आण्विक कक्षक सिद्धान्त

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रासायनिकी में, आण्विक कक्षक सिद्धान्त प्रमात्रा यान्त्रिकी का प्रयोग करके अण्वों की वैद्युतिक विन्यास के वर्णन की एक विधि है। यह सिद्धान्त फ़्रीड्रिख हुण्ड तथा रोबर्ट मुलिकन द्वारा सन् 1932 में प्रस्तावित किया गया था।

इस सिद्धान्त के अनुसार आबन्ध निर्माण प्रक्रम में:

  • घटक परमाणुओं के परमाण्विक कक्षक संयुक्त होकर नए प्रकार के कक्षक बनाते हैं जिन्हें आण्विक कक्षक कहते हैं। यह पूरे अणु पर विद्यमान होते हैं अर्थात् वे अस्थानीय होते हैं। दूसरे शब्दों में ये नए कक्षक किसी एक परमाणु के नहीं होते बल्कि ये आबन्धित परमाणुओं के पूरे क्षेत्र पर प्रसारित होते हैं।
  • ये आण्विक कक्षक पारमाण्विक कक्षकों के रैखिक संयोग से बनते हैं। इस विधि के अनुसार तुल्य ऊर्जाओं और उपयुक्त सममिति वाले परमाणु कक्षक संयोग कर संख्या में उतने ही आण्विक कक्षक देते हैं।
  • आण्विक कक्षकों की पूर्ति भी परमाणु कक्षकों की भांति आफबाऊ सिद्धान्त के अनुसार होती है अर्थात इलेक्ट्रॉन बढ़ती ऊर्जा के क्रम में कक्षकों में जाते हैं।

प्रमात्रा यान्त्रिकी आण्विक कक्षकों के रूप में इलेक्ट्रॉनों के स्थानिक और ऊर्जावान गुणों का वर्णन करता है जो एक अणु में दो या द्व्यधिक परमाण्वों को घेरते हैं और परमाण्वों के मध्य संयोजक इलेक्ट्रॉन होते हैं।

आण्विक कक्षक सिद्धान्त और संयोजक आबन्ध सिद्धान्त प्रमात्रा रासायनिकी के मूलभूत सिद्धान्त हैं।

मुख्य धारणाएँ[संपादित करें]

  • जिस प्रकार परमाणु में इलेक्ट्रॉन विभिन्न पारमाण्विक कक्षकों में उपस्थित रहते हैं, उसी प्रकार अणु में इलेक्ट्रॉन विभिन्न आण्विक कक्षकों में उपस्थित रहते हैं।
  • आण्विक कक्षक तुल्य ऊर्जाओं एवं उपयुक्त सममिति पारमाण्विक कक्षकों के संयोग से बनते हैं।
  • पारमाण्विक कक्षक में कोई इलेक्ट्रॉन केवल एक ही नाभिक के प्रभाव में रहता है, जबकि आण्विक कक्षक में उपस्थित इलेक्ट्रॉन दो या द्व्यधिक नाभिकों द्वारा प्रभावित होता है। यह संख्या अणु में परमाणुओं की संख्या पर निर्भर करती है। इस प्रकार पारमाण्विक कक्षक एककेन्द्रीय होता है, जबकि आण्विक कक्षक बहुकेन्द्रीय होता है।
  • निर्मित आण्विक कक्षकों की संख्या संयोग करने वाले पारमाण्विक कक्षकों की संख्या के समान होती है। जब दो पारमाण्विक कक्षकों को मिलाया जाता है, तो दो आण्विक कक्षक प्राप्त होते हैं। इनमें से एक 'आबन्धन आण्विक कक्षक' और दूसरा प्रत्याबन्धन आण्विक कक्षक कहा जाता है।
  • आबन्धन आण्विक कक्षक की ऊर्जा कम होती है। अतः उसका स्थायित्व संगत प्रत्याबन्धन आण्विक कक्षक से अधिक होता है।
  • जिस प्रकार किसी परमाणु के नाभिक के परितः इलेक्ट्रॉन प्रायिकता वितरण पारमाण्विक कक्षक द्वारा दिया जाता है, उसी प्रकार किसी अणु में नाभिकों के समूह के परितः इलेक्ट्रॉन प्रायिकता वितरण आण्विक कक्षक द्वारा दिया जाता है।
  • पारमाण्विक कक्षकों की भाँति आण्विक कक्षकों को भी पौली अपवर्जन नियम तथा हुण्ड के नियम का पालन करते हुए कक्षक निर्माण नियम के अनुसार भरा जाता है।[1]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Jha, Sujeet (2022-07-08). "आण्विक कक्षक सिद्धांत | अणु ऑर्बिटल सिद्धांत की व्याख्या कीजिए". JAANKARI RAKHO (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-06-02.