इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय
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IBRAHIM ADIL SHAH | |||||
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ADIL SHAHI EMPEROR | |||||
शासनावधि | 1580-1626 | ||||
पूर्ववर्ती | Taham Asaf | ||||
उत्तरवर्ती | Muhammad Adil Shah | ||||
निधन | 1626 Bijapur | ||||
समाधि | |||||
जीवनसंगी | Malika Jahan or Chandsultana of Golkonda Kamal Khatoon Taaj Sultana or Badi Sahiba Sundar Mahal | ||||
संतान | Durvesh Badshah From Malikajahan Chand Sultana Sultan Sulaiman From Kamal Khatun Mohammed Adil Shah GAZI From Taaj Sultana Khizr Shah From Sundar Mahal Zuhra Sultana Burhan Sultan Begum Wife of Daniyal son of Emperor Akbar Fatima Sultana Urf Badshah Sahiba Wife of Sayyed Habibullah Husaini Ibn Yadullah Husaini, the successor of Bandanawaz Gesudaraz of Gulbargah | ||||
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घराना | House of Osman | ||||
राजवंश | Adil Shahi Empire | ||||
पिता | Tahaj Asaf | ||||
धर्म | Shia till 1552 and accepted Sunni Islam in the hands of Shah Sibghatullah Shuttari and Sunnism became the official religion of Bijapur Adil Shahi Dynasty |
इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय (1556- सितंबर 12, 1627) बीजापुर सल्तनत के आदिल शाही वंश के राजा थे।
प्रारंभिक जीवन
[संपादित करें]अली आदिल शाह के पिता इब्राहिम आदिल शाह प्रथम ने सुन्नी सरदारों (कुलीन व्यक्तियों), हब्शियों और दक्षिण भारतीयों के बीच ताकत का बंटवारा कर दिया था। हालांकि अली आदिल शाह खुद शियाओं का समर्थन करते थे।[1]
शासन
[संपादित करें]1580 में अली आदिल शाह प्रथम के निधन के बाद राज्य के सरदारों ने इमरान सायजाता तहमश के बेटे और आदिल शाह प्रथम के भतीजे इमरान इब्राहिम को राजा बनाने का फैसला किया। उस वक्त इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय नौ साल के थे।[2]
कब्जा
[संपादित करें]कमाल खान नाम के एक दक्षिण भारतीय जनरल ने सत्ता हथिया ली और शासक (हाकिम) बन गया।[2] कमाल खान ने विधवा रानी चांद बीबी के प्रति अनादर दिखाया; चांद बीबी को लगता था कि कमाल खान सिंहासन हड़पने की महत्त्वाकांक्षा रखता है। चांद बीबी ने एक अन्य जनरल हाजी किश्वर खान की मदद से कमाल खान पर हमले की साजिश रची. भागते वक्त कमाल खान को पकड़ लिया गया और किले में उसका सिर कलम कर दिया गया।
हाकिम
[संपादित करें]किश्वर खान इब्राहिम के दूसरे हाकिम बने। उन्होंने धारसेओ में अहमदनगर के सुलतान को हराकर दुश्मन फौज के सभी असलहों और हाथियों पर कब्जा किया। उसके बाद उसने बीजापुर के अन्य जनरलों को आदेश दिया कि वो जब्त किए हुए सभी हाथियों को उनके हवाले कर दें। उस जमाने में हाथी की काफी अहमियत होती थी और इसलिए जनरलों को ये आदेश काफी बुरा लगा। जनरलों ने चांद बीबी के साथ और बंकापुर के जनरल मुस्तफा खान की मदद से किश्वर खान को खत्म करने की साजिश रची. किश्वर खान को उसके जासूसों से इस साजिश की सूचना मिल गई। किश्वर खान ने मुस्तफा खान के खिलाफ सेना भेजी और लड़ाई में उसे पकड़कर मार दिया गया।[2]
वास्तविक शासक
[संपादित करें]चांद बीबी ने किश्वर खान को चुनौती देने की कोशिश की, लेकिन उन्हें सतारा के किले में कैद कर लिया और किश्वर ने खुद को बादशाह घोषित करने की कोशिश की। हालांकि किश्वर खान पहले ही बाकी बचे जनरलों के बीच काफी अलोकप्रिय हो चुके थे। जब जनरल इखलास खान की संयुक्त सेना ने बीजापुर पर चढ़ाई की तो वो भागने को मजबूर हो गए। सेना में तीन हब्शी सरदारों - इखलाश खान, हमीद खान और दिलावर खान - के सैनिक शामिल थे।[1] किश्वर खान ने अहमदनगर में अपनी किस्मत आजमाने की असफल कोशिश की और फिर वहां से गोलकुंडा भाग गए। निर्वासन के दौरान मुस्तफा खान के एक रिश्तेदार द्वारा उनकी हत्या कर दी गयी। उसके बाद चांद बीबी को शासक घोषित कर दिया गया।[2]
थोड़े समय के लिए इखलास खान शासक बने लेकिन जल्द ही चांद बीबी ने उन्हें हटा दिया। बाद में उन्होंने फिर से अपनी तानाशाही शुरू की जिसे जल्दी ही दूसरे हब्शी जनरलों ने चुनौती दी। [1]
बीजापुर पर हमला
[संपादित करें]बीजापुर के हालात का फायदा उठाते हुए अहमदनगर के निजाम शाही सुल्तान ने गोलकुंडा के कुतुब शाही के साथ मिलकर बीजापुर पर हमला कर दिया। बीजापुर के पास जितने सैनिक थे वे इस संयुक्त हमले का मुकाबला करने के लिए पर्याप्त नहीं थे।[2] हब्शी जनरलों को समझ में आ गया कि वे अकेले शहर की रक्षा नहीं कर पाएंगे और इसीलिए उन लोगों ने चांदबीबी को अपना इस्तीफा सौंप दिया। [1] चांद बीबी द्वारा नियुक्त शिया जनरल अबू-अल-हसन ने कर्नाटक में मराठा सैनिकों को बुलाया। मराठा सैनिकों ने हमलवारों की आपूर्तियाँ रोक दी। [2] अहमदनगर-गोलकुंडा की संयुक्त सेना को पीछे हटना पड़ा.
उसके बाद बीजापुर पर कब्जा करने के लिए इखलास खान ने दिलावर खान पर हमला किया। हालांकि उन्हें हरा दिया गया और दिलावर खान 1582 से 1591 तक सर्वोच्च शासक बन गए।[1] वे इब्राहिम के आखिरी हाकिम थे।
इब्राहिम आदिल शाह का शासनकाल
[संपादित करें]भारतीय इतिहास में आदिल शाही वंश के पांचवें बादशाह जगदगुरू बादशाह के नाम से जाने जाते हैं। उन्होंने संगीत के माध्यम से शिया और सुन्नियों के बीच तथा हिंदू और मुसलमानों के बीच सांस्कृतिक सद्भाव बनाने की कोशिश की। वे संगीत के बहुत बड़े प्रेमी थे, वे वाद्य यंत्र बजाया करते थे, उन्होंने हिंदू देवी-देवताओं सरस्वती और गणपति के सम्मान में गाने गाए और तैयार किए। उन्होंने दक्खनी भाषा में किताब-ए-नवरस (नव रसों की पुस्तक) नामक एक किताब लिखी. यह 59 कविताओं और 17 दोहों का एक संग्रह है। उनकी सभा के कवि जहूरी के मुताबिक उन्होंने यह किताब फारसी परंपराओं और मान्यताओं के बीच पले-बढ़े लोगों को भारतीय आदर्शों में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले नव रस के सिद्धांत से अवगत कराने के लिए लिखी थी। किताब की शुरुआत शिक्षा की देवी सरस्वती की प्रार्थना से हुई है। उनका दावा था कि उनके पिता परमात्मा गणपति और उनकी माता पवित्र सरस्वती थीं। उनके लिए तानपूरा शिक्षण का प्रतीक था – "विद्यानगरी शहर में रहने वाला तानपूरावाला इब्राहिम ईश्वर की कृपा से शिक्षित हुआ" (पहले बीजापुर का नाम विद्यानगरी था।)
इब्राहिम द्वितीय ने सार्वजनिक तौर पर ऐलान कर दिया कि वे सिर्फ विद्या यानी शिक्षा, संगीत और गुरुसेवा (गुरू की सेवा) चाहते थे। वे गुलबर्ग के सूफी संत हजरत बंदा नवाज के शिष्य थे। उन्होंने उन्हें विद्या और धर्मार्थ सेवा अर्पित करने के लिए एक प्रार्थना भी तैयार की थी।
उन्होंने अपनी संगीतमय कल्पना या एक संगीतमय शहर की कल्पना को मूर्त रूप देने के लिए एक नए शहर नवरसपुर की स्थापना की। उन्होंने महल के अंदर एक मंदिर भी बनवाया था जो आज भी मौजूद है।
बीजापुर ने उस दौरान के सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों और नर्तकों को आकर्षित किया क्योंकि राजा खुद एक महान पारखी और संगीत के संरक्षक के तौर पर लोकप्रिय थे और उनसे मान्यता मिलने को एक विशेषाधिकार के तौर पर देखा जाता था।
किताबे नौरस
[संपादित करें]भक न्यारी न्यारी भाव एक कहा तुर्क कहा ब्राह्मण'
अलग-अलग भाषाओं वाले मुसलमान हों या ब्राह्मण- भावनाएं एक ही हैं।
नौरस सुर जुगा ज्योति अनी सरोगुनी यूसत सरस्वती माता इब्राहिम प्रसाद भई दूनी'
हे माता सरस्वती! चूंकि आपने इब्राहिम पर कृपा की है, इसलिए उनकी नवरस हमेशा के लिए बनी रहेगी.
उन्होंने अपनी पत्नी चांद सुलताना, अपने तानपुरा मोतीखान और अपने हाथी आतिश खान पर भी कविताएं लिखी थीं। वे मराठी, दक्खनी, उर्दू और कन्नड़ भाषाओँ को धाराप्रवाह बोल लेते थे और उन्होंने भी अपने पूर्वजों की तरह कई हिंदुओं को प्रमुख पदों पर नियुक्त किया था।
पूर्वाधिकारी Ali Adil Shah I |
Adil Shahi Rulers of Bijapur 1556–1627 |
उत्तराधिकारी Mohammed Adil Shah |
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ अ आ इ ई उ Dr. Richard Pankhurst. "Great Habshis in Ethiopian/Indian history: History of the Ethiopian Diaspora, in India - Part IV". मूल से 25 अप्रैल 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2006-12-24. सन्दर्भ त्रुटि:
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अमान्य टैग है; "pankhurst_habshi" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है - ↑ अ आ इ ई उ ऊ Ravi Rikhye (2005-03-07). "The Wars & Campaigns of Ibrahim Adil Shahi II of Bijapur 1576-1626". मूल से 20 अक्तूबर 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2006-12-24.
- एच.एस. कॉजलागी द्वारा बीजापुर की यात्रा
- कर्नाटक सरकार द्वारा प्रकाशित एक स्मारिका "अवलोकन"
- बीजापुर नगर निगम द्वारा प्रकाशित शताब्दी स्मारिका