ईरान-पाकिस्तान सम्बन्ध

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{{{party1}}}–{{{party2}}} सम्बन्ध
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ईरान

पाकिस्तान

जब अगस्त १९४७ में पाकिस्तान बना तो ईरान पाकिस्तान को मान्यता देने वाले प्रथम कुछ राष्ट्रों में से एक था। ईरान की अधिकांश जनता शिया है जबकि पाकिस्तान में सुन्नियों का बर्चस्व है। इस कारण कई बार दोनों देशों के सम्बन्ध बहुत बिगड़ जाते रहे हैं। उदाहरण के लिए पाकिस्तान में जब जनरल जिया-उल-हक का शासन था उस समय पाकिस्तान के शियाओं की शिकायत थी कि शुन्नियों की पक्षधर सरकार हमारे साथ भेदभाव करती है और पूरे पाकिस्तान में इस्लामीकरण का प्रोग्राम चल रहा है। [1] जब सन १९७९ में ईरान में 'इस्लामी क्रांति' हुई तब सउदी अरब और ईरान दोनों ने पाकिस्तान को अपने विवादों की युद्धिभूमि बना दिया। इसी प्रकार १९९० के दशक में पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान के बहावी तालिबान संगठनों का समर्थन भी ईरान को नहीं भाया। [2]

दोनों के बीच विवादों का कारण पाकिस्तान का बलूचिस्तान प्रांत भी है जो ईरान की सीमा से लगा हुआ है। बलूच पाकिस्तान में भी हैं और ईरान में भी। ईरान का सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत पाकिस्तान की सीमा से लगा है, जहाँ बलूच रहते हैं। एक समय ऐसा भी था जब पाकिस्तान और ईरान दोनों बलूच नेशनलिस्ट के बढ़ते प्रभाव को ख़तरा मानते थे। १९७० के दशक में इन नेताओं और आंदोलन पर कार्यवाही भी हुई, लेकिन पाकिस्तान के साथ कई मुद्दों पर विवाद के बीच ईरान ने बलूच नेशनलिस्ट को लेकर नरम रवैया अपनाना शुरू कर दिया। ईरान में मौजूद बलूच संगठन ईरान के ख़िलाफ़ सुन्नी बलूच संगठनों से भी दो-दो हाथ करते रहते हैं और कई मौक़े पर उन्होंने ईरान की मदद भी की है।

सम्बन्धों में उतार-चढ़ाव[संपादित करें]

पाकिस्तान और ईरान के रिश्ते में हमेशा से उतार-चढ़ावा आता रहा है। 1948 में तो पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाक़त अली ख़ान ने ईरान का दौरा भी किया था। बाद में ईरान के शाह ने 1950 में पाकिस्तान का दौरा किया। दोनों देशों के रिश्ते अच्छी दिशा में जाते दिख रहे थे। लेकिन पाकिस्तान में शिया-सुन्नी तनाव का असर ईरान के साथ उसके रिश्ते पर पड़ा।

1979 की इस्लामी क्रांति के बाद ईरान ने पाकिस्तान को लेकर आक्रामक रुख़ अपनाना शुरू कर दिया। साथ ही उसने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान को प्रश्रय देने की पाकिस्तान की नीति का विरोध भी किया। अमरीका में 9/11 के हमले के बाद पाकिस्तान की नीति ईरान को अच्छी नहिई लगी, साथ ही पाकिस्तान की सऊदी अरब समर्थक नीति ने भी रिश्तों में खटास पैदा की।

जनरल ज़िया उल हक़ के शासनकाल में पाकिस्तान की सऊदी अरब के साथ निकटता और बढ़ी जो ईरान को फूटी आँखों नहीं सुहाती थी। लेकिन इन सबके बीच दोनों देशों के बीच आर्थिक सम्बन्ध बने रहे। और तो और, ईरान ने चीन की अगुआई में बन रहे आर्थिक कॉरिडोर को लेकर भी अपनी रुचि दिखाई। पाकिस्तान के लिए भी तेल और गैस से सम्पन्न ईरान व्यापार के लिए बेहतर विकल्प रहा।

सन २०२० के जनवरी में अमरीकी सेना की कार्यवाही में ईरानी सेना के कमांडर मेजर जनरल क़ासिम सुलेमानी की मौत हो गई थी जिसके बाद अमरीका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख बाजवा को फ़ोन किया। पाकिस्तान ने ईरान और अमरीका के बीच तनाव कम करने की कोशिश की।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने तो एक सभा में यहाँ तक कह दिया कि पाकिस्तान अपनी भूमि का इस्तेमाल किसी भी देश के विरुद्ध हमले के लिए नहीं होने देगा। इमरान ने उस समय सऊदी अरब और ईरान में सन्धि कराने की बात भी की थी। हालांकि ईरान में कुछ लोगों को यह बात अच्छी नहीं लगी कि पाकिस्तान ने कड़े शब्दों में सुलेमानी की हत्या की निन्दा नहीं की। अधिकतर मौक़ों पर पाकिस्तान ईरान और अमरीका के रिश्तों में तटस्थ ही रहना चाहता है। शायद इसका कारण पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति भी है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Hunter, Shireen (2010). Iran's Foreign Policy in the Post-Soviet Era: Resisting the New International Order. ABC-CLIO. पृ॰ 144. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780313381942. मूल से 19 अक्टूबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 मई 2020. Since then, Pakistan's sectarian tensions have been a major irritant in Iranian-Pakistan relations.
  2. Pande, Aparna (2011). Explaining Pakistan's Foreign Policy: Escaping India. Taylor & Francis. पृ॰ 159. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781136818943. Both Saudi Arabia and Iran used Pakistan as a battleground for their proxy war for the 'hearts and minds' of Pakistani Wahhabis and Non muslims with the resultant rise in sectarian tensions in Pakistan. The rise of the Taliban in Afghanistan in the 1990s further strained Pakistan-Iran relations. Pakistan's support of the Wahhabi Pashtun organization created problems for Shia Iran for whom a Taliban-controlled Afghanistan was a nightmare.