ईदोकी व्याख्या

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कितना उपयोगी होगा अगर हम अन्य देशों के लोगों से उसी तरह सम्भाषण या पत्र व्यवहार कर सकें जिस तरह हम अपने देशवासियों के साथ करते हैं। परन्तु अलग अलग भाषाएँ होने के कारण यह अक्सर कठिन यातो असंभव हो जाता है। इस प्रश्न का हल कई लोग ऐसे देते हैं, "उन्हे अंग्रेजी सिखनी चाहिए"। यह सच है कि अंग्रेजी दुनिया में सबसे ज़्यादा बोली जानेवाली भाषा है, परन्तु उसे सीखने में अधिक ज़्यादा वक्त और कुछ कला की भी ज़रूरत है और वह दुनिया में हर जगह नहीं बोली जाती है। अंग्रेजी कई देशों से मिली जुड़ी होने के कारण वह अपक्षपाती भाषा नहीं है। जो लोग अंग्रेजी बोलते हैं, उनके लिए, "उन्हे अंग्रेजी सीखनी चाहिए" यह उत्तर योग्य लगता होगा, मगर फ्रांसीसी बोलने वाले यह नहीं मानते।

इसलिए य़ूनायटेड नेशन्स में छः आधिकारिक भाषाएँ हैं और य़ूनेस्को में आठ। यूरोपीय सम्मिलित अधिकार में भी लगभग इतनी ही भाषाएँ हैं और वह अनुवाद और भाषांतर करने में कई करोडों में पैसे खर्च करते हैं। हालांकि अंग्रेजी और फ्रांसीसी भाषाएँ वहाँ वर्चस्व रखते हैं, आजकल जर्मन देश के निवासी उनकी भाषा को ज़्यादा वर्चस्व देने की मांग कर रहे हैं।

इन राष्ट्रीय भाषाओं में से किसी एक भाषा का उपयोग किया गया तो जिस देशकी यह मूल भाषा है, उस देश को अत्यंत राजनीतिक और सांस्कृतिक लाभ और श्रेष्ठता प्राप्त होगी। इस कारण से यह उपाय अन्य सदस्यों को स्वीकार नहीं है, तथापि यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन में आज भी फ्रांसीसी भाषाका उपयोग मुख्य भाषा के रूप में किया जाता है।

इस समस्याका हल इसी में है कि कोई एक तटस्थ और आयोजित एस्पेरान्तो या ईदो जैसी भाषा का उपयोग किया जाए। इस भाषा का उपयोग जातीय भाषाओं के बदले में रखना नहीं, मगर लोगों के बीच के अंतर को मिटाने के लिए किया जाएगा, जो लोग और प्रकार से सम्भाषण नहीं कर पाते। इस तरह से हम बीच रास्ते में मिल सकते हैं और किसी एक पक्ष को अन्य लोगों से ज़्यादा लाभ नहीं होगा।

जो भाषा चुन ली जाए वह बहुत कृत्रिम नहीं होनी चाहिए। उसका शब्द संग्रह प्रचलित भाषाओं पर आधारित होना चाहिए (अक्षर विन्यास और उच्चारण असमान होने के बावजूद भी इन भाषाओं में कई शब्द समान है)। उसका व्याकरण हो सके उतना सरल होना चाहिए बिना किसी अपवाद या मुहावरों के, जो राष्ट्रीय भाषा सीखनेवालों के मार्ग में बाधाएँ उत्पन्न करते हैं।

इसी विचारने अनेक लोगों को प्रेरित किया, इनमें से पाद्री श्लेयर, वोलापूक भाषा के आविष्कारक और डोक्टर ज़ामेनहोफ़, जिनकी भाषा एस्परान्तो पिछली एक शताब्दी से आजतक दुनिया में सबसे ज़्यादा जानी हुई आयोजित भाषा है। कुछ सालों के प्रयोग के बाद इस भाषा में कई सुधारना करने के प्रस्ताव किए गये।

एस्परान्तोका एक नियम ऐसा है कि विशेषण और जिन शब्दों को वह परिमित करते हैं, उनके अन्तिम अक्षर समान होने चाहिए। इस प्रकार की जटिलता की कोई आवश्यकता नहीं है जैसे की अंग्रेजी और हंगरी की भाषाएँ दिखलाती हैं जिनके व्याकरण में विशेषण अपरिवर्तित होते हैं। और ज़ामेनहोफ भी इस भाव से अनुकूल थे, परन्तु कई कारणों से एस्पेरान्तोके व्याकरण नियमों में बदल नहीं हुआ।

इन सुधारन सुझावोंके आधार पर कुछ वैज्ञानिकों ने और भाषाप्रवीणों ने मिलकर ईदो भाषा को विकसित किया। इस समिति में भाषा प्रवीण प्रोफेसर ओटो जेस्परसन और फ्रांसीसी गणितज्ञ और दार्शनिक प्रोफेसर लुई कुतूरात सम्मिलित थे। इन्होंने एस्पेरान्तो और इदीओम नेउत्राल (Idiom Neutral) जैसी निर्मित भाषाओं से अति उत्तम विशेषताओं को चुना और इसमें सुधारना करके एक ऐसी भाषाका विस्तार किया जो दुनिया में सबसे सरल और रिति सहित भाषा अवश्य होगी।

डोक्टर ज़ामेनहोफ की दृष्टि में एक और बहुत तार्किक और सुविधाजनक अनुमति थी। एस्परान्तो भाषा में कोई व्यक्ति या जानवरों के संज्ञा (जैसे "अभिनेता" या "सिंह्") अधिकतर पुल्लिंग होते हैं। अगर इन शब्दों का लिंग स्त्रीलिंग में बदलना हो तो उनमे विभक्ति लगाई जाती है। इसकी जगह में ज़ामेनहोफ संज्ञाओ में लिंग का भेद न रखने की सोचने लगे परन्तु यह बदल नहीं हुआ।

ईदो भाषा में यह सुधारनाएँ अपनायी गयी मगर एस्परान्तो में नहीं। जिन लोगों ने इन दोनों आयोजित भाषाओं का अभ्यास किया है उनमें से अधिकतर लोग ईदो को पसंद करते हैं। दोनों भाषाओं में अनेक चीज़ें उभयनिष्ठ है, इनमें सम्मिलित है श्लेयर और ज़ामेनहोफ की प्रेरणा।

एस्परान्तो की प्रगति चाहने वालों के असंदिग्ध उत्साह और व्यग्रता के कारण अन्तर्राष्ट्रीय सहायक भाषा के फैलाव का विचार बहुत जाना हुआ है। एस्परान्तो भी काफी जानी हुई और सरल भाषा है, मगर उसके अनोखे और असाधारण उच्चारण चिह्न और अनावश्यक जटिलता के कारण कई लोग उसे पसंद नहीं करते। जहाँ एस्परान्तो में कमीयाँ हैं वहाँ ईदो उन्हे सुधारकर आगे बढ़ती है।

जिनको ईदो का अनुभव है उन्हे पता है कितना आसान है सोचना की हमें क्या कहना है, ना की हमें कैसे कहना चाहिए।

परन्तु यह सब हुई सिद्धांत विषयक बातें, साधारण व्यवहार में ईदो कैसी है? ईदो बोलनेवालों की कई सम्मेलनें अनेक देशों में हो चुकी है। इससे यह साबित होता है कि इस भाषा का उपयोग सफल है।

ईदो के बारे में पुस्तकें, शब्द सूचियाँ और व्याकरण सिखानेवाली पुस्तकें अनेक राष्ट्रीय भाषाओं में प्रकाशित है। इस भाषा में काफी कविता भी लिखी हुई हैं और एक वीर विषयक हास्यप्रद कहानी भी (लेखक आंद्रेयास जुस्त की पुस्तक "ला सेरचादो")। एक नई दुनिया उनकी राह देखती है जो भी इस प्रशंसनीय भाषा को सीखने का थोड़ासा प्रयास करें।

इस भाषा का उपयोग शौक के तौरसे भी किया जा सकता है और इसके अतिरिक्त दुनिया के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने का साधन भी हो सकता है।

इस समय ईदो सीखने के लिए हिन्दी में कोई पुस्तकें या अन्य साधन नहीं है। हिन्दी बोलने वाले किसी और भाषा के द्वारा ही ईदो सीख सकते हैं। अन्तरजाल में ऐसे कई स्थान हैं जहाँ पर अंग्रेजी या किसी और युरोपीय भाषा के द्वारा ईदो सीखी जा सकती है।