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आत्मशुद्धि

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आत्मशुद्धि का शाब्दिक अर्थ स्वयं का शुद्धिकरण करना होता है। यदि कोई व्यक्ति आत्मग्लानिस्वरूप स्वरूप अपने आप को कोई सजा देना अथवा सच्चे मन से क्षमा याचना करना भी आत्मशुद्धि का ही एक रूप है।[1][2] जैन धर्म में आत्मशुद्धि के लिए क्षमावणी पर्व मनाया जाता है जिसके के अनुसार आत्म शुद्धि के लिए सांसारिक भोगों से विरत होना आवश्यक है। लोभ बंधनों का बहुत बड़ा कारण है। आत्म शुद्धि के लिए लोभ वृत्ति का संयमन जरूरी है। जैन शास्त्रों में इसे उत्तम शौच कहा गया है और इसे आत्मा का स्वभाव माना गया है।[3][4]

वाक्य में प्रयोग

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  • गांधीजी के लिए उपवास प्रायश्चित और आत्मशुद्धि का रास्ता था।[5]

सन्दर्भ

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  1. "तपस्या आत्मशुद्धि का महान यज्ञ : साध्वी लब्धिप्रभा". दैनिक भास्कर. 26 सितम्बर 2013. 18 नवंबर 2013 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 12 अक्टूबर 2013. {{cite web}}: Check date values in: |date= and |archive-date= (help)
  2. "आत्मशुद्धि के लिए करें सामूहिक प्रार्थना : हरिनारायणानंद". दैनिक जागरण. 18 अप्रैल 2013. अभिगमन तिथि: 12 अक्टूबर 2013.
  3. डॉ॰ के॰ के॰ अग्रवाल (25 जून 2008). "क्षमा याचना ही है आत्मशुद्धि का सच्चा मार्ग". नवभारत टाइम्स. 19 अक्तूबर 2013 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 12 अक्टूबर 2013. {{cite web}}: Check date values in: |archive-date= (help)
  4. "पर्यूषण आत्मशुद्धि का पर्व". दैनिक भास्कर. 5 सितम्बर 2013. 18 नवंबर 2013 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 12 अक्टूबर 2013. {{cite web}}: Check date values in: |date= and |archive-date= (help)
  5. आशुतोष (19 सितम्बर 2011). "मोदी का उपवास, आत्मशुद्धि या उपहास". आय बी एन खबर. मूल से से 14 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 12 अक्टूबर 2013. {{cite web}}: Check date values in: |date= and |archive-date= (help)