अल्फ्रेड नार्थ ह्वाइटहेड

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अल्फ्रेड नार्थ ह्वाइटहेड

अल्फेड नार्थ ह्वाइटहेड (Alfred North Whitehead ; १८६१ - १९४७) इंग्लैण्ड के गणितज्ञ एवं दार्शनिक थे। वे प्रक्रिया दर्शन (process philosophy) नामक दार्शनिक सम्प्रदाय के प्रमुख दार्शनिक हैं।

परिचय[संपादित करें]

ह्वाइटहेड का जन्म १८६१ में इंग्लैंड में हुआ था। ट्रीनिटी कालेज (केंब्रिज) में १९११-१९१४ में फेलो रहे और यूनिर्वसिटी काॅलेज, लंदन में १९१४-२४ में व्यावहारिक तथा मिकेनिक्स पढ़ाने का कार्य किया। इंपीरियल काॅलेज ऑव साइंस और टेकनालाजी, लंदन में व्यावहारिक गणित के अध्यापक पद पर भी कार्य किया। १९२४ में वे हार्वर्ड विश्वविद्यालय में दर्शन के अध्यापक नियुक्त हुए। इसी पद पर उन्होंने १९३८ में अवकाश ग्रहण किया।

ह्वाइटहेड की सर्वाधिक प्रसिद्ध दार्शनिक रचनाओं में 'प्रिंसिपिया मैथेमेटिका' तीन भाग (बर्टेंड रसेल के साथ), 'ऐन इंक्वायरी कंसर्निंग दि प्रिंसिपल्स ऑव नेचुरल नालेज' (१९१९), 'कासेप्ट ऑव नेचर' (१९२०), साइंस एंड दी माडर्न वर्ल्ड' (१९२६), 'रिलीजन इन दी मेकिंग' (१९२६), 'सिंबालिज्म' (१९२८), 'प्रोसेस ऐंड रियलिटी' (१९२९), 'एडवेंचर्स ऑव आइडियाज' (१९३३), 'दि प्रिंसिपल्स ऑव रिलेटिविटि' (१९२२), और 'मोड्स ऑव थाट' (१९३८) हैं।

ह्वाइटहेड दर्शन के क्षेत्र में काम करने के पूर्व वैज्ञानिक के रूप में प्रसिद्ध हो गए थे। वे गणितीय तर्कशास्त्र के प्रवर्तकों में से एक थे। त्रिसठ वर्ष की उम्र में उन्होंने गणित का अध्यापन कार्य छोड़कर दर्शन का अध्यापकपद स्वीकार कर लिया था। अभी तक दर्शन के क्षेत्र में अंतिम सत्ता का निर्धारण मनस् या पुद्गल के रूप में किया जाता था। उन्होंने इस विभाजन पद्धति पर विचार करने का विरोध किया। गतिशील भौतिकी से प्रभावित होकर उन्होंने अपनी दार्शनिक पद्धति की स्थापना की। उनके मतानुसार सत् एक ही है और जो कुछ प्रतीत होता है या हमारे प्रत्यक्षीकरण में आता है वह यथार्थ है। व्यक्ति के अनुभव में आनेवाली सत्ता के परे किसी वस्तु का अस्तित्व नहीं है। संसार में न स्थिर प्रत्यय है और न द्रव्य; केवल घटनाओं का एक संघट है। सब घटनाएँ दिक्कालीय इकाइयाँ है। दिक् और काल की अलग-अलग अवधारणा भ्रामक है।

ह्वाइटहेड की दार्शनिक पद्धति 'जैवीय' (आर्गेनिक) कहलाती है। सब घटनाएँ एक दूसरे को प्रभावित करती हैं और स्वयं भी प्रभावित होती हैं। यह संसार जैवीयरूप से एक है। आधारभूत तत्त्व गति या प्रक्रिया ही है। वह सर्जनात्मक है। सृजन का मूर्तरूप ईश्वर है। सृजन सर्वप्रथम ईश्वर रूप में ही व्यक्त होता है। हमारे अनुभव में आनेवाले तथ्य अनुभूतिकण कहे जा सकते हैं। उनके परे हमारा अनुभव नहीं पहुँच सकता है। वास्तविक सत्ताओं (एक्चुअल एंटिटी) के संघट में वस्तुओं का निर्माण होता है। वास्तविक सत्ता का उदाहरण नहीं दिया जा सकता है। एक संवेदना बहुत कुछ वास्तविक सत्ता है। वास्तविक सत्ताएँ लाइब्नीज के चिद्विंदुओं जैसे ही हैं किंतु वे गवाक्षहीन नहीं हैं। इनका जीवन क्षण भर का होता है। इनकी रचना शून्य से संभव नहीं है। संसार की सब वास्तविक सत्ताएँ मिलकर एक वास्तविक सत्ता की रचना करतीं हैं। सृजन में नवीनता का कारण यह है कि एक वास्तविक सत्ता अधिक घनिष्टता से संबंधित है और दूसरी दूर और अप्रत्यक्ष रूप से संबंधित है। संसार की रचना में सृजन और वास्तविक सताओं के अतिरिक्त संभावित आकारों (पासिबिल फार्म) की भी आवश्यकता है। इन आकारों की दिक्कालीय सत्ता नहीं होती। वे शाश्वत होते हैं।

ह्वाइटहेड का दर्शन प्रकृतिवादी है किंतु किंतु पूर्व प्रकृतिवाद की तरह भौतिकवादी नहीं। यद्यपि वे भौतिकता और आध्यात्मिकता के विभाजन का विरोध करते हैं, तथापि उनका सिद्धांत अध्यात्मवाद की ओर अधिक झुकता है।


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