आदि ब्राह्म समाज

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आदि ब्राह्म समाज की स्थापना १८६६ में देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने की थी। इसके धर्म का नाम 'आदि धर्म' रखा गया था।

१८६६ में जब केशवचन्द्र सेन ने ब्राह्म समाज से अलग होकर 'भारतवर्षीय ब्राह्म्मसमाज' बना लिया, तब देवेन्द्रनाथ ठाकुर के नेतृत्व वाले ब्राह्म समाज का नया नाम "आदि धर्म" या "आदि ब्राह्म समाज" (बंगाली: আদি ব্রাহ্ম সমাজ) पड़ा। केशवचन्द्र सेन, सामाजिक रक्षणशीलता के प्रशन पर देवेन्द्रनाथ ठाकुर के विचारों से सहमत नहीं थे। सन १८७८ में 'साधारण ब्राह्मसमाज' का भी इसमें विलय हो गया। यह ब्रिटिश भारत में पहला संगठित जातिविहीन आन्दोलन था और बंगाल से लेकर असम, बॉम्बे स्टेट (आधुनिक सिन्ध, महाराष्ट्र और गुजरात), पंजाब और मद्रास, हैदराबाद और बंगलौर तक में इसका प्रचार-प्रसार था।

पंजाब में इसका कार्य नवीन चन्द्र राय देख रहे थे जो हिन्दी के महान पक्षधर थे।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]