आश्वासन देकर अपने ग्राहकोंको एनएसईएल उत्पादोंको गलत तरीके से बेचा। डिफाल्टरोंने शेयरों में कमी की और नकली वेयरहाउस रसीदें तैयार कर पूरा डिफॉल्ट पैसा काट दिया गया।[3][4]

पहलेपहल, यह अनुमान लगाया गया था कि एनएसईएल संकटसे प्रभावित कुल 13,000 व्यापारिक ग्राहक थे। इन ग्राहकों की वास्तविकता एवं पात्रता संदिग्ध थी। एनएसईएल और अन्य अधिकारियों के बार-बार अपने सदस्यों / दलालों से सभी13,000 व्यापारिक ग्राहकों के बारे में अपने ग्राहक (केवाईसी) विवरण को प्रस्तुतकरने का आग्रह करने के बावजूद यह उपलब्ध नहीं कराया गया बल्कि विरोध किया गया । मुंबई उच्च न्यायालय की हाई पावर समिति ने यह भी सुझाव दिया कि दलालों को वास्तविक दावेदारों के हितों की रक्षा केलिए इस डेटा को एनएसईएल को प्रस्तुत करना चाहिए। इस पहलू पर विचार करते हुए एसएफआईओ, जो इस मामले की जांच कर रहा है ने हाल ही में दलालों और व्यापारिक ग्राहकों को एक विशिष्ट प्रारूप में विभिन्न जानकारी प्रदान करने के लिए कहा है जिसमें केवाईसी संबंधित जानकारी भी शामिल है।[5][6]

अंजनी सिन्हा, बर्ख़ास्त सीईओ और कंपनी एमडी, ने अपने प्रथम हलफनामे में एनएसईएल संकट की पूरी ज़िम्मेदारी ली।[7] हालांकि, गिरफ्तारीके बाद अंजनी सिन्हा ने उसे वापस ले लिया। अपनी रिहाई के पश्चात, सिन्हा ने प्रवर्तन निदेशालय को दिए अपने बयान में अपने प्रथम हलफनामे को स्वीकारकिया।.[8]

30 जुलाई, 2019 को, बॉम्बे हाईकोर्ट ने पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री पी.चिदंबरमऔर दो अन्य नौकरशाहों - के.पी.कृष्णन और रमेश अभिषेक को 63 मून्स टेक्नोलॉजीज़ द्वारा दायर 10,000 करोड़ रुपये के क्षति सूट और एनएसईएल भुगतान डिफ़ॉल्ट संकटमें उनकी भूमिकाके सम्बन्ध में तलब किया है।[9] बॉम्बे हाई कोर्ट ने याचिका को स्वीकार कर लिया है और 63 मून्स टेक्नोलॉजीज़ को चिदंबरम और अन्य पर मुकदमा चलाने की अनुमति दी है।[10] इसके चलते, उन्हें 15 अक्टूबर, 2019 को अदालत में उपस्थित रहने के लिए भी कहा गया।[11]

मुंबई के ईओडब्ल्यूने एमपीआईडी अधिनियमके तहत एनएसईएल के अधिकारियों और 24 डिफॉल्टरों को बुक किया था। अगस्त 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एमपीआईडी के आवेदन को अस्वीकार कर दिया। इसके अलावा, परिसंपत्तियों की रिहाई का निर्देश देने वाले फैसले पर स्टे लगाने की भी याचिका खारिज कर दी गयी।[12]

इतिहास[संपादित करें]

तत्कालीन प्रधान मंत्री के दृष्टिकोण के अनुरूप निर्मित और कृषि उपज के लिए देश भर मेंएकल बाजार बनाने हेतु नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनएसईएल) की संकल्पना वर्ष 2004 में की गई थी। 2003-2006 में किए गए सरकारके आर्थिक सर्वेक्षणों ने भी कृषि उत्पादों के लिए एक राष्ट्रीय-स्तर, एकीकृत बाजार स्थापित करने की संस्तुती की जिस पर योजना आयोग ने भी हामि भरी जोकि स्पॉट बाजारों के लाभों से अवगत था। इसके बाद रंगराजन कमेटी बनी, जिसने राष्ट्रीय बाजार की मांग की।[13]

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय (एमसीए) के निमंत्रण के बाद मल्टीकमोडिटीज एक्सचेंज लिमिटेड (एमसीएक्स), जो पहले एनएसईएल की एक सहयोगी संस्था थी, ने वस्तुओं के लिए एक राष्ट्रव्यापी स्पॉट बाजार स्थापित करने हेतु परियोजना रिपोर्ट प्रस्तुत की। एनएसईएल की स्थापना 18 मई 2005 को महाराष्ट्र राज्य में कंपनी अधिनियम 1956 के तहत एक पंजीकृत कार्यालय के रूप में की गई थी। एनएसईएल को एमसीएक्स और एफटीआईएल के नामित लोगों द्वारा निगमित किया गया था।[14]

तत्पचात, स्पॉट एक्सचेंजों में इक्विटी शेयर होल्डिंग रखने वाले विनियमित कमोडिटीज एक्सचेंजों के बीच विनियामक चिंताओं के मद्देनजर 2005 में एफटीआईएल के साथ एमसीएक्स और नामितियों की शेयर होल्डिंग को हस्तांतरित एवं समेकित किया गया था। 5 जून 2007 के दिन एनएसईएल को उपभोक्ता मामले विभाग (डीसीए ) द्वारा स्पॉट एक्सचेंज के रूप में अनुमोदित किया गया। नेशनल स्पॉट एक्सचेंजलिमिटेड ने 15 अक्टूबर, 2008 को लाइव ट्रेडिंग शुरू की तथा स्वयं को देश के प्रथम कमोडिटी स्पॉट एक्सचेंज के रूप में विकसित किया । कुछ वर्षों के भीतर छह राज्यों की सरकारों ने एनएसईएल को एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग (रेगुलेशन) (एपीएमसी ऐक्ट) अधिनियम के तहत लाइसेंस जारी किए क्योंकि उनके स्वयं के एपीएमसीयों ने गरीब किसानों के साथ प्रवंचन किया। एनएसईएल ऐसे किसानों के लिए एक वरदान साबित हुआ क्योंकि वे अब अपनी उपज प्रतिस्पर्धी दरों पर बेच सकते थे और बेहतर मुनाफा कमा सकते थे। एनएसईएलने पारदर्शी स्पॉटप्राइस डिस्कवरी का भी नेतृत्व किया जिससे इलेक्ट्रॉनिक स्पॉट बाजारों में वृद्धि हुई। एक्सचेंज को भारत के राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नाफेड ) द्वारा भी बढ़ावा दिया गया था। अगस्त 2011 में एफएमसी को कमोडिटी बाजार में नियामक शून्यक को भरने के लिए नामित एजेंसी के रूप में नियुक्त किया गया था। एफएमसी द्वारा विलक्षण क्रियाओं की एक श्रृंखला ने बाजार को स्तब्ध कर दिया। परिणामस्वरूप,एनएसईएल को 31 जुलाई, 2013 को सभी अनुबंधों के व्यापार को स्थगित करना पड़ा।[1]

आर्थिक अपराध शाखा, मुंबई पुलिस - करवाई[संपादित करें]

वर्तमान में मुंबई पुलिस आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) इस मामले की जाँच कर रहा है।[15] 9 अक्टूबर 2013 को एनएसईएल के सहायक उपाध्यक्ष (व्यवसाय विकास), अमित मुखर्जी की भुगतान संकट में पहली गिरफ्तारी हुई।[16] इसके बाद,10 अक्टूबर 2013 को मुंबई पुलिस के ईओडब्ल्यू ने एनएसईएल के पूर्व सहायक उपाध्यक्ष जय बहुखंडी को गिरफ्तार किया। पूर्व सीईओ और एमडी, अंजनी सिन्हा की इस मामले में तीसरी गिरफ्तारी थी; एक सप्ताह बाद उन्हें 17 अक्टूबर 2013 को गिरफ्तार कर लिया गया। ईओडब्ल्यू ने एमपीआईडी (महाराष्ट्र प्रोटेक्शन ऑफ इन्वेस्टर्स डिपॉजिट) एक्ट लागू किया, जिसके तहत वह निवेशकों के हितों के लिए अभियुक्तों की संपत्ति को संलग्न कर सकता था । एनएसईएल के सबसे बड़े कर्जदार एनके प्रोटींस लिमिटेड के श्री नीलेश पटेल को 22 अक्टूबर 2013 को गिरफ्तार किया गया,जो बाद में जमानत पर छूट गए। 5 मार्च 2014 को दुनार ब्रांड राइस की मालिक कंपनी पीडी अग्रोप्रोसेसर्स के श्री सुरिंदर गुप्ता को ईओडब्ल्यू द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। श्री गुप्ता ने ईओडब्ल्यू, एनएसईएल और निवेशकों के साथ विलंब करने की कोशिश की।

EOW ने स्वस्तिक ओवरसीज़ अहमदाबाद के राजेश मेहता को भी गिरफ्तार किया जो 1 अप्रैल 2014 को कर्ज लेने वालों में से एक थे। 6 जनवरी 2014 को मुंबई की अपराध शाखा के ईओडब्ल्यू ने एनएसईएल भुगतान संकट के संबंध में अपनी पहली चार्जशीट प्रस्तुत की। आरोप पत्र में निम्नलिखित पांच अभियुक्तों के नामों का उल्लेख है:

  • अमित मुखर्जी (पूर्व उपाध्यक्ष, एनएसईएल, बिज़नेस डेवलपमेंट)
  • जय बहुखंडी (एनएसईएल मेंपूर्व एवीपी)
  • अंजनी सिन्हा (एनएसईएल के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी)
  • नीलेश पटेल (एनके प्रोटीन के एमडी)
  • अरुणकुमार शर्मा (लोटस रिफाइनरीज के प्रमोटर और निदेशक)

अक्टूबर 2013 में, ईओडब्ल्यू ने एनएसईएल मामले में एमपीआईडी अधिनियम के तहत एक मामला दर्ज किया। इस प्रक्रिया में, ईओडब्ल्यू ने बकाएदारों से देश भर में 4,500 करोड़ सलंग्न किए एवं एमपीआईडी अदालत ने उन्हें जमा करने की प्रक्रिया शुरू की ताकि जमाकर्ताओं का बकाया वसूल किया जासके। ईडी ने बकाएदारों की संपत्तियां संलग्न की, जिनकी कीमत लगभग रु 800 करोड़ रुपए थी।[17]

ईओडब्ल्यू ने डिफॉल्टर कर्जदारों नीलेश पटेल (एनके प्रोटीन), अरुण शर्मा (लोटस रिफाइनरीज), सुरिंदर गुप्ता (पीडी एग्रो) और इंद्रजीत नामधारी(नामधारी फूड्स) को गिरफ्तार किया। 11 अगस्त 2014 को, ईओडब्ल्यू ने हाल ही में एनएसईएल पर छह डिफ़ॉल्ट कंपनियों से निम्नलिखित अधिकारियों को गिरफ्तार किया-

  • कैलाश अग्रवाल (आर्क इम्पोर्ट्स)
  • नारायणम नागेश्वर राव (एनसीएस शुगर)
  • बी वी एचप्रसाद (जुग्गोरनॉट प्रोजेक्ट्स)
  • वरुण गुप्ता (विमलादेवी एग्रोटेक)
  • चंद्र मोहन सिंघल (विमलादेवी एग्रोटेक)
  • घंटकेश्वर राव (स्पिन-खाट कपड़ा)
  • प्रशांत बुरुगु (मटकोर स्टील एंड ऑयल्स)

मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने जिग्नेश शाह और श्रीकांत जावलेगेकर को असहयोग के आरोप में 7 मई, 2014 को गिरफ्तारकिया।[18] हालांकि, रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि शाह ईओडब्ल्यू के साथ पूरी तरह से सहयोग कर रहे हैं और 7 बार समन किए जाने के बावज़ूद ईओडब्ल्यू कार्यालय में 21 बार गए हैं। इतना ही नहीं, जांच की सुविधा के लिए, एनएसईएल ने ईओडब्ल्यू कार्यालय में सर्वर भी तैनात किए थे।[19]

बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें 22 अगस्त 2014 को जमानत पर रिहा किया गया ।अदालत ने देखा कि "... 25 अलग-अलग डिफॉल्टर कंपनियों का एफआईआर में उल्लेख किया गया है। 5,600 करोड़ रुपये के भुगतान डिफ़ॉल्ट का अनुमान है, लेकिन राशि आवेदक (जिग्नेश शाह) के पास नहीं गई है ।[20]

मनी लॉन्ड्रिंग में एनएसईएल के डिफॉल्टरों की सहायता करने के लिए प्रवर्तन निदेशालय ने उन्हें 12 जुलाई 2016 को गिरफ्तार किया।[21] एक विशेष पीएमएलए अदालत ने ईडी द्वारा गिरफ्तारी को अवैध करार देते हुए शाह को जमानत दी थी।[22][23] दोनों पक्षों को सुनने के बाद मुंबई के विशेष पीएमएलए कोर्ट के न्यायाधीश पीआर भावके ने फैसला सुनाया: "ईडी वकील मुझे संतुष्टकरने में विफल रहा कि यह गिरफ्तारी एक अलग अपराध के लिए है ... मुझे इस विवाद में कोई बल नहीं मिला कि ईडी एक पूरक शिकायत दर्ज करना चाहता था। आवेदक (शाह) के खिलाफ एफटीआईएल के अध्यक्ष के रूप में की गई जाँच के संबंध में ईडी ने औसतन जवाब दिया है कि आवेदक को विशेष पीएमएलए मामले संख्या 04/2015 में गिरफ्तार नहीं किया गया है बल्कि अन्य ईसीआईआर में उनकी गिरफ़्तारी की गयी है। ईडी अदालत को संतुष्ट करने में विफल रहा है कि आवेदक की गिरफ्तारी विभिन्न ईसीआईआर में कैसे हुई है"

जांच एजेंसियों पर आरोप[संपादित करें]

एनएसईएल के निवेशकों ने अगस्त 2013 में एनआईएफ के नाम से एक संगठन का गठन किया। हालांकि, जो निवेशक एनआईएफ में दलालों की भूमिका से असंतुष्ट थे, उन्होंने एनआईएजी (एनएसईएल इन्वेस्टर्स एक्शनग्रुप) के नाम से एक निवेशक संगठन का गठन किया। एनआईएजी ने प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई को कई पत्र लिखकर इस मामले की जाँच में शिथिलता का आरोप लगाया है। 17 सितंबर,2019 को दिल्ली पीएमएलए अपीलय न्यायाधिकरण ने निर्देश दिया कि 2016-2017 में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जिग्नेश शाह की 1,000 करोड़ रुपये से अधिक की परिसंपत्तियों से संबंधित अनंतिम अनुलग्नक के निर्देश दिए गए एवं अधिग्रहण किया गया। यह कार्रवाई कंपनी द्वारा दायर एक अपील के जवाब में हुई | यह आदेश न्यायमूर्ति मनमोहन सिंह, ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष एवं जीसी मिश्रा (सदस्य) द्वारा पारित किया गया था।[24][25][26]

संदिग्ध एनएसईएल-एफटीआईएल ईमेल डेटा/ सर्वर[संपादित करें]

एनएसईएल-एफटीआईएल ईमेल सर्वर के साथ छेड़छाड़ के मुंबई पुलिस ईओडब्ल्यू पर गंभीरआरोप हैं। जबकि पहले इसकी पुष्टि मुंबई ईओडब्ल्यू के राजवर्धन सिन्हा ने की थी कि एनएसईएल/ एफटीआईएल का मेल सर्वर दुर्घटनाग्रस्त हो गया है और उसे जांच के लिए बैंगलोर भेज दिया गया है। केतन शाह, प्रमुख, एनएसईएल इन्वेस्टर्स एसोसिएशन - एनआईएजी ने अदालत को गुमराह करने के लिए जांच एजेंसियों पर आरोप लगाए हैं। मुंबई पुलिसके ईओडब्ल्यू ने एनएसईएल संकट की जांच के लिए महिंद्रा डिफेंस आर्म को डिजिटल फॉरेंसिक ऑडिटर नियुक्त किया है।[27][28]

प्रमोटरों/ एफटीआईएल / जिग्नेश शाह की भूमिका[संपादित करें]

जिग्नेश शाह 5 अगस्त 2013 को टीवी पर आए और वित्तीय निपटान का वादा किया। उन्होंने मामले को देखने के लिए एक समिति गठित करने का भी वादा किया।[29] जिग्नेश शाह को मुंबई पुलिस ईओडब्ल्यू ने 7 मई 2014 को एनएसईएल घोटाले में T + 2 और T + 25 धोखाधड़ी अनुबंधों के अनुरूप उनकी भूमिका के लिए गिरफ्तार किया था।[30]

सीबीआई कार्रवाई[संपादित करें]

भारत की प्रमुख जांच एजेंसी केंद्रीय जांच ब्यूरो ने विभिन्न एनएसईएल और उधारकर्ताओं के कार्यालयों के साथ-साथ जिग्नेश शाह के निवास पर भी छापा मारा। यह भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के अन्तर्गत एमएमटीसी और पीईसी-सार्वजनिक क्षेत्र की सार्वजनिक इकाइयों के लिए जमा किए गए धन के लिए किया गया। साथ ही साथ, प्राथमिकी भी दर्जकी गयी ।[31] इस एफआईआर में जिग्नेश शाह और जोसेफ मैसी पर भी मुकदमा दर्ज किया गया है। हालाँकि, निवेशकों ने शिकायत की कि सीबीआई ने इस मामले में शामिल नेताओं / नौकरशाहों और एफटीआईएल समूह के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। सीबीआई ने आरोप पत्र दायरकिया है जहां उन्होंने पीएसयूपीईसी और एमएमटीसी को धोखा देने के लिए जिग्नेश शाह और एफटीआईएल सहित 20 संस्थाओं पर आरोप लगाए हैं|[32]

वास्तव में, एनएसपीओटी ने डीसीए द्वारा उसे भेजे गए कारण बताओ नोटिस का भी जवाब नहीं दिया। फिर भी इसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। दूसरी ओर, एनएसईएल जो 12 जुलाई 2013 को उनकी परिपक्वता पर चल रहे अनुबंधों को बंद करने के लिए एवं किसी भी नए अनुबंध को लॉन्च नहीं करने के लिए निर्देशित किया गया के विपरीत एनएसपीओटी को डेढ़ वर्ष से अधिक क्रमिक समापन की अनुमति दी गई थी। यदि एनएसईएल को इसी तरह की दीर्घकालिक व्यवस्था प्रदान की गई होती तो भुगतान संकट उत्पन्न नहीं होता।[33]

उपभोक्ता मामले मंत्रालय, एफएमसी और यूपीएसरकार की भूमिका[संपादित करें]

27 अप्रैल 2012 के एक कारण बताओ नोटिस में,उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने एनएसईएल से ट्रेडों के बारे में कुछ स्पष्टीकरण मांगा। एनएसईएल ने तुरंत इस नोटिस का जवाब दिया, लेकिन कारण बताओ नोटिस के बाद डेढ़ साल तक मंत्रालय ने कोई कार्रवाई नहीं की। इसके बजाय, केवल एफएमसी की सिफारिश पर उसने 12 जुलाई, 2013 को एनएसईएल को अचानक बंद करने का आदेश दिया। एफएमसी ने यू-टर्न लिया और 19 जुलाई, 2013 को उपभोक्ता मामले विभाग(डीसीए) को लिखा यह कहते हुए कि छूट अधिसूचना इस बात पर चुप थी कि क्या छूट एफसीआर अधिनियम के सभी या विशिष्ट प्रावधानोंपर लागू थी। डीसीए के आदेश के अनुसार, एनएसईएल ने 31 जुलाई, 2013 को व्यापार बंद कर दिया। एक्सचेंज मार्केट के अचानक बंद होने से 5600 करोड़ रुपये का भुगतान डिफॉल्ट हुआ।[34]

चोकसी और चोकसी द्वारा किया गया फोरेंसिक ऑडिट[संपादित करें]

कुछ निवेशक जो एनएसईएल द्वारा ई-सीरीज़ सेटलमेंट को पटरी से उतारना चाहते थे की याचिका के बाद, बॉम्बे हाईकोर्ट ने एफएमसी को एनएसईएल के ई-सीरीज़ उत्पादों के लिए फोरेंसिक ऑडिटर नियुक्त करने का निर्देश दिया। चोकसी और चोकसी नाम से एक ऑडिट फर्म को यह कार्य सौंपा गया और उनकी ऑडिट रिपोर्ट में एनएसईएल पर कॉन्ट्रैक्ट के बारे मे क्लीन चिट दी गई जिससे एफएमसी को ई-सीरीज़ सेटलमेंट के लिए एनओसी देनी पड़ी। अंततः ई-सीरीज़ के 40 से अधिक वास्तविक दावेदारों को फायदा हुआ।[35][36]

वित्तीय खुफिया इकाई (FIU) का अवलोकन[संपादित करें]

एफआईयू (वित्त मंत्रालय)ने कहा कि एनएसईएल फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट्स (रेगुलेशन) एक्ट के दायरे में आता है और इसलिए कानून के तहत इन दायित्वों में से कई में विफल होने का दोषी है। काले धन पर नजर रखने वाले ने एनएसईएल पर धन शोधन निवारण अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन के कई मामलों के लिए 1.66 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है । प्रहरी ने आगे कहा कि यह प्रमाद जानबूझकर किया गया है, अतएव दंड के योग्य है। इसके तहत एनएसईएल पर प्रत्येक विफलता के लिए 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया जो कुल रु 1 .66 हुआ।[37]

दलालों / गिरफ्तारियों की भूमिका[संपादित करें]

सेबी ने शीर्ष पांच दलालों को जारी किया है - आनंद राठी कमोडिटीज, इंडिया इंफोलाइन कमोडिटीज (आईआईएफएल), जियोफिन कॉमरेड, मोतीलाल ओसवाल कमोडिटीज, और फिल्ल कमोडिटीज। उनपर डिलीवरी का वादा किए बिना रिटर्न सुनिश्चित करने का आश्वासन देकर एनएसईएल के अनुबंधो को गलत तरीके से बेचने का आरोप है ।[38]

चूंकि दलालों पर ग्राहक केवाईसी के बड़े पैमाने पर हेरफेर करने, कई सौदों के लिए क्लाइंट कोड के बड़े पैमाने पर संशोधन और उनके एनबीएफसी के माध्यम से बेहिसाब धन के उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया है,इसलिए सेबी ने उनसे पूछा है कि क्यों उन्हें "फिट और उचित" घोषित किया जाना चाहिए जबकि उन्हें प्रतिभूति नियमों के उल्लंघन का दोषी पाया गया है। नोटिस में,सेबी ने इन दलालों को अवगत कराया है कि प्रतिभूति बाजार में एक बाजार मध्यस्थ के रूप में आपकी निरंतरता इस बाजार के हित के लिए हानिकारक है।

पहले कारण बताओ नोटिस में, आरोपों में कई अनियमितताएं/ उल्लंघन शामिल हैं जैसे निवेशकों को झूठे आश्वासन, गलत और भ्रामक बयान, सुनिश्चित रिटर्न के साथ बेचे गए उत्पाद और जोखिम-मुक्त उत्पादों के रूप में बेचे जाने वाले उत्पाद, ग्राहकों की फंडिंग और उन व्यापारों के लिए ग्राहक संशोधन जो एनएसईएल के साथ व्यापार करते थे|[39]

"पंजीकरण प्रमाण पत्र प्रदान करने के लिए आवेदक को स्टॉक ब्रोकर विनियमों के विनियमन के संदर्भ में एक 'फिट और उचित' व्यक्ति होना चाहिए (सेबी (इंटरमेडियरीज) विनियम 2008 की अनुसूची II के साथ पढ़ें)। ध्यान देने योग्य है कि स्टॉक ब्रोकर को हर समय स्टॉक एक्सचेंज नियमों की अनुसूची II में निर्दिष्ट नियमों, विनियमन,स्टॉक एक्सचेंज के कोड और आचार संहिता का पालन करना होता है... आप पर यह आरोप है कि है कि प्रतिभूति बाजार में एक बाजार मध्यस्थ के रूप में आपकी निरंतरता हानिकारक है इसलिए आप प्रतिभूति बाजार में पंजीकरण का प्रमाण पत्र रखने के लिए अब एक 'फिट और उचित' व्यक्ति नहीं हैं।" एससीएन ने कहा |

दूसरे कारण बताओ नोटिस में, मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि सेबी ने पांच ब्रोकर फर्मों को नोटिस भेजे क्योंकि वह गलत बिक्री के आरोपों पर उनके द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं थे। सेबी अधिकारियों ने एक राय बनाई है कि दलालों को कमोडिटी कारोबार के लिए लाइसेंस नहीं दिया जाना चाहिए।[40]

मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने भी एनएसईएल मामले में इन दलालों की ओर से बड़े पैमाने पर अनियमितताओं के सबूत पाए। ईओडब्ल्यू द्वारा एक फोरेंसिक ऑडिट में इन दलालों द्वारा किये गए हवाला लेनदेन, बेनामी ट्रेडों और क्लाइंट कोड संशोधनों का भी पता चला। एनएसईएल इन्वेस्टर्स एक्शन ग्रुप(एनआईएजी) - एनएसईएल निवेशकों के एक मंच ने ईओडब्ल्यू से इन दलालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का अनुरोध किया। मोतीलाल ओसवाल सहित कई प्रमुख दलालों ने निवेशकों की ओर से एनएसईएल जिंसों को खरीदने/ बेचने / प्राप्त करने के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी को अपनाया और इलेक्ट्रॉनिक रूप में वस्तुओं की वेयरहाउस रसीदों को संभालने के लिए डीएमएटी (डीमैटेरियलाइज्ड) खाते भी खोले। एनएसईएल के निवेशकोंने मुंबई पुलिस कमिश्नर को लिखे पत्र में कहा है कि इन दलालों पर गोदाम रसीदें हासिल किए बिना निवेशकों के धन के साथ धोखाधड़ी करने का भी आरोप है।

बॉम्बे हाई कोर्टने 22 अगस्त, 2014 के अपने फैसले में यह भी समीक्षा की कि दलालों की अपनी कानूनी टीम होती है और बाजार को कैसे संचालित किया जाता है, इसकी भी उन्हें पूर्ण जानकारी होती है। लेन-देन की वैधता का दलालों को पता होने की पूरी सम्भावना थी । दलाल एवं निवेशक अनुभवी हैं, अतएव यह स्पष्ट है कि उनके द्वारा उठाए गए लेनदेन की अवैधता का मुद्दा उठाया जाना कानून की चिंता से ओतप्रोत नहीं बल्कि डिफ़ॉल्ट पार्टियों के बजाय आवेदक श्री जिग्नेशशाह को मुख्य अपराधी के तौर पर प्रस्तुत करना है।[20]

3 मार्च, 2015 को, ईओडब्ल्यू, मुंबई ने एनएसईएल मामले में 3 शीर्ष दलालों को गिरफ्तार किया। गिरफ्तार किए गए लोग थे – फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड के प्रबंध निदेशक अमित राठी, जियोजित कॉमरेड लिमिटेड के सीपी कृष्णन; और इंडिया इंफोलाइन लिमिटेड के चिंतन मोदी। इन तीनों पर एनएसईएल के उत्पादों की गलत बिक्री, धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक षड्यंत्र सहित अन्य आरोप थे।

21 दिसंबर,2018 को, सेबी ने 300 दलालों को अनुपूरक नोटिस जारी किए,जिसमें लाइसेंस रद्द करने का सुझाव दिया गया यदि ब्रोकर खुद को एसएफआईओ द्वारा बताए गए किसी भी गलत कार्य के संबंधमें आवश्यक स्पष्टीकरण देने में असमर्थ पाए गए हैं।[41][42] सेबी की योजना कार्नर दलालों पर 2015 की ईओडब्ल्यू की रिपोर्ट का उपयोग करना है। विस्तृत जांच रिपोर्ट 2015 में तत्कालीन बाजार नियामक,एफएमसी के साथ विशेष रूप से दलालों की भूमिका को उजागर करते हुए ईओडब्ल्यू द्वारा साझा की गई थी। यहां तक कि ईओडब्ल्यू द्वारा दायर पूरक चार्जशीट में शीर्ष दलालों को पहली बार नामित किया गया है।[43] Even, in the supplementary charge sheet filed by EOW, the top brokers have been named for the first time.[44][45][46][43]

फरवरी 2019 के अंतिम सप्ताह में, सेबी ने 5 प्रमुख दलालों को कई आदेशों के बाद कमोडिटी डेरिवेटिव ब्रोकरों के रूप में 'फिट और उचित' घोषित नहीं किया। पहले दो अलग-अलग आदेशों में बाजार नियामक ने कहा कि मोतीलाल ओसवाल कमोडिटीज ब्रोकर और इंडिया इन्फोलाइन कमोडिटीज की प्रतिष्ठा "गंभीर रूप से नष्ट हो गई" है जो उन्हें कमोडिटी ट्रेडिंग के लिए "फिट और उचित” नहीं घोषित करने में अपरिहार्य है।[47][48][49]

कुछ ही दिनों में, जिओफिन कॉमरेड और आनंद राठी कमोडिटीज़ को भी आदेशों के दूसरे सेट में 'फिट और उचित’ नहीं घोषित किया गया।[50] फिलिप कमोडिटीज इंडिया के खिलाफ भी यही आदेश जारी किए गए। इन फर्मों को पूर्ववर्ती अनुबंध और विनियमन अधिनियम 1972 का उल्लंघन करने का भी दोषी पाया गया है।[51][52]

परिणामस्वरूप,ये कंपनियां अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से दलालों के रूप में कार्य करने के लिए अस्वीकृत हो गयीं |

ऑडिटर / मुकेश पी शाह की भूमिका[संपादित करें]

मुकेश पी शाह,जो जिग्नेश शाह के मामा हैं,समय-समय पर एनएसईएल के बाहरी एवं आंतरिक लेखा परीक्षक के रूप में रहे हैं। मुंबई पुलिस ने उसकी अग्रिम जमानत का विरोध करते हुए पुष्टि की कि वह एफटीआईएल के शेयरों में इनसाइडर-ट्रेडिंग कर रही है और एफटीआईएल के शेयरों के कब्जे के आधार पर अकेले उसे एक ऑडिटर के रूप में अयोग्य ठहराया जाना चाहिए था। इसके अलावा, मुंबई पुलिस ने पुष्टि की है कि 'रावल ग्रुप' की ज्यादातर कंपनियां जहां लाफिन फाइनेंशियल सर्विसेज पी लिमिटेड (एफटीआईएल के प्रमोटर) की हिस्सेदारी मुकेश शाह के पते पर एनएसईएल में दर्ज थी और मुकेश शाह इन सभी के ऑडिटर थे | एनएसईएल पर 1352 करोड़ का कारोबार करने वाली कंपनियां मई-जून 2013 में बिना किसी आर्थिक नुक़सान के बाहर चली गईं।[53]

अंजनी सिन्हा का विरोधाभासी बयान[संपादित करें]

अंजनी सिन्हा, बर्खास्त सीईओ और कंपनी केएमडी, ने अपने पहले हलफनामे में संकट की पूरी जिम्मेदारी कबूल की और उसका स्वामित्व किया।[54][55][56][57] हालांकि, अपनी गिरफ्तारी के बाद वो अपने बयान से पलट गए। ईओडब्ल्यू अधिकारियों को दिए अपने कस्टोडियल बयान में अंजनी सिन्हा ने जिग्नेश शाह को दोषी ठहराया और यहां तक कि उन्हें पूरे संकट का 'मास्टरमाइंड' भी कहा। सिन्हा ने यह भी दावा किया कि शाह ने जबरन उनके और उनकी पत्नी के पासपोर्ट छीन लिए और उन्हें भ्रामक बयान दिए जो कथित तौर पर एफटीआईएल द्वारा तैयार किए गए थे।[58]

हालांकि, बाद में प्रवर्तन निदेशालय को दिए एक बयान में सिन्हा ने ईओडब्ल्यूके लिए अपने कस्टोडियल बयान को खारिज कर दिया और अपने पहले हलफनामे को स्वीकार किया।[59]

सुप्रीम कोर्ट ने एनएसईएल - एफटीआईएल विलय को अलग रखा[संपादित करें]

21 अक्टूबर 2014 को कंपनी अधिनियम 1956 के अनुभाग 396 के तहत कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय ने एफटीआईएल की सहायक कंपनी एनएसईएल के विलय के लिए एक मसौदा आदेश की घोषणा की। सभी हितधारकों को एमसीए को रिपोर्ट करने के लिए 60 दिनोंका समय दिया गया । एफटीआईएल ने इस विलय को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी। सरकार द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी और बीपी कोलाबावाला की खंड पीठ ने सरकार को 15 फरवरी 2016 तक का समय दिया। 12 फरवरी 2016 को, एमसीए ने एनएसईएल और एफटीआईएल के बीच विलय का अंतिम आदेश पारित किया। इस आदेश को बॉम्बे उच्च न्यायालय में एफटीआईएल ने चुनौती दी पर इसे बरकरार रखा गया। 20 अप्रैल,2011 के एमसीए के स्वयं अपने परिपत्र के आधार पर यह ज्ञात तथ्य है कि किसी भी विलय के लिए ,100% शेयरधारकों और 90% लेनदारों की अनुमति प्राप्त करने की आवश्यकता है। एफटीआईएल के 63,000 अंशधारकों को विलय के बिना सहमति देने के लिए मजबूर करने केलिए उन्हें समामेलन के लिए सहमति/ वस्तु देने का मौका देकर, एमसीए न केवल अपने परिपत्र के खिलाफ बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ भी गया। ज्ञात हो कि यह विलय ‘सीमित देयता’ की पवित्र अवधारणा का उल्लंघन करता है और सार्वजनिक हित में नहीं है। तीसरा, एनएसईएल -एफटीआईएल के बीच "कॉर्पोरेट आवरण " को तब तक उठाया नहीं जा सकता, जबतक कि एफटीआईएल द्वारा तथाकथित "पैतृक धोखाधड़ी" का मामला अदालत में साबित नहीं हो जाता।[60][61]

एक महत्वपूर्ण फैसले में,शीर्ष अदालत ने कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय द्वारा आदेशित एनएसईएल और एफटीआईएल के जबरन विलय के खिलाफ फैसला लिया,[62] जो कंपनी अधिनियम 1956 की धारा 396 के आह्वान का पहला उदाहरण था।[63] केंद्रीय मंत्रालय ने नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड और उसकी मूल कंपनी फाइनेंशियल टेक्नोलॉजीज इंडिया लिमिटेड के अनिवार्य समामेलन का आदेश दिया , जिसे वर्तमान में 63 मून्स टेक्नोलॉजीज़ लिमिटेड के रूप में जाना जाता है।[63] न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति विनीत सरन ने दोनों कंपनियों को अलग करने के बॉम्बे उच्च न्यायालय के फैसले को अलग रखा। केंद्र ने सार्वजनिक हित के मर्जर केलिए अंतिम आदेश जारी किया।[64] हालांकि, सुप्रीमकोर्ट ने माना कि विलय ’सार्वजनिक हित’ के मानदंडों को पूरा नहीं करता है। साथ ही, सार्वजनिक हित के लिए दिशा निर्देश भी निर्धारित किए हैं। [65][66]

एनएसईएल निवेशकों की कार्रवाई/ शिकायतें[संपादित करें]

एनएसईएल के निवेशकों ने अगस्त 2013 के महीने में एनआईएफ के नाम से एक संगठन का गठन किया। हालांकि, जिन निवेशकों ने एनआईएफ में दलालों की भूमिका से असंतुष्ट थे, उन्होंने एनआईएजी (एनएसईएल इन्वेस्टर्स एक्शन ग्रुप) के नाम से एक शुद्ध निवेशक संगठन का गठन किया। एनआईएजी ने जिग्नेश शाह और एफटीआईएल की भूमिका की जांच के लिए ईओडब्ल्यू मुंबई को एक मजबूत पत्र सौंपा है।एनएसईएल / एफटीआईएल और जिग्नेश शाह के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में कई रिट, पीआईएल, सूट दायर किए गए हैं।

एफटीआईएल बोर्ड को संभालने के लिए एमसीए का कदम[संपादित करें]

28 फरवरी 2015 को, जब एमसीए जबरन विलय के अपने विचार के साथ आगे बढ़ गया था, उसने कंपनी लॉ बोर्ड के समक्ष एक याचिका दायर की, जिसे अब राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण(एनसीएलटी) के नाम से जाना जाता है। इसके तहत, एफटीआईएल के बोर्ड को हटाकर उसकी जगह सरकार द्वारा मनोनीत निर्देशकों के बोर्ड ने ले ली। एफटीआईएल ने इसे भी चुनौती दी। 30 जून 2015 को, एनसीएलटी ने एफटीआईएल को अपनी संपत्ति बेचने से रोक दिया जो एफटीआईएल द्वारा अपील पर मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा स्टे पर थे । हालांकि, 19 अप्रैल को, सुप्रीमकोर्ट ने इस रोक को उलट दिया और एफटीआईएल की सभी परिसंपत्तियों को अवरुद्ध कर दिया।[67]

सीरियस फ्रॉड इंवेस्टिगेशन ऑफिस जांच[संपादित करें]

एसएफआईओ जांच भारत सरकार ने एसएफआईओ (सीरियस फ्रॉड इंवेस्टिगेशन ऑफिस) को एफटीआईएल और उसके 18 सहयोगियों, दलालों और डिफॉल्टरों की एनएसईएल पर अनियमितताओं से संबंधित जांच का आदेश दिया।

सुचेता दलाल को एनएसईएल मामले की जानकारी[संपादित करें]

यह पता चला कि एनएसईएल का मामला सार्वजनिक होने से 15 महीने पहले भी भारत की प्रमुख वित्तीय पत्रकार सुचेता दलाल धोखाधड़ी के सभी प्रमुख पहलुओं को जानती थी। सुचेता द्वारा जिग्नेश शाह, अंजनी शाह आदि को भेजा गया 8 मई 2012 का ईमेल सार्वजनिक डोमेन में आया, जिसमें पता चला कि सुचेता एनएसईएल उत्पाद की अवैधता और सुरक्षा की कमी के बारे में जानती थी। सुचेता दलाल की भूमिका की जांच के लिए एनएसईएल इन्वेस्टर्स एक्शन ग्रुप द्वारा मुंबई पुलिस के साथ शिकायत दर्ज की गई है। सुचेता को ठेके की अवैधता, आईबीएमए की भूमिका और इस तथ्य के बारे में पता था कि गोदाम तथाकथित उधारकर्ताओं के स्वयं के परिसर थे।[68]

कोर्ट ने एमसीएक्स पर लगाए आरोप[संपादित करें]

एक मेट्रोपॉलिटन कोर्ट ने एमसीएक्स पर 900 सीआर मामले के आरोपों को खारिज कर दिया।[69] मुंबई पुलिस द्वारा पहले की गई एफआईआर के जवाब में यह नवीनतम अपडेट है, जिसमें एमसीएक्स पर इनसाइडर ट्रेडिंग के सवाल उठाए गए हैं।[70] अदालत ने अपने निष्कर्ष में पीडब्लूसी द्वारा आयोजित एक ऑडिट रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि यह विरोध याचिका सुनवाई पर आधारित था। तत्पच्यात, इसे खारिज कर दिया गया। हालांकि कोर्ट ने जांच अधिकारी द्वारा दायर सी-सारांश रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है।[71]

एनएसईएल मामले में एजेंसियों द्वारा आरोप पत्र[संपादित करें]

सीबीआई ने एफटीआईएल, जिग्नेश शाह, एनएसईएल मामले में विभिन्न शेल कंपनियों के खिलाफ आरोप पत्रदायर किया है।[72] मुंबई पुलिस के ईओडब्ल्यू ने जिग्नेश शाह के खिलाफ दायर आरोप पत्र में बताया है कि उन्होंने एनएसईएल के साथ कैसे हेरफेर किया।[73] 27 दिसंबर, 2018 को, ईओडब्ल्यू-मुंबई ने पहली बार शीर्ष दलालों सहित 63 संस्थाओं के खिलाफ एक पूरक आरोप-पत्र दायर किया।[74]

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एमपीआईडी एक्ट लागू करने की घोषणा की[संपादित करें]

एमपीआईडी अधिनियम के तहत, एनएसईएल के अधिकारियों और 24 डिफॉल्टरों को मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा द्वारा बुक किया गया था। ईओडब्ल्यू ने प्रमोटर परिसंपत्तियों को संलग्न करके मुख्य रूप से व्यापारियों के धन को पुनर्प्राप्त करने के लिए एमपीआईडी अधिनियम लागू किया था | 2019 में मुंबई उच्च न्यायालय ने माना कि एनएसईएल एक वित्तीय संस्थान नहीं है। इसलिए एमपीआईडी अधिनियम के तहत बैंक खातों और संपत्तियों सहित कंपनी की संपत्ति की कुर्की के लिए सभी अधिसूचनाएं समाप्त हो गईं।[75][76][77][78][79][80]

इसके बाद, बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाएँ दायर की गईं। सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में 63 मून टेक्नोलॉजीज से जवाब मांगा। हालांकि, इसने संगठन को अपनी संपत्ति के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने के लिए कहा।[81]

सन्दर्भ[संपादित करें]

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  79. "63 Moons gets relief from HC on assets' attachment". मूल से 15 सितंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 जनवरी 2020.
  80. "63 Moons shares hit upper circuit after company wins MPID case in Bombay HC". मूल से 24 अगस्त 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 जनवरी 2020.
  81. "Supreme Court seeks response from 63 Moons on plea against Bombay HC order". मूल से 7 अक्तूबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 जनवरी 2020.