अव्वै दुरैसामी
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अव्वै दुरैसामी तमिऴ भाषा के प्रसिध्द विद्वान् थे। तमिऴ भाषा के प्रति उनकी श्रद्धा और भक्ति इतनी तीव्र थीं कि आपने तमिऴ सीखने के लिए ‘स्वास्थ्य निरीक्षक’ के पद तक त्याग दिया था। फ़िर उन्होंने तमिऴ सीखा और प्रसिद्ध विद्वान् बने।
जन्म
[संपादित करें]आपका जन्म सन ०५-०९-१९०३ को तमिऴनाडू राज्य के ‘अव्वैयार कुप्पम’ नामक एक छोटे से गाँव में हुआ था, जो विलुप्पुरम जिले के दिंडिवनम के पास है। उनके पिता का नाम सुन्दरम पिल्लै और माता का नाम चंद्रमति था। इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालय में ही की थी। उसके बाद दिंडिवनम के ‘अमेरिकी-आर्काट चैरिटेबल उच्च माध्यमिक विद्यालय’ में उच्च श्रेणी की स्कूली शिक्षा पूरी की। बाद को मध्यवर्ती (इंटरमीडिएट) शिक्षा के लिए वेलूर के ऊरिस काॅलेज में भर्ती हुए। लेकिन, घर की आर्थिक स्थिति इतनी बुरी थी कि पढ़ाई को बीच ही में छोड़ना पड़ा। अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए ‘स्वास्थ्य निरीक्षक’ के पद पर अनमनी होकर काम करने लगे। छः ही महीनों में इस पद की बिदाई दे दी।
तमिऴ शिक्षा
[संपादित करें]तमिऴ को युक्तिपूर्वक सीखना उनका ध्येय था। ‘करन्दै तमिऴ संघम’ की पाठशाला में ‘तमिऴवेळ’ उमामहेश्वरन ने आपको अध्यापक के पद पर नियुक्त किया। अध्यापक का काम करते हुए भी, तमिऴ सीखना जारी रखा और सन १९३० ई. को मद्रास विश्वविद्यालय के ‘विद्वान्’ परीक्षा में उत्तीर्ण हुए।
तमिऴ सेवा
[संपादित करें]शुरू में ‘स्वास्थ्य निरीक्षक’ के पद पर काम करते थे। उसके बाद कलवै, रानिप्पेट्टै (कारै) के प्रारंभिक स्कूल में तमिऴ अध्यापक के रूप में काम करते थे। सन १९२९ से १९४१ तक की अवधि में कावेरिप्पाक्कम, सेय्यारु, सेंगम और पोलूर आदि स्थानों के उच्च माध्यमिक विद्यालयों में तमिऴ अध्यापक रहे। तमिऴ पोलिल, सेंतमिऴ सेल्वी, सेंतमिऴ आदि पत्रिकाओं में तमिऴ साहित्य और व्याकरण से सम्बंधित अनेकानेक लेख लिखते थे। सन १९४२ को तिरुपति श्री वेंकटेश्वर पूर्वी काॅलेज में शोधार्थी बने। सन १९४३ से लेकर आठ सालों तक अण्णामलै विश्वविद्यालय के अनुसन्धान विभाग में व्याख्याता के रूप में सेवा करते थे। सन १९५१ को मदुरै तियागराजर काॅलेज के प्राध्यापक बने।
तमिऴ साहित्य सेवा
[संपादित करें]‘नावलर’ न.मु. वेंकटसामी नाट्टार, तमिऴ के महाकाव्यों में एक बने ‘मणिमेखलै’ की नई व्याख्या लिख रहे थे। अचानक उनका निधन हो गया था। इसलिए “करन्दै कवियरसु” श्री वेंकटाचलम पिल्लै के अनुरोध पर, श्री अव्वै दुरैसामी ने ‘मणिमेखलै’ महाकाव्य के अंतिम चार खण्डों की व्याख्या लिखकर दीं। जब वे अण्णामलै विश्वविद्यालय में काम कर रहे थे, तब उन्होंने ‘शैव साहित्य का इतिहास’ और ‘ज्ञानामृतम’ आदि अनोखी किताबें लिखीं। ये किताबें विश्वविद्यालय के द्वारा प्रकाशित की गयीं।
प्रकाशित किताबें
[संपादित करें]- तिरुवोत्तूर देवार तिरुप्पदिगवुरै
- तिरुमारपेट्रु तिरुप्पदिगवुरै
- ऐन्गुरुनूरु - व्याख्या
- पुरनानूरु – व्याख्या
- पतिट्रुपत्तु – व्याख्या
- नट्रिणै – व्याख्या
- ज्ञानामृतम – व्याख्या
- शिवज्ञान बोधम – मूल और व्याख्या
- सिलप्पधिकारम का सार
- मणिमेखलै का सार
- सीवक सिंधामणि का सार
- सूलामणि का सार
- सिलप्पधिकारम पर शोध
- मणिमेखलै पर शोध
- सीवक सिंधामणि पर शोध
- यशोधर कावियम – मूल और व्याख्या
- तमिऴ नावलर सरितै - मूल और व्याख्या
- शैव साहित्य का इतिहास
- नंदा विळक्कु
- अव्वै तमिऴ
- तमिऴ तामरै
- पेरुंदगै पेंडिर
- मदुरै कुमरनार
- वरलाट्रु काट्चिगल
- चेर मन्नर वरलारु
- शिवज्ञानबोध चेम्पोरुल
- ज्ञान उरै
- तिरुवरुट्पा – व्याख्या (नौ भाग)
- परणर – (करन्दै)
- देय्वप्पुलवर तिरुवल्लुवर – (कऴगम)
- Introduction to the story of Thiruvalluvar
- तमिऴ सेल्वम
अप्रकाशित किताबें
[संपादित करें]- ऊर्पेयर – वरलाट्राराय्ची
- पुदुनेरि तमिऴ इलक्कणम (२ भाग)
- मत्तविलासम
- मरुळ नीक्कियार नाटकम
- पुदुनेरि तमिऴ इलक्कणम
- ऊऴविनै
- तमिऴ तामरै
- आर्काडु
महत्व
[संपादित करें]- सन १९६४ को मदुरै तिरुवल्लुवर कलगम ने ‘पल्दुरै मुट्रिय पुलवर’ की उपाधि से आपका सम्मान किया।
- राधा तियागरासनार ने अपने अध्यापक के उत्तम गुणों को मुक्त कंठ से सराहा और आपको “उरै वेंदर” की उपाधि और स्वर्ण पतक से सम्मानित किया।
- सन १९८० को तमिऴनाडु के माननीय राज्यपाल श्री प्रभुदास पि.पटवारी ने “तमिऴ पेरवै सेम्मल” की उपाधि से सम्मनित किया।
- तमिऴ लेखक संघ की ओर से “तमिऴ तोंडु सेय्द पेरियार” की उपाधि और शील्ड आदि से आपका सम्मान किया गया।