ई-न्यायालय (भारत)

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भारत की ई-न्‍यायालय एकीकृत मिशन मोड परियोजना उच्‍च न्‍यायालयों और जिला/अधीनस्‍थ न्‍यायालयों में लागू की गई एक राष्‍ट्रीय ई-शासन परियोजना है। परियोजना की परिकल्‍पना भारत के उच्‍चतम न्‍यायालय की ई-समिति द्वारा 'भारतीय न्‍यायपालिका-2005 में सूचना तथा संचार प्रौद्योगिकी के कार्यान्‍वयन के लिए राष्‍ट्रीय नीति' के आधार पर की गई थी।

ई-कोर्ट मिशन मोड परियोजना देश में जिला और अधीनस्‍थ न्‍यायालयों को सूचना और संचार टेक्‍नोलाजी के द्वारा सशक्‍त करके राष्‍ट्रीय ई-अभिशासन परियोजना के दायरे में लाने की मिशन मोड में चलाई जा रही परियोजना (प्रथम चरण 2010-15 और द्वितीय चरण 2015-19) है।

ई-न्यायालय (eCourt) परियोजना का उद्देश्य नागरिक केंद्रित सेवाओं को तत्काल और समयबद्ध तरीके से उपलब्ध कराना है। यह न्यायिक प्रक्रिया और न्याय प्रणाली को सस्ती , सुलभ, और पारदर्शी बनाने में मदद करता है। इसके माध्यम से आप भारत के विभिन्न जिला न्यायालयों द्वारा प्रदान की जा रही ऑनलाइन सेवाओं की जानकारी और सूचनाएं हासिल कर सकते हैं। सभी प्रदेशों की वाद-प्रतिवाद की जानकारी भी कई विकल्पों - जैसे कि प्रथम दृष्टया विवरण (एफआईआर), पार्टी का नाम, वकील का नाम आदि - के आधार पर उपलब्ध है। भारत के उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों की वेबसाइट के लिंक भी उपलब्ध हैं।

यह परियोजना तीन चरणों में लागू होनी है जिसका प्रथम चरण २०११ से २०१५ तक था। दूसरा चरण २०१५ से २०१९ तक का था जिसमें कुल १६७० करोड़ रूपए खर्च करने की योजना थी। राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड (National Judicial Data Grid (NJDG)) का निर्माण कर लिया गया है जो देश के १६०८९ जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों की न्यायिक कार्वाइयों और निर्णयों की जानकारी देता है। केस पंजीकरण, काज लिस्ट, केस की स्थिति, दैनिक निर्णय, अन्तिम निर्णय, आदि का विस्तृत विवरण इस साइट पर उपलब्ध है। इस समय १० करोड़ से अधिक केसों की स्थिति का एवं ७ करोड़ से अधिक के आदेश/निर्णयों की जानकारी देखी जा सकती है।

सॉफ्टवेयर

एकीकृत वाद सूचना प्रणाली ( Unified Case Information System(CIS) National Core 1) का विकास एन आई सी ने किया। यह उबन्तू प्रचालन तंत्र पर चलता है जो मुक्तस्रोत एवं निःशुल्क है।

उद्देश्य[संपादित करें]

परियोजना के प्रमुख उद्देश्‍य हैं:

  • समूची न्‍यायिक प्रणाली को सूचना और संचार टेक्‍नोलाजी से समन्वित करने के लिए पर्याप्‍त और आधुनिक हार्डवेयर व सम्‍पर्क कायम करना;
  • सभी न्‍यायालयों में कामकाज के आने और निपटाने की प्रक्रिया के प्रबन्धन का स्वचालन करना;
  • तालुका/निचली अदालतों के रिकार्ड का अपील कोर्टों से इलेक्‍ट्रॉनिक तरीके से स्‍थानांतरण;
  • वीडियो कांफ्रेंसिंग सुविधा की स्‍थापना और इसके जरिए गवाहों के बयान दर्ज करना;
  • देश की सभी अदालतों को राष्‍ट्रीय न्‍यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) से वाइड एरिया नेटवर्क (वैन) के जरिए जोड़ना और अन्‍य संपर्क;
  • इलेक्‍ट्रानिक फाइलिंग जैसी सुविधाओं के माध्‍यम से नागरिक केन्द्रित सुविधाएं;
  • हर न्‍यायालय परिसर में टच स्‍क्रीन आधारित क्‍योस्‍क की स्‍थापन;
  • राज्‍य और जिला स्‍तर की न्‍यायिक और सेवा अकादमियों व केन्‍द्रों का पूर्ण कम्‍प्‍यूटरीकरण।

लक्ष्य[संपादित करें]

परियोजना के तहत नियत किये गये विशिष्‍ट लक्ष्‍य ये हैं-

  • सभी न्‍यायालयों (लगभग, 20400) और जिला विधि सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) और तालुका न्‍यायिक सेवा कमेटी (टीएलएससी) का कम्‍प्‍यूटरीकरण और 3500 अदालत परिसरों के बीच क्‍लाउड कनेक्टिविटी कायम करना;
  • 3000 न्‍यायालय परिसरों और 1150 कारागारों में वीडियो कांफ्रेंसिंग सुविधा की स्‍थापना और उसका उपयोग;
  • इलेक्‍ट्रानिक फाइलिंग, दैनिक आदेश, आदेशों के वितरण, सभी जिला अदालतों में मामलों की ऑनलाइन स्थित का पता लगाने की सुविधा आदि की स्‍थापना।

राष्‍ट्रीय न्‍यायिक डाटा ग्रिड (एनजेडीजी) भी ई-न्‍यायालय एकीकृत मिशन मोड परियोजना का अंग है। एनजेडीजी मामलों की पहचान करने, प्रबंधन एवं लंबित होने की अवधि को कम करने के लिए निगरानी के साधन के रूप में भी कार्य करेगा। व्‍यवस्‍था में देरी एवं बकाया राशि को कम करने के लिए नीतिगत फैसले लेने, न्‍यायालयों के प्रदर्शन एवं प्रणालीगत बाधाओं की निगरानी को सरल बनाने के लिए और अत: बेहतर संसाधन प्रबंधन सुविधा देने के लिए समय पर जानकारी प्रदान करने में सहायता करता है। एनजेडीजी किशोर न्‍याय प्रणाली सहित सभी वर्गों के मामलों को भी समाविष्‍ट करेगा। एनजेडीजी को चालू वित्‍त वर्ष 2013-14 में प्रायोगिक आधार पर लागू किया गया था।

इतिहास[संपादित करें]

परियोजना, २००५ में आरम्भ की गयी थी। ई-न्‍यायालय एकीकृत मिशन मोड परियोजना के अंतर्गत 14,249 जिला एवं अधीनस्‍थ न्‍यायालयों को कम्‍प्‍यूटरीकृत करने की योजना थी। इस परियोजना को रणनीतिक दिशा एवं मार्गदर्शन देने के लिए विधि एवं न्‍याय मंत्रालय के न्‍याय विभाग में सचिव की अध्‍यक्षता में सशक्त समिति का गठन किया गया।

अगस्त-2012 में भारत के मुख्य न्यायाधीश ने उच्‍च न्‍यायालय के अवर न्‍यायाधीश को ई-समिति के प्रभारी के रूप में नियुक्‍त किया था। उन्‍होंने उच्‍च न्‍यायालयों की कम्‍प्‍यूटर समिति के अध्‍यक्ष के साथ नियमित बैठकें आयोजित करने तथा परियोजना की प्रगति की समीक्षा करके परियोजना के कार्यान्‍वयन को प्रोत्‍साहित किया।

31 मार्च, 2013 तक कुल 12,233 जिला एवं अधीनस्‍थ न्यायालयों को कम्‍प्‍यूटरीकृत किया जा चुका था।

ई-न्‍यायालयों परियोजना को राष्‍ट्रीय ई-शासन योजना के तहत अन्‍य मिशन मोड परियोजनाएंओं (जैसे कि राज्‍यव्‍यापी नेटवर्क (एसडब्‍ल्‍यूएएन), राज्‍य डाटा केंद्र (एसडीसी), सामान्‍य सेवा केंद्र) के साथ एकीकृत किया गया है। इस परियोजना को अपराध एवं अपराधी खोज नेटवर्क प्रणाली (सीसीटीएनएस) परियोजना और अन्‍य संबंधित एमएमपी के साथ संयोजित किया गया है।

सन २०१५ में ई-कोर्ट के द्वितीय चरण को अनुमति मिली।

सेवाएँ[संपादित करें]

ई-न्यायालयों द्वारा प्रदत्त सेवाएं निम्नलिखित हैं :

संख्या सेवाएँ विवरण
1. प्रकरण प्रबंधन की स्वचालन प्रक्रिया जांच, पंजीकरण, केस आवंटन, अदालत की कार्यवाही,एक मामले की जानकारी प्रविष्टि, मामला निपटान और बहाली, प्रकरण का स्थानांतरण आदि प्रक्रियाएं।
2. ऑनलाइन सेवाओं के प्रावधान आदेश और निर्णय की प्रमाणित प्रतियां, मामलों की स्थिति, कोर्ट फीस की गणना का प्रावधान, संस्थागत रजिस्टर, और कोर्ट डायरी।
3. अदालत और सरकार के बीज सूचना गेटवे स्थापित करना वादी या प्रतिवादी के बीच दूरी होने से वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाही और गवाही, अदालतों और सरकारी एजेंसियों एवं पुलिस के साथ सूचनाओं का आदान प्रदान, जेल, भूमि रिकार्ड विभाग।
4. राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड एजेंसी का निर्माण करना अदालतों में लम्बित मामलों की निगरानी करना।

ई-कोर्ट परियोजना के अन्तर्गत उपार्जित महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ[संपादित करें]

  • विश्व के सबसे बड़े निःशुक्ल और मुक्त स्रोत वाले सॉफ्टवेयर (FOSS) आधारित वाद सूचना एवं प्रबन्धन प्रणाली। एफओएसएस आधारित मंच को अपनाने के परिणामस्वरूप राष्ट्र के 340 करोड़ रुपये की अनुमानित बचत हुई, जिसमें लाइसेंस शुल्क और रखरखाव के लिए आवर्ती लागत शामिल नहीं है।
  • भारत के सभी जिलों एवं अधीनस्थ न्यायालयों के लिए एक सामान्य वाद प्रबंधन एवं सूचना प्रणाली “सीआईएस राष्ट्रीय कोर वी 3.2″ सॉफ्टवेयर का सृजन वाद प्रबंधन और सूचना प्रणाली “सीआईएस राष्ट्रीय कोर वी1.0” भारत के सभी 22 उच्च न्यायालयों में कार्यान्वित।
  • देश के 3256 न्यायालय परिसरों के आंकड़ें ऑनलाइन उपलब्ध हैं।
  • विभिन्न उच्च न्यायालयों के कुल 3.38 करोड़ मामले (लंबित) और 12.49 करोड़ आदेश और निर्णय ऑनलाइन उपलब्ध हैं।
  • 45.4 लाख एन्ड्रॉयड उपयोगकर्ताओं ने ई-कमेटी द्वारा विकसित मोबाइल ऐप को डाउनलोड किया है।

न्यायपालन में कृत्रिम बुद्धि का उपयोग[संपादित करें]

विश्व के कई देश त्वरित न्यायपालन के लिये कृत्रिम बुद्धि का प्रयोग कर रहे हैं। अर्जेन्टाइना में 'प्रोमेटी' (Prometea) नामक कृत्रिम बुद्धि आधारित औजार विकसित किया गया है। चीन में सन २०१७ से ही व्यावसाय सम्बन्धी मामलों के निपटारे के लिये कृत्रिम बुद्धि आधारित व्यवस्था लागू है। [1]

भारत में भी इसकी बहुत आवश्यकता है क्योंकि यहाँ पर लम्बित मामलों की संख्या बहुत अधिक है और निर्णय आने में कभी-कभी २०-३० वर्ष या उससे भी अधिक समय लग जाते हैं। सितम्बर २०२१ में भारत के उच्च न्यायालयों में लगभग ५८ लाख मामले लम्बित थे तथा सन २०१५ और २०१९ के बीच प्रति वर्ष केवल १८ लाख मामलों का निपटारा हो पाया। इसी को ध्यान में रखते हुए वर्ष २०२१ में विधि मंत्री किरण रिजिजू ने विचार व्यक्त किया था कि कृत्रिम बुद्धि का प्रयोग करके लम्बित मामलों की संख्या कम की जा सकती है।[2] यही बत कुछ समय पूर्व मुख्य न्ययधीश शरद बोबडे भी यही विचार व्यक्त कर चुके हैं।[3]

नयी प्रौद्योगिकी जैसे, कृत्रिम बुद्धि, मशीन लर्निंग, और प्राकृतिक भाषा संसाधन का सभी उद्योगों में अपार सम्भावनाएँ हैं। इनका उपयोग यदि न्याय और सुव्यवस्था के लिये किया जाय तो ये इस क्षेत्र में भी अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हो सकतीं हैं। २०२१ में ही सर्वोच्च न्यायलय में सुपेस (SUPACE) नामक योजना आरम्भ हुई है जो मामलों से सम्बन्धित भारी मत्र में प्रस्तुत आँकड़ों को समझने में सहायक होती है। इसी प्रकार, आईआईटी खडगपुर के शोधकर्ताओं ने कृत्रिम बुद्धि पर आधारित एक विधि विकसित की है जो मुकद्दमों के निर्णयों को मशीन द्वारा पढ़ने में सहायक होता है। अब इस दिशा में अनेक नयी स्टार्ट-अप कम्पनियाँ भी पदार्पण कर चुकीं हैं।[4][5]

सन्दर्भ[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]