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एकांत श्रीवास्तव

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एकांत श्रीवास्तव हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि हैं।

छत्तीसगढ़ के छुटा गाँव में सन् १९६४ को ८ फ़रवरी में उनका जन्म हुआ था। उनके तीन कविता-संग्रह निकले हैं। 'मेरे दिन मेरे वर्ष' उनकी आत्मरचना हैं।


उन्हें हिंदी कविता में अपने विशिष्ट योगदान के कारण केदार सम्मान से सम्मानित किया गया है।

अभी तक एकांत श्रीवास्तव के 'अन्न हैं मेरे शब्द ' (१६६४), 'मिट्टी से कहूँगा धन्यवाद' (२०००), 'बीज से फूल तक' (२००३) नामक तीन काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। हिन्दी 'काव्यजगत् में उनकी रचनाओं का स्वागत हुआ।


एकांत श्रीवास्तव की कविता - अरुण कमल

एकांत श्रीवास्तव उन थोड़े से कवियों में हैं जिनके बिना आज की हिंदी कविता का मानचित्र पूरा नहीं होता।

पिछली शताब्दी की नवीं दहाईं में जिन कवियों ने हिंदी कविता को नई लोक-ऊर्जा से आविष्ट कर दिया उनमें एकांत अग्रगण्य हैं।एक दो अपवादों को छोड़ दें तो एकांत श्रीवास्तव संभवतः अकेले कवि हैं जिन्हें गांव और लोकजीवन का चितेरा कहा जा सकता है।अगर हम उनके पिछले संग्रहों के नामों पर ध्यान दें तो यह सहज ही सत्यापित हो जाता है अन्न, मिट्टी, बीज, नागकेसर, धरती और अब यह सूरजमुखी के खेतों तक जो स्वभावत: ही कृषक को, भारतीय गांवों को और गांव के घर को समर्पित है।एकांत की कविता किसान, गांव और खेतों की कविता है।

त्रिलोचन और केदारनाथ अग्रवाल की याद दिलाती यह कविता अभी के काव्य परिदृश्य में बिलकुल पृथक प्रति-संसार रचने वाली कविता है, जैसे आयरिश सीमस हीनी या अमरीकी कवयित्री ग्लिक की कविता।यह प्रचलन से भिन्न कोटि की कविता है जो कई बार मोहक, अंतर्विरोध विहीन, सुषम और मासूम प्रतीत होती है।लेकिन ध्यान देने पर लगता है कि यह विकास की अवधारणा, असमानता और अन्याय की भर्त्सना करती हुई कविता है।पुराने गाँव, घर, कुटुंब, प्रेम, सौहार्द और सौंदर्य के निरंतर लुप्त होते जाने के अवसाद और उदासी से भरी हुई कविता है।ये गांव और जीवन वही नहीं है जो बचपन की स्मृतियों में वास करता है।किसी भी समाज को मापने का एक तरीका उसके ग्रामीण जीवन को मापना है।आज हमारे गांव, हमारी प्रकृति, हमारे ग्रामीण और वन और आदिवासी जन महानगरों के उच्छिष्ट हैं।एकांत की कविता इसी अन्याय और असमानता का प्रतिरोधी स्वर है और जो कुछ भी रागमय, ललित या प्राणमय है उसका यशोगान है।आकस्मिक नहीं कि अनेक कविताएं कुछ भूली हुई, पुरातन लयों की याद दिलाती हैं और मां, पिता, बहन, भाई परिजन की स्मृति हमें आर्द्र कर देती है।इस अर्थ में एकांत की कविता विचारशुष्क न होकर भावों के रस से भरी है।

एकांत की कविताओं को पढ़ते हुए मैंने पाया कि गरीबों पर इतनी बड़ी संख्या में इतनी मार्मिक कविताएं हाल के दिनों में बहुत कम लिखी गई हैं।एक साड़ी में जीवन बिताने की तकनीक, ढोलक बजाती लड़की, पुराने कपड़ों का बाजार, अनाज गोदाम के मार्ग से दाने चुनती स्त्रियां, गोंद इकट्ठा करने वाली बच्चियां, खंडहर में घर ऐसी ही कुछ मर्मस्पर्शी कविताएं हैं जो दैन्य को प्रकट करते हुए भी मनुष्य की गरिमा का सम्मान करती हैं।यह भी लगा कि एकांत ने प्रकृति के सौंदर्य को बिलकुल नए, अछूते प्रसंगों, दृश्यों और चरित्रों से व्यक्त किया है।सौंदर्य का यह प्रकार आज विरल है।लाल यह बादाम का वन, पक रहा है शहद, ततैया का घर, पैदल पुल, वन में बारिश इसके कुछ प्रमाण हैं।इसी के साथ यह भी जोड़ना जरूरी है कि किसान जीवन के कुछ बिंब शायद पहले कभी ऐसी तन्मयता से नहीं आए, जैसे गुड़ाई करते समय, लुवाई के दिन, खेत सूने पड़ गए हैं वगैरह।लेकिन जिन कविताओं में लोकजीवन का राग, जीवन की प्रगाढ़ता और बृहत्तर आशयों का संधान मिलता है वे एकांत के काव्य का शिखर मानी जा सकती हैं और साथ ही हमारी कविता की उपलब्धि भी।उदाहरण के लिए, फूल बुलाता जल के भीतर, मज़ार, इक़बाल अहमद और उनके पिता, नहीं आने के लिए कह कर, पत्थर की आंख, ओ काली चींटियों, साही, या अधबना घर।ये विलक्षण कविताएं हैं- एकांत श्रीवास्तव की और आज के समय की प्रतिनिधि कविताएं।एकांत की कविताएं यह सिद्ध करती हैं कि एकांत और उनके सहचर कवि आज भी हमारे अत्यंत सशक्त स्वर हैं।नदी तो एक ही होती है, लेकिन उसके रास्ते, धाराएं और शाखाएं बहुत अलग अलग।

एकांत श्रीवास्तव की कविता पाठकों को पुन: आश्वस्त करती है कि हिंदी कविता के जलग्रहण क्षेत्र लगातार प्रशस्त हो रहे हैं।ये कविताएं हमें आस्वाद और विश्लेषण की नई प्रविधि आविष्कृत करने को विवश करती हैं।सूरजमुखी के खेतों तक का रास्ता कठोर और बीहड़ है:

वे रास्ते महान हैं जो पत्थरों से भरे हैं मगर जो हमें सूरजमुखी के खेतों तक ले जाते हैं

एकांत की कविता भी सूरजमुखी का फूल है।धूप, जल, रंग और गंध से भरी हुई।