आयरन कर्टेन
आयरन कर्टन वह ऐतिहासिक रूपक है, जो सोवियत संघ और उसके सहयोगी देशों द्वारा अपनाई गई अलगाववादी नीतियों को दर्शाता है। यह शब्द पश्चिमी देशों के साम्यवाद विरोधी प्रचार में एक प्रभावशाली प्रतीक बन गया। इसका प्रमुख उपयोग ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने 5 मार्च, 1946 को मिसौरी के फुल्टन कॉलेज में अपने ऐतिहासिक भाषण "द सीन्यूज ऑफ पीस" में किया।[1] चर्चिल ने अपने भाषण में "आयरन कर्टन" के माध्यम से यूरोप में सोवियत नियंत्रण और पश्चिमी लोकतंत्र के बीच अंतर को रेखांकित किया।[2]
आयरन कर्टन की उत्पत्ति
[संपादित करें]"आयरन कर्टन" शब्द का पहला उल्लेख 1921 में हुआ, जब मित्र राष्ट्रों ने साम्यवाद को रोकने के लिए रणनीतियाँ अपनाई थीं। लेकिन इसे प्रसिद्धि चर्चिल के 1946 के भाषण से मिली। चर्चिल ने इसे एक ऐसे प्रतीक के रूप में वर्णित किया, जो पूर्वी और पश्चिमी यूरोप को विभाजित करता है। उनके अनुसार, सोवियत संघ अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने के लिए पूर्वी यूरोप को नियंत्रित कर रहा था। यह अवधारणा सोवियत संघ के राजनीतिक और वैचारिक अलगाव को परिभाषित करती है, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा।[3]
शीत युद्ध का आरंभ
[संपादित करें]द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप के कई देशों में साम्यवादी शासन स्थापित किया। यह पश्चिमी शक्तियों, विशेषकर अमेरिका और ब्रिटेन के लिए चिंता का विषय बन गया। चर्चिल ने अपने भाषण में पश्चिमी लोकतांत्रिक मूल्यों और सोवियत संघ के पुलिस-राज्य तंत्र के बीच गहरे अंतर को रेखांकित किया। उन्होंने अमेरिका और ब्रिटेन के बीच घनिष्ठ सहयोग की वकालत की और शांति बनाए रखने के लिए सैन्य और कूटनीतिक साझेदारी पर जोर दिया।[1]
पूर्वी और पश्चिमी यूरोप का विभाजन
[संपादित करें]आयरन कर्टन ने यूरोप में स्पष्ट विभाजन पैदा किया। पश्चिमी यूरोप, लोकतांत्रिक और पूंजीवादी शासन के तहत तेजी से प्रगति कर रहा था, जबकि पूर्वी यूरोप सोवियत संघ की कठोर साम्यवादी नीतियों के अधीन था। सोवियत संघ ने इन क्षेत्रों में नागरिक स्वतंत्रताओं को कुचल दिया, मीडिया पर पूर्ण नियंत्रण रखा और बाहरी संपर्कों को सीमित कर दिया। आयरन कर्टन केवल राजनीतिक विभाजन का प्रतीक नहीं था, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक विभाजन को भी दर्शाता था।[4]
आयरन कर्टन के प्रभाव
[संपादित करें]आयरन कर्टन के कारण पश्चिमी और पूर्वी यूरोप में गहरे अंतर देखने को मिले। पश्चिमी यूरोप अमेरिकी "मार्शल प्लान" की सहायता से आर्थिक पुनर्निर्माण के पथ पर अग्रसर हुआ। इसके विपरीत, पूर्वी यूरोप सोवियत संघ की केंद्रीकृत अर्थव्यवस्था में फँसा रहा। पश्चिमी यूरोप में लोकतांत्रिक मूल्यों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को महत्व दिया गया, जबकि पूर्वी यूरोप में नागरिक स्वतंत्रताओं को दबा दिया गया।[3]
आयरन कर्टन का पतन
[संपादित करें]1980 के दशक में सोवियत संघ के नेता मिखाइल गोर्बाचेव ने "ग्लासनोस्त" और "पेरेस्त्रोइका" जैसी सुधारवादी नीतियाँ लागू कीं, जिन्होंने सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप में बदलाव की शुरुआत की। 1989 में बर्लिन दीवार का गिरना आयरन कर्टन के अंत का प्रतीक बना। 1991 में सोवियत संघ के पतन के साथ इस युग का पूर्ण अंत हो गया।[4]
निष्कर्ष
[संपादित करें]आयरन कर्टन ने शीत युद्ध के दौरान वैश्विक राजनीति को परिभाषित किया। यह न केवल वैचारिक संघर्ष का प्रतीक था, बल्कि लोकतंत्र और साम्यवाद के बीच गहरे विभाजन का भी परिचायक था। इसके पतन ने दुनिया को एक नए युग में प्रवेश कराया, जिसमें शांति और सहयोग के नए आयाम स्थापित हुए।[2]
संदर्भ
[संपादित करें]- ↑ अ आ "Winston Churchill's Iron Curtain Speech—March 5, 1946". The National WWII Museum | New Orleans (in अंग्रेज़ी). 2021-03-05. Retrieved 2025-01-27.
- ↑ अ आ Beede, Benjamin R. (2014), "Iron Curtain", The Encyclopedia of Political Thought (in अंग्रेज़ी), John Wiley & Sons, Ltd, pp. 1911–1912, doi:10.1002/9781118474396.wbept0539, ISBN 978-1-118-47439-6, retrieved 2025-01-27
- ↑ अ आ NATO. "From Iron Curtain to Independence". NATO (in अंग्रेज़ी). Retrieved 2025-01-27.
- ↑ अ आ "Iron Curtain | Definition & Facts | Britannica". www.britannica.com (in अंग्रेज़ी). 2025-01-03. Retrieved 2025-01-27.