आत्महत्या का प्रयास

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१९३० के एक अखबार की खबर जिसमें सूचना है कि एक ३५ वर्षीय महिला आत्महत्या के प्रयास के बाद गंभीर रूप से घायल हो गई है।

एक आत्महत्या का प्रयास या एक आत्महत्या के लिए प्रयास मरने के लिए एक प्रयास है। इसे एक असफल आत्महत्या के प्रयास के रूप में संदर्भित किया जा सकता है। लेकिन बाद की शर्तें शोधकर्ताओं के बीच बहस का विषय हैं। अमेरिकन सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) एक आत्महत्या के प्रयास प्रयास को इस प्रकार परिभाषित करता है: "आत्महत्या का प्रयास तब होता है जब कोई अपने जीवन को समाप्त करने के इरादे से खुद को नुकसान पहुंचाता है, लेकिन वे अपने कार्यों के परिणामस्वरूप नहीं मरते हैं।" आत्महत्या के प्रयासों पर एक शब्द और है जिसे पैरासुसाइड कहा जाता है, जिससे कि आत्म-नुकसान तो होता है पर खुद को मारने का कोई वास्तविक या सुसंगत इरादा नहीं होता है।[1]

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा-309 के तहत आत्महत्या का प्रयास दंडनीय अपराध घोषित है, हालांकि, यह सवाल अक्सर पूछा जाता रहा है कि आत्महत्या का प्रयास करने वाले व्यक्ति को सजा देना कितना सही है? इस सवाल और कानून की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने कई बार अपने मत दिए हैं, लेकिन यह मामला एक बार फिर 2020 में सुर्खियों में आया था। सुप्रीम कोर्ट ने 11 सितंबर 2020 को एक गैर-सरकारी संगठन की याचिका की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार से मानसिक स्वास्थ्य देख-रेख अधिनियम-2017 पर जवाब मांगा, जो कि भारतीय दंड संहिता की धारा-309 का मूल रूप से खंडन करता है। केंद्र को नोटिस जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे ने कहा कि जहां एक ओर धारा-309 आत्महत्या के प्रयास को दंडनीय अपराध मानती है, वहीं मानसिक स्वास्थ्य देख-रेख अधिनियम-2017 यह मानता है कि अवसादग्रस्तता ही आत्महत्या के प्रयास का मूल कारण है[2]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 2 नवंबर 2022 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 नवंबर 2022.
  2. https://sansadnama.com/people-who-attempt-suicide-are-in-need-of-help-or-punishment/