उत्तराखंड के व्यंजन

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
उत्तराखंड के व्यंजन

जब भी बात देवभूमि उत्तराखंड की आती है तो वहाँ के व्यंजनों को भी खूब पसंद किया जाता है फिर चाहे बात झंगुरे की खीर की हो या मंडुवे की रोटी और तिल की चटनी की या हो बात भांग की चटनी की.. उत्तराखंड का पारंपरिक खानपान गुणवत्ता और स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद लाभकारी माना गया है। भारत ही नहीं विदेशों में भी पहाड़ के मंडुवा, झंगोरा, काले भट, गहथ, तिल आदि अपनी मार्केट बना रहे हैं।

आयुर्वेदिक चिकित्सक बताते हैं कि पहाड़ी अनाज सेहत के लिए बेहद फायदेमंद हैं। मंडुवा मधुमेह की बीमारी में बेहद कारगर है। यह शरीर में चीनी की मात्रा नियंत्रित कर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। झंगोरा पेट संबधी बीमारियों को दूर करता है। काले भट में प्रोटीन की प्रचुर मात्रा होती है। गहथ की दाल की तासीर गर्म होने के कारण यह गुर्दे की पथरी में बेहद फायदेमंद है।

मंडवे की रोटी ""Mandve ki Roti""[संपादित करें]

मंडवे की रोटी गढ़वाल में सबसे अधिक खाया जाने वाली प्रमुख चीजों में से है.. उत्तराखंड के लोग अक्सर चूल्हे की मोटी-मोटी रोटी बनाते है और इसे बड़े चाव से खाते है।

झंगुरे की खीर (Jhingore ki kheer)[संपादित करें]

झंगुरे की खीर चावल की खीर जैसी ही होती है अंतर ये होता है कि झंगुर महीन और बारीक दाने के रुप में होता है और आसानी से खाया जा सकता है। पहाड़ो में झंगुरे को चावल के जैसा पकाकर दाल-सब्जी के साथ भी खाया जाता है।

अरसा (Aarsa)[संपादित करें]

शादी-ब्याह के मौसम में इसे खास तौर पर बनाया जाता है। इसके लिए चावल को पीसकर आटे की शक्ल दी जाती है। फिर गुड़ को पिघलाकर इसमें मिलाया जाता है और बिस्किटफिर के आकार में तेल या घी में फ्राई किया जाता है। गढ़वाल का यह एक पारंपरिक मीठा पकवान है।[1]

चैसोणी[संपादित करें]

इसमें उड़द और भट्ट की दाल को पीसकर गाढ़ा पकाया जाता है। इसके स्वाद में इजाफे के लिए बारीक टमाटर, प्याज, अदरक का पेस्ट बनाकर खूब पकाया जाता है। यह दिन के खाने के तौर पर खूब पसंद किया जाता है। गढ़वाल में प्रत्येक प्रकार के भोजन के लिए अलग अलग नाम है । और यहाँ के लोग जादातर दलों को पीसकर ही बनते है। जैसे चैसोणी जो उड़द की दाल को पीस कर बनता है वैसे ही भटोनि भट ( सोयाबीन डाल) को पीस के बनाया जाता है । मसोनि काली मसूर को पीस कर बनाते है। फांणु अलग अलग डालो को पीस कर बनाते है जैसे अरहर का फांणु, पीली चने की दाल का फांणु, लाल चने पीस कर,

इसके अलावा जैसे कड़ी जैसा ही एक व्यंजन और बंता है जिसे पल्यो बोलते है बस इसमें फर्क इतना है कि कड़ी में बेसन डाला जाता है ओर इसमें मंडुवे का आटा। लेकिन दोनों के स्वाद में बहुत अंतर है।

स्वाला :- ये एक प्रकार की भरवा रोटी य परांठा है लेकिन इसके बनने का विधि अलग है । पहले आटे को गूंथकर उसकी लोए बनाकर पूरी के आकार की बनाई जाती है फिर इसके अंदर उबली हुई मसूर या गोहत की दाल को भर जाता है । और फिर इसे deep fry किया जाता है जैसे पूरी बनती है इसके बाद घर का बना घी डालकर खाया जाता है । सच काहू तो ये स्वाद कही नहीं मिल सकता आप लोग भी इसे try करे।

आलू और मूली का थिचोणी:- इसे आलू और मूली को सिलवाते पे कूट कर जीरे या जखख्या का छोंक सागर बनाया जाता है मूली ओर आलू को अलग अलग कूट कर भी बनाया जा सकता है।

छंछिया य छछिन्डु:- (व्रत के चावल) इसे झंगोरी को छांछ के साथ झूब उबाल कर बाद में मसले डाल कर तड़का लगाया जाता है।

गोहत की पटड़ी य ऑमलेट:- शाकाहारी आमलेट:- इसे गोहत की दाल को दरदरा पीस कर पेन में थोड़ा सा तेल डालकर बनाया जाता है पूरी विधि और मसाला ऑमलेट बनाने जैसी ही है बस इसमें जखख्या का छोंका लगता है। इसे खाने में सलाद के ओर चखने के तौर पे खाया जाता है। जखख्या:- एक प्रकार का राई जैसा दिखने वाला जो राई की तुलना में अधिक छोटा और काले रंग का हित है गढ़वाल के अभिक़तर व्यंजनों में इसी का तड़का लगाया जाता है।

भांग की चटनी[संपादित करें]

आप अगर गढ़वाल में हैं और चाहे किसी भी तरह का भोजन कर रहे हैं। भांग की चटनी इसे और स्वादिष्ट बनाती है। इसका खट्टा-नमकीन-तीखा फ्लेवर सभी तरह के परांठे और मंडवे की रोटी के












में भी नहीं भंजा में भी नहीं है केवल इतना

बाड़ी[संपादित करें]

इसे बनाने के लिए मंडवे के आटे में नमक, लाल मिर्च पाउडर मिलकार हलवे की तरह गाढ़ा पकाया जाता है। गढ़वाल में अधिकतार पकवान और व्यंजन बनाने के लिए लोहे की कढ़ाई का इस्तेमाल होता है।

कंडाली का साग[संपादित करें]

कंडाली हरी सब्जी की तरह होती है। ये पहाड़ो में आसानी से मिल जाती है जिसमें सूई जैसे छोटे-छोटे कांटे होते हैं। इसके लिए पत्ते को अच्छी तरह धोकर बस तब तक उबाला जाता है, जब तक कि पूरी तरह पक न जाए। सर्दी के मौसम में यह गढ़वाल में ये व्यंजन खूब बनाया जाता है।[2]

फाणु का साग[संपादित करें]

इसमें गहत की दाल को पीसकर गाढ़ा पकाया जाता है। इसके पानी का खास ख्याल रखा जाता है। यह जितनी गाढ़ी बने उतना बेहतर। जब पीसी हुई गहत अच्छे से गाढ़ी हो जाए तब उसमें बारीक टमाटर, प्याज, अदरक, लहसन आदि डालकर इसे अच्छी तरह पकाया जाता है।

गहत के परांठे[संपादित करें]

सुबह के नाश्ते के लिए गहत की दाल के परांठे गढ़वाल में बहुत ही प्रसिद्ध हैं। तासीर से गर्म गहत पहाड़ी मौसम के लिहाज से भी लाभदायक है। भांग की चटनी के साथ इसका स्वाद और निखर जाता है। लोग गहत की दाल को भूनकर भी खाना पसंद करते हैं। आमतौर पर इसके लिए मंडवे के आटे का इस्तेमाल होता है।

संदर्भ[संपादित करें]

  1. Ankit (2019-06-12). "Arsa - Story of A Dish Which Relates Uttarakhand & South India in 9th Century". WildHawk (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-03-09.
  2. Live, A. B. P. (2022-09-30). "Video: यहां बनाई जाती है बिच्छू की तरह डंक मारने वाले पौधे की सब्जी, क्लासिक डिश में है शुमार". www.abplive.com. अभिगमन तिथि 2023-03-09.