अष्टनायिका
भरतमुनि ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ नाट्यशास्त्र में आठ प्रकार की नायिकाओं का वर्णन किया है, जिन्हें अष्टनायिका कहते हैं। आठ प्रकार की नायिकाएं ये हैं-
- वासकसज्जा नायिका
- विरहोत्कण्ठिता नायिका
- स्वाधीनभर्तृका नायिका
- कलहान्तरिता नायिका
- खण्डिता नायिका
- विप्रलब्धा नायिका
- प्रोषितभर्तृका नायिका
- अभिसारिका नायिका
नायिका शब्द का अर्थ
[संपादित करें]'नायिका' की परिकल्पना संस्कृत साहित्य, विशेषकर भरतमुनि की देन है, जो नाट्यशास्त्र के रचयिता और भारतीय शास्त्रीय नृत्य और नाटक को अनुशाषित करने वाले सिद्धान्तों के प्रतिपालक थे। भरत ने पुरुष और महिलाओँ का वर्गीकरण किया, जिन्हें नायक और नायिका, यानी क्रमशः प्रेमी और प्रेमिका कहा गया। यह वर्गीकरण उनकी शारीरिक और मानसिक विशेषताओं, गुणों, मनोदशाओं, स्वभाव और भावात्मक अवस्थाओं और स्थितियों के अनुसार किया गया। इसके अंतर्गत नारी के मनोभावों का और उसके प्रेम क विभिन्न चरणों का वर्गीकरण बड़े उत्साह और सूक्ष्मता से किया है।[1]
अष्टनायिका से प्रेरित अन्य साहित्य
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वर्तमान नवीन युग में भी अष्टनायिका से प्रेरित साहित्य की रचनाएँ होती रही हैं। भारतीय साहित्य में अष्टनायिकाओं का वर्गीकरण एवं चित्रण आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना प्राचीन समय में था। नाट्य, काव्य, एवं कला के अन्य क्षेत्रों में अष्टनायिकाओं का कई बार चित्रण किया गया है।
काव्य
[संपादित करें]- विजय कुमार सिंह द्वारा रचित एवं 2022 में प्रकाशित कविता संग्रह "चित्रलेखा" में अष्टनायिका नाम से एक विशेष खंड है, जिसमें आठ कविताएँ हैं। आठों कविताओं में भिन्न - भिन्न अष्टनायिकाओं का चित्रण किया गया है । हर कविता की नायिका के नाम पर ही उस कविता के शीर्षक का नाम भी है।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "भारतीय चित्रकारी में अष्ट नायिका / शैल अग्रवाल". Archived from the original on 10 मार्च 2016. Retrieved 10 दिसंबर 2015.
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इन्हें भी देखें
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