विश्व स्वास्थ्य संगठन की आवश्यक औषधियों की प्रादर्श सूची

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विश्व स्वास्थ्य संगठन की आवश्यक औषधियों की प्रादर्श सूची ( WHO Model List of Essential Medicines (EML)), विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रकाशित दवाओं की सूची है जो स्वास्थ्य के लिए सबसे आवश्यक, सबसे प्रभावी और सबसे सुरक्षित समझीं जातीं हैं। इस सूची के आधार पर विश्व के देश अपने देश के लिए आवश्यक औषधियों की सूची बनाते हैं और प्रकाशित करते हैं। सन २०१६ तक विश्व के १५५ देशों ने ऐसी सूची तैयार कर ली है जिनमें भारत भी प्रमुख देश है।

भारत की आवश्यक औषधियों की सूची[संपादित करें]

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा चयनित दवाओं की एक सीमित सूची और अपनी स्थानीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार ने 1996 में अपनी पहली राष्ट्रीय आवश्यक दवाओं की सूची प्रकाशित की जिसे 2003 में संशोधित कर आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (एनएलईएम) तैयार की गई। इस सूची की दवाओं के मूल्य राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) खुद नियंत्रित करती है, जिसके चलते मरीजों को ये दवाएं अपेक्षाकृत सस्ती मिलती हैं। आवश्यक दवाओं की सूची, अस्पताल दवा नीतियों, सार्वजनिक क्षेत्र में दवाओं की खरीद और आपूर्ति, चिकित्सा लागत प्रतिपूर्ति और दवा दान में मार्गदर्शक होती है। यह सूची सही खुराक के लिए एक संदर्भ दस्तावेज के रूप में भी कार्य करती है। एनएलईएम सूची में शामिल दवाइयां और टीके हर समय, पर्याप्त मात्रा में और उचित खुराक के अनुसार मरीजों के लिए किफायती कीमतों पर उपलब्ध होने चाहिए।

2014 के जुलाई माह में एनपीए ने कई दवाओं की कीमतों में कमी की थी। इसके अलावा सितंबर २०१४ में भी एनपीपीए ने 43 दवाओं को इस सूची में डाला था।

दिसम्बर 2014 को दिए गए आदेश में एनपीपीए ने 52 सूत्रीकरण (फार्मूलेशन) पैक के, ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (डीपीसीओ) 2013 के तहत दोनों उच्चतम मूल्य और खुदरा मूल्य पैक की कीमतों को संशोधित किया और आवश्यक दवाओं की कीमतों पर नियंत्रण रखने के प्रयास के तहत 52 नई दवाओं को अपनी मूल्य नियंत्रण प्रणाली के दायरे में लेने का फैसला किया। अपनी अधिसूचना में एनपीपीए ने कहा था कि वह दवाओं की कीमतें उसके फॉमूर्लेशन के आधार पर तय करती है, जिनमें पैरासिटामॉल, ब्लीचिंग पाउडर, कैटामाइन हाइड्रोक्लोराइड, जिंक सल्फेट, क्लॉकासिलिन, जेंटामाइसिन, ग्लूकोज के साथ ही अन्य मिश्रण वाली कई जरूरी दवाइयां शामिल हैं।

अधिूसचित फॉमूर्लेशन के विनिर्माताओं से कहा गया कि अगर उनकी दवाओं की कीमत अधिकतम खुदरा मूल्य तय सीमा से ज्यादा हो तो वे उसमें कटौती करें और अगर इन दवाओं की कीमतें तय सीमा से नीचे है हो तो वे अधिकतम खुदरा मूल्य को उक्त स्तर पर बनाए रख सकते हैं। भारत में जरूरी दवाओं की किफायती कीमत पर उपलब्धता अहम मुद्दा है, क्योंकि भारत की ज्यादातर आबादी रोजाना करीब 125 रुपए से कम आय पर गुजर-बसर करती है और ऐसे में बीमारी के इलाज़ के लिए आवश्यक दवाओं का खर्च उठाने में सक्षम नहीं है। बाजार में हर दवा अनेक नामों से बिकती है। उपभोक्ता चिकित्सा ज्ञान के अभाव के कारण यह निर्णय करने की स्थिति में ही नहीं होता कि अलग-अलग नामों से बिकने वाली दवा एक ही है या नहीं। इसी कारण एक ही दवा के विभिन्न ब्राण्ड बाजार में बिकते हैं, जिनकी कीमतों में जमीन-आसमान का अंन्र होता है। सरकार के इस कदम के बाद अब 450 से अधिक दवाएं एनपीपीए की मूल्य नियंत्रण प्रणाली के अधीन आ गयी।

मूल्य नियंत्रण की सूची में शामिल 52 दवाओं में पैरासिटामॉल, डायजेपम, डिक्लोफेनेक, ग्लुकोज, कोडीन फॉस्फेट, एमोक्सिसिलिन, सिप्रोफ्लोक्सेसिनऔर लोजार्टन जैसी आमतौर पर काम आने वाली दवाएं शामिल की गयीं थीं। इसमें कुछ दर्दनिवारक व एंटीबायोटिक(इन्फेक्शन से लड़ने वाली) दवाएं भी हैं। इसके अलावा कैंसर और त्वचा रोगों के इलाज में काम आने वाली, आंत्रशोथ (गैस्ट्रो ड्रग) से संबंधी दवाएं और टीके भी शामिल हैं। जेनेरिक दवा वह दवा जो किसी ब्रांड नाम से नहीं बनाई जाती, बल्कि उस नाम से बनाई जाती है, जो इसकी विशेषज्ञ समिति ने तय किया हो या अपने रासायनिक नाम से।

भारत सरकार के केन्द्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने सितम्बर २०१६ में राष्ट्रीय आवश्यक औषधि सूची में 106 दवाओं को शामिल करने तथा 76 दवाओं को इससे बाहर करने का फैसला किया था। सरकार के इस फैसले से आम लोगों को 2228 करोड़ रुपए की बचत होगी।

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