अल-मुअव्विधतैन
अल-मुअव्विधतैन | |
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![]() अल-मुअव्विधतैन की कलात्मक प्रस्तुति |
अल-मुअव्विधतैन (अरबी: المعوذتان) इस्लाम के पवित्र ग्रंथ क़ुरआन की अंतिम दो सूरहों - सूरह अल-फलक (113) और सूरह अन-नास (114) - को कहा जाता है। इन दोनों सूरहों में अल्लाह से शरण मांगी जाती है और उन्हें इस्लामी परंपरा में सुरक्षा के लिए विशेष महत्व दिया गया है।[1]
नाम और महत्व
[संपादित करें]"अल-मुअव्विधतैन" का अर्थ है "शरण मांगने वाली दो।" ये सूरहें मुसलमानों के जीवन में बुराई, शैतानी ताकतों और हर प्रकार के नुकसान से बचाव के लिए पढ़ी जाती हैं। इन्हें अक्सर नबी मुहम्मद द्वारा बुराई और बीमारियों से बचने के लिए पढ़ा जाता था।[2]
सूरह अल-फलक
[संपादित करें]सूरह अल-फलक (अध्याय 113) में पाँच आयतें हैं। इसमें अल्लाह से प्रार्थना की जाती है कि वह रात के अंधेरे, जादू और ईर्ष्या जैसी बुरी ताकतों से सुरक्षा प्रदान करे।[3]
सूरह अल-फलक का पाठ
[संपादित करें]अरबी: قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ ٱلْفَلَقِ * مِن شَرِّ مَا خَلَقَ * وَمِن شَرِّ غَاسِقٍ إِذَا وَقَبَ * وَمِن شَرِّ ٱلنَّفَّٰثَٰتِ فِى ٱلْعُقَدِ * وَمِن شَرِّ حَاسِدٍ إِذَا حَسَدَ
सूरह अन-नास
[संपादित करें]सूरह अन-नास (अध्याय 114) में छह आयतें हैं। इसमें अल्लाह को इंसानों के पालनहार, राजा और ईश्वर के रूप में पुकारा जाता है और हर प्रकार के शैतानी प्रभाव से सुरक्षा मांगी जाती है।[4]
सूरह अन-नास का पाठ
[संपादित करें]अरबी: قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ ٱلنَّاسِ * مَلِكِ ٱلنَّاسِ * إِلَٰهِ ٱلنَّاسِ * مِن شَرِّ ٱلْوَسْوَاسِ ٱلْخَنَّاسِ * ٱلَّذِى يُوَسْوِسُ فِى صُدُورِ ٱلنَّاسِ * مِنَ ٱلْجِنَّةِ وَٱلنَّاسِ
इस्लामिक परंपरा में उपयोग
[संपादित करें]मुसलमान प्रायः अल-मुअव्विधतैन को सुबह और शाम के समय पढ़ते हैं। इन्हें शारीरिक और मानसिक सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। नबी मुहम्मद ने इन सूरहों को पढ़ने का महत्व बार-बार समझाया है।[5]
विरासत और आध्यात्मिक महत्व
[संपादित करें]अल-मुअव्विधतैन का पाठ न केवल व्यक्तिगत बल्कि सामूहिक समस्याओं के समाधान के लिए भी किया जाता है। इनकी सरलता और गहराई इन्हें क़ुरआन की सबसे महत्वपूर्ण सूरहों में से एक बनाती है।