उपस्कर अवतरण प्रणाली लोकलाइज़र

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लोकलाइज़र, ILS (KMEZ रनवे 27, मेना, अर्कांसस) के एक घटक के रूप में स्थापित।
लोकलाइज़र एवं ग्लाइड स्लोप के रेडियो संकेतों का उत्सर्जन पैटर्न।

उपस्कर अवतरण प्रणाली लोकलाइज़र ((अंग्रेज़ी): इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम लोकलाइज़र) (लघु: localizer [एलओसी] या एलएलज़ेड)[1] उपस्कर अवतरण प्रणाली में क्षैतिज मार्गदर्शन प्रणाली होती है, जिसका प्रयोग विमान को उड़ानपट्टी की केन्द्र-रेखा पर मार्गदर्शन हेतु किया जाता है।

प्रत्येक रेडियो स्टेशन  या ऐसीप्रणाली को वह जिस सेवा को स्थायी या अस्थायी रूप से प्रदान कर रहा है, उसी के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है।

यह भी देखें

प्रचालन सिद्धांत[संपादित करें]

विमानन में, लोकलाइज़र उपस्कर अवतरण प्रणाली (आईएलएस) के एक पार्श्विक घटक रूप में उर्ध्वाधर ग्लाइड स्लोप के सान्निध्य में विमान को उड़ानपट्टी की केन्द्र रेखा मार्गदर्शन हेतु प्रयोग किया जाता है। यह विमानन नौवहन में ही प्रयोग हो रहे लोकेटर से भिन्न घटक है, हालांकि दोनों ही विमानन वौवहन के घटक हैं।

लोकलाइज़र उपस्कर प्रक्षेपण कर रहे विमानक्षेत्र की उड़ानपट्टी और प्राप्त कर रहे विमान के कॉकपिट के बीच समन्वय कर मार्गदर्शन का कार्य करता है। किसी पुराने विमान को, जिसमें आईएलएस गृहीता (रिसीवर) स्थापित नहीं है उसे किसी भी आईएलएस सुविधा का लाभ नहीं मिलता है, और न ही किसी अत्याधुनिक विमानक्षेत्र को अपने स्थापित आईएलएस उपस्करों का लाभ उन उड़ानपट्टियों पर नहीं मिल पायेगा, जिन पर आईएलएस सुविधा उपलब्ध नहीं हैं। अफ़्रीका के और एशिया के भी बहुत से बड़े विमानक्षेत्रों में किसी भी प्रकार की आईएलएस सुविधाओं का अभाव मिल सकता है। कुछ उड़ानपट्टियों पर आइएलएस सुविधा मात्र एक दिशा में ही उपलब्ध होती है, जिसे फिर भी पृष्ठ किरण (बैक बीम) या बैक कोर्स के साथ उपयोग में लिया जा सकता है, किन्तु उसमें ग्लाइड स्लोप सुविधा नहीं मिलती है।

लोकलाइज़र एवं ग्लाइड स्लोप की वाहक आवृत्ति के जोड़े[संपादित करें]

आईएलएस के कुल ४० उपलब्ध चैनल्स में से किसी एक पर दो आवृत्तियों का प्रेषण किया जाता है। इनमें से एक को ९० हर्ट्ज़ पर एवं दूसरी को १५० हर्ट्ज़ पर आवृत्ति मॉड्यूलन किया जाता है। इनको सह-स्थापित संग्राहकों की श्रेणी से प्रेषित किया जाता है। प्रत्येक संग्राहक (एण्टीना) एक संकीर्ण किरण (नैरो बीम) प्रेषित करता है।

लोकलाइज़र एवं ग्लाइड स्लोप की वाहक आवृत्तियों के जोड़े इस प्रकार से निर्धारित कर बने हुए होते हैं, कि विमान स्थापित नौवहन रेडियो ग्राहक लोकलाइज़र आवृत्ति चयन करने पर स्वतः ही ग्लाइडस्लोप आवत्ति भी चुन लेता है। लोकलाइज़र आवृत्ति ११० मेगाहर्ट्ज़ और ग्लाइडस्लोप आवृत्ति ३३० मेगाहर्ट्ज़ के रेंज में होती हैं।[2]लोकलाइज़र वाहक आवृत्तियाँ १०८.१० - १११.९५ मेगाहर्ट्ज़ (जिसमें १०० किलोहर्ट्ज़ प्रथम दशमलव डिजिटल विषम होते हैं, तदनुसार १०८.१०, १०८.१५, १०८.३०, आदि होती हैं, और इनका प्रयोग कहीं किसी कार्य के लिये नहीं किया जाता है)। आईएलएस आवृत्तियां टैकैन चैनल्स के 18X से 56X तक के सम चैनल्स पर देखें।

कॉकपिट में लोकलाइज़र[संपादित करें]

एक ऑल्टिट्यूड सूचक (शीर्ष-लम्ब सूचक) जिसे आर्टिफ़ीशियल हॉरिज़न भी कहा जाता है। पैमाने पर ऑल्टिट्यूड गेज के नीचे लोकलाइज़र दिखाया गया है। यहां यह लगभग एक  "^"  श्वेत चिह्न के रूप में दिख रहा है। इसके सूचक एवं पैमाने दोनों ही छोटे हैं।

अधिकतर विमानों (१९५० के दशक के अन्तिम चरण से अब तक निर्मित) में लोकलाइज़र सूचक शीर्ष लम्ब सूचक के ठीक नीचे लगा होता है, किन्तु यह ग्लाइडस्लोप के साथ ही आईएलएस का भाग होता है। इसके बीच में लगा क्रॉस चिह्न फ़्लाइट डायरेक्टर कहलाता है। 

उड़ानपट्टी पर लोकलाइज़र[संपादित करें]

ग्लाइडस्लोप की अनुपयोज्यता की स्थिति में लोकलाइज़र को एक पृथक गैर-परिशुद्ध अप्रोच के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। तब इसका लघुरूप एलओसी (LOC) होता है। जब ग्लाइडस्लोप के बिना ही उपस्कर प्रणाली स्थापित होती है, तब उसका लघुरूप एलएलज़ेड (LLZ) होता है।

कुछ स्थितियों में लोकलाईज़र द्वारा प्रेषित कोर्स उड़ानपट्टी से एक कोण पर होता है (विमानक्षेत्र के निकटस्थ किन्हीं व्यवधानों के कारण)। तब इसे लोकलाईज़र टाइप डायरेक्श्नल एड (LDA) कहा जाता है। लोकलाइज़र उपस्माकर उड़ानपट्मटी के सुदूर छोर से लगभग १००० फ़ीट दूरी पर स्थापित किया जाता है। इसके संकेत की प्रयोगनीय क्षमता उड़ानपट्टी के दोनों ओर १०° के विस्तार में १० नॉटिकल मील तक विस्तृत रहती है। विमान एवं उड़ानपट्टी के सान्निध्य के बढ़ने के साथ-साथ ही क्षैतिज सटीकता में वृद्धि होती जाती है।  लोकलाईज़र अप्रोच के कुछ विशिष्ट मौसम मिनिमा भी होते हैं जो अप्रोच प्लेट्स पर मिलते हैं।

निर्दिष्टीकरण[संपादित करें]

  • कोर्स रेखा या कोर्स लाइन(सीएल) वह रेखा ह्जोती है, जिस  पर क्षैतिज  समतल में मॉडुलन गहराई का अन्तर (DDM) शून्य होता है। 
  • कोर्स क्षेत्र या कोर्स सैक्टर(सीएस) उर्केध्वाधर समतल में DDM = 0.155 से सीमित एक क्षेत्र होता है।
  • विस्थापन संवेदनशीलता या डिस्प्लेस्मेण्ट सेन्सिटिविटी (डी एस) ILS रेफ़रेन्स डैटम(उड़ानपट्टी थ्रेशहोल्ड) पर DDM में प्रति मीटर अन्तर होता है। यह 0.00145 (इसलिए सीएस थ्रेशहोल्ड पर 106.9 मीटर होता है)।
  • निकासी या क्लियरेन्स:  जिस कोण पर DDM ०.१८० होता है, वहां से CL से १०° तक, DDM ०.१८० से कम नहीं होना चाहिये; १०° से ३५° तक DDM ०.१५५ से कम नहीं होना चाहिये।
  • कवरेज: 25 समुद्री मील (46 कि॰मी॰) तक CL से 10 डिग्री के भीतर; 17 समुद्री मील (31 कि॰मी॰)  तक सीएल से 10° और 35°; 10 समुद्री मील (19 कि॰मी॰) के बाहर सीएल से  35° यदि कवरेज की आवश्यकता है।
  • कम कवरेज: 18 समुद्री मील (33 कि॰मी॰) सीएल से 10 डिग्री के भीतर; 10 समुद्री मील (19 कि॰मी॰) CL से 10° और 35° के भीतर।
  • आइएलएस रेफ़रेन्स डैटम (थ्रेशहोल्ड) को मीन कोर्स रेखा पर निम्न सीमा के भीतर समायोजित रखा जाता है:
    • CAT I: ± 10.5 मीटर (15µA)
    • CAT II: ± 7.5 m (11µA) (अनुशंसित ± 4.5 m (6.4 μa))
    • CAT III: ± 3.0 मीटर (4.3 μa)
  • डी एस निम्नानुसार समायोजित किया जाता है:
    • CAT मैं: ± 17%
    • CAT II / III: ± 10%

यह भी देखें[संपादित करें]

संदर्भ[संपादित करें]

  1. (2016) ICAO Abbreviationa and Codes (DOC 8400), International Civil Aviation Organization. (Report).
  2. "Frequency allotments" (PDF). ntia.doc.gov. January 2008. मूल (PDF) से 28 अगस्त 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 September 2010.

बाहरी लिंक[संपादित करें]