अम्बिकापुर

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अम्बिकापुर
Ambikapur
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ऊपर से, बाएँ से दाएँ: अम्बिकापुर रेलवे स्टेशन, जलाशय, जोगीमारा और सीताबेंगरा गुफाएँ
अम्बिकापुर is located in छत्तीसगढ़
अम्बिकापुर
अम्बिकापुर
छत्तीसगढ़ में स्थिति
निर्देशांक: 23°07′N 83°12′E / 23.12°N 83.20°E / 23.12; 83.20निर्देशांक: 23°07′N 83°12′E / 23.12°N 83.20°E / 23.12; 83.20
देश भारत
प्रान्तछत्तीसगढ़
ज़िलासरगुजा ज़िला
ऊँचाई623 मी (2,044 फीट)
जनसंख्या (2011)
 • कुल2,43,173
भाषा
 • प्रचलितहिन्दी, छत्तीसगढ़ी
समय मण्डलभामस (यूटीसी+5:30)
पिनकोड497001
दूरभाष कोड7774
वाहन पंजीकरणCG-15
वेबसाइटsurguja.nic.in
nagarnigamambikapur.co.in

अम्बिकापुर (Ambikapur) भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के सरगुजा ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। इसका नाम हिन्दू देवी अम्बिका के नाम पर रखा गया है। जनश्रुतियों के अनुसार अम्बिकापुर का पुराना नाम बैकुण्ठपुर था। सरगुजा जिले की अन्य बस्तियां हैं - उदयपुर,लखनपुर, सीतापुर, बतौली, नरबदापुर, कमलेश्वरपुर, लुण्ड्रा, रघुनाथपुर इत्यादि।[1][2]

विवरण[संपादित करें]

अम्बिकापुर में महामाया देवी का मंदिर है। इस मंदिर की काफी मान्यता है। पहले लोग यहां अपनी मनता पूरी होने पर देवी को बकरे की बलि अर्पित किया करते थे। लेकिन अब यह परंपरा काफी कम हो गई है। यह स्थानीय बोली सरगुजिया है। आदिवासी क्षेत्र होने का कारण यह बरसों से उपेक्षित रहा है। छत्तीसगढ़ एक अलग राज्य बनने के बाद यहां भी विकास होने लगा है। सरगुजा ज़िला की सीमाएँ उड़ीसा, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश को छूती हैं।

स्थापना[संपादित करें]

अंबिकापुर 23°12′N 83°2′E / 23.200°N 83.033°E / 23.200; 83.033 पर स्थित है। इस जिले की स्थापना 1 जनवरी 1948 को हुआ था जो 1 नवम्बर 1956 को मध्यप्रदेश राज्य के निर्माण के तहत मध्यप्रदेश में शामिल कर दिया गया। उसके बाद 25 मई 1998 को इस जिले का प्रथम प्रशासनिक विभाजन करके कोरिया जिला बनाया गया। जिसके बाद वर्तमान सरगुजा जिला का क्षेत्रफल 16359 वर्ग किलोमीटर है। 1 नवम्बर 2000 जब छत्तीसगढ राज्य मध्यप्रदेश से अलग हुआ तब सरगुजा जिले को छत्तीसगढ राज्य में शामिल कर दिया गया।

जलवायु[संपादित करें]

जलवायु वह भौगोलिक अवस्था है जो समस्त स्थानिय दशाओं को प्रभावित करती है। सरगुजा जिला भारत के मध्य भाग में स्थित है जिसके कारण यहां कि जलवायु उष्ण-मानसुनी है। सरगुजा जिले में जलवायु मुख्यत: तीन ऋतु अवस्थाओं का होता है जो निम्नांकित है।

ग्रीष्म ऋतु

यह ऋतु मार्च से जुन माह तक होती है चूंकि कर्क रेखा जिला के मध्य में प्रतापपुर से होकर गुजरती है इस लिये गर्मीयों में सुर्य की किरणें यहां सीधे पड्ती है इस लिये यहां का तापमान गर्मीयों में उच्च रहता है। इस ऋतु में जिले के पठारी इलाकों में गर्मीयां शीतल एवम सुहावनी होती है। इस दौरान सरगुजा जिले के मैनपाट जिसे छ्त्तीशगढ के शिमला के नाम से भी जाना जाता है, का तापमान अपेक्षाकृत कम होता है जिससे वहां का मौसम भी सुहावना होता है

वर्षाऋतु

यह ऋतु जुलाई से अक्टुबर तक होती है जिले में जुलाई व अगस्त में सर्वाधिक वर्षा होती है। जिले के दक्षीणी क्षेत्र में वर्षा सर्वाधिक होती है। यहां की वर्षा मानसुनी प्रवृति की होती है।

शीतऋतु

इस ऋतु की शुरुवात नवम्बर में होती है और फरवरी माह तक रहती है जनवरी यहां का सबसे ठंड का महिना होता है जिले के पहाडी इलाकों जैसे मैनपाट, सामरीपाट में तापमान 5 0 से कम चला जता है। कभी कभी इन इलाकों में पाला भी पड़ता है।

दर्शनीय स्थल[संपादित करें]

चेन्द्रा ग्राम[संपादित करें]

अम्बिकापुर- रायगढ राजमार्ग पर 15 किमी की दूरी पर चेन्द्रा ग्राम स्थित है। इस ग्राम से उत्तर दिशा में तीन कि॰मी॰ की दूरी एक जल प्रपात स्थित है। इस जलप्रपात के पास ही वन विभाग का एक नर्सरी है, जहां विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों को रोपित किया गया है। इस जल प्रपात में वर्षभर पर्यटक प्राकृतिक सौन्दर्य का आनंद लेने आते हैं। यहां पर एक तितली पार्क भी विकसित किया जा रहा है।

ठिनठिनी पत्थर[संपादित करें]

अम्बिकापुर नगर से 12 किलोमीटर की दूरी पर दरिमा हवाई अड्डा है। दरिमा हवाई अड्डे के पास बड़े - बड़े पत्थरों का समूह है। इन पत्थरों को किसी ठोस चीज से ठोकने पर आवाजें आती हैं। सर्वाधिक आश्चर्य की बात तो यह है कि ये आवाजें विभिन्न धातुओं की आती हैं। इनमें से किसी - किसी पत्थर से तो खुले बर्तन को ठोकने के समान आवाज आती है। इस पत्थरों में बैठकर या लेटकर बजाने से भी इसके आवाज में कोई अंतर नहीं पड़ता है। एक ही पत्थर के दो टुकड़े अलग-अलग आवाज पैदा करते हैं। इस विलक्षणता के कारण इस पत्थरों को अंचल के लोग ठिनठिनी पत्थर कहते हैं।

सतमहला[संपादित करें]

अम्बिकापुर के दक्षिण में लखनपुर से लगभग दस कि॰मी॰ की दूरी पर कलचा ग्राम स्थित है, यहीं पर सतमहला नामक स्थान है। यहां सात स्थानों पर महलों के भग्नावशेष हैं। एक मान्यता के अनुसार यहां पर प्राचीन काल में सात विशाल शिव मंदिर थे, जबकि जनजातियों के अनुसार इस स्थान पर प्राचीन काल में किसी राजा का सप्त प्रांगण महल था। यहां पर दर्शनीय स्थल शिव मंदिर, षटभुजाकार कुंआ और सूर्य प्रतिमा है।

महामाया मन्दिर[संपादित करें]

सरगुजा जिले के मुख्यालय अम्बिकापुर के पूर्वी पहाड़ी पर प्राचीन महामाया देवी का मंदिर स्थित है। इन्हीं महामाया या अम्बिका देवी के नाम पर जिला मुख्यालय का नामकरण अम्बिकापुर हुआ है। एक मान्यता के अनुसार अम्बिकापुर स्थित महामाया मन्दिर में महामाया देवी का धड़ स्थित है और इनका सिर बिलासपुर जिले के रतनपुर के महामाया मन्दिर में है। इस मन्दिर का निर्माण महाराजा रघुनाथ शरण सिंहदेव ने कराया था। चैत्र व शारदीय नवरात्र में विशेष रूप अनगिनत भक्त इस मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करते हैं।

तकिया[संपादित करें]

अम्बिकापुर नगर के उतर-पूर्व छोर पर तकिया ग्राम स्थित है इसी ग्राम में बाबा मुराद शाह, बाबा मुहम्मद शाह और उन्ही के पैर की ओर एक छोटी मजार उनके तोते की है यहां पर सभी धर्म के एवं सम्प्रदाय के लोग एक जुट होते हैं मजार पर चादर चढाते हैं और मन्नते मांगते है बाबा मुरादशाह अपने "मुराद" शाह नाम के अनुसार सबकी मुरादे पूरी करते हैं। इसी मजार के पास ही एक देवी का भी स्थान है इस प्रकार इस स्थान पर हिन्दू देवी देवता और मजार का एक ही स्थान पर होना धार्मिक एवं सामाजिक समन्वय का जीवंत उदाहरण है।

बिलद्वार गुफा[संपादित करें]

यह गुफा शिवपुर के निकट अम्बिकापुर से एक घण्टे की दूरी पर है। इसमें अनेक प्राचीन मूर्तियां हैं। इसमें महान नामक एक नदी का पानी निकलता रहता है, वहीं इस नदी का उद्गम भी है। इस गुफा का दूसरा छोर महामाया मंदिर के निकट निकलता है। वर्तमान में बिलद्वार गुफा बन्द हो चुका है क्योंकि कुछ वर्षों पूर्व अम्बिकापुर जिले में बहुंत भयंकर वर्षा के कारण बिलद्वार गुफा के चट्टान धस गए और गुफा मार्ग बंद हो गया।

बांक जल कुंड[संपादित करें]

अम्बिकापुर से भैयाथान से अस्सी कि.मी की दूरी पर ओडगी विकासखंड है, यहां से 15 किलोमीटर की दुरी पर पहाडियों की तलहटी में बांक ग्राम बसा है। इसी ग्राम के पास रिहन्द नदी वन विभाग के विश्राम गृह के पास अर्द्ध चन्द्राकार बहती हुई एक विशाल जल कुंड का निर्माण करती है। इसे ही बांक जल कुंड कहा जाता है। यह जल कुंड अत्यंत गहरा है, जिसमें मछलियां पाई जाती है। यहां वर्ष भर पर्यटक मछलियों का शिकार करने एवं घुमनें आते हैं।

निकटवर्ती स्थल[संपादित करें]

सेदम जल प्रपात[संपादित करें]

अम्बिकापुर- रायगढ मार्ग पर अम्बिकापुर से 45 कि.मी की दूरी पर सेदम नाम का गांव है। इसके दक्षिण दिशा में दो कि॰मी॰ की दूरी पर पहाडियों के बीच एक सुन्दर झरना प्रवाहित होता है। इस झरना के गिरने वाले स्थान पर एक जल कुंड निर्मित है। यहां पर एक शिव मंदिर भी है। शिवरात्री पर सेदम गांव में मेला लगता है। इस झरना को राम झरना के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर्यटक वर्ष भर जाते हैं।

मैनपाट[संपादित करें]

मैनपाट अम्बिकापुर से 45 किलोमीटर दुरी पर है इसे छत्तीसगढ का शिमला कहा जाता है। मैंनपाट विन्ध पर्वत माला पर स्थित है जिसकी समुद्र सतह से ऊंचाई 3781 फीट है इसकी लम्बाई 28 किलोमीटर और चौड़ाई 10 से 13 किलोमीटर है अम्बिकापुर से मैंनपाट जाने के लिए दो रास्ते है पहला रास्ता अम्बिकापुर-सीतापुर रोड से होकर जाता और दुसरा ग्राम दरिमा होते हुए मैंनपाट तक जाता है। प्राकृतिक सम्पदा से भरपुर यह एक सुन्दर स्थान है। यहां सरभंजा जल प्रपात, टाईगर प्वांइट तथा मछली प्वांइट प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। मैनपाट से ही रिहन्द एवं मांड नदी का उदगम हुआ है।

इसे छत्तीसगढ का तिब्बत भी कहा जाता हैं। यहां तिब्बती लोगों का जीवन एवं बौध मंदिर आकर्षण का केन्द्र है। यहां पर एक सैनिक स्कूल भी प्रस्तावित है। यह कालीन और पामेरियन कुत्तो के लिये प्रसिद्ध है।

शिवपुर[संपादित करें]

अम्बिकापुर से प्रतापपुर की दूरी 45 किलोमीटर है। प्रतापपुर से 04 किलोमीटर दूरी पर शिवपुर ग्राम के पास एक पहाडी की तलहटी में अत्यंत मनोरम प्राकृतिक वातावरण में एक प्राचीन शिव मंदिर है। इस पहाडी से एक जलस्त्रोत झरने के रूप में प्रवाहित होता है। यह झरना शिव लिंग पर गंगाधारा के रूप में प्रवाहित होता हुआ नीचे की ओर बहता है। इस मनोरम दृश्य को देखकर आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति होती है। इसे लोक शिवपुर तुर्रा भी कहते हैं। यह स्थान पवित्र माना जाता है एवं जन सामान्य द्वारा पूजित है। यहां पर महाशिव रात्रि पर मेला लगता है। शिवपुर तुर्रा को 1992में शासन द्वारा संरक्षित घोषित किया गया है।

देवगढ[संपादित करें]

अम्बिकापुर से लखंनपुर 28 किलोमीटर की दूरी पर है एवं लखंनपुर से 10 किलोमीटर की दूरी पर देवगढ स्थित है। देवगढ प्राचीन काल में ऋषि यमदग्नि की साधना स्थलि रही है। इस शिवलिंग के मध्यभाग पर शक्ति स्वरुप पार्वती जी नारी रूप में अंकित है। इस शिवलिंग को शास्त्रो में अर्द्ध नारीश्वर की उपाधि दी गई है। इसे गौरी शंकर मंदिर भी कहते हैं। देवगढ में रेणुका नदी के किनारे एकाद्श रुद्ध मंदिरों के भग्नावशेष बिखरे पडे है। देवगढ में गोल्फी मठ की संरचना शैव संप्रदाय से संबंधित मानी जाती है। इसके दर्शनीय स्थल, मंदिरो के भग्नावशेष, गौरी शंकर मंदिर, आयताकार भूगत शैली शिव मंदिर, गोल्फी मठ, पुरातात्विक कलात्मक मूर्तियां एवं प्राकृतिक सौंदर्य है।यहाँ प्रत्येक वर्ष श्रावण के महीने में शिव लिंग में जलाभिषेक की जाती है। इसके आलावा शिवरात्रि में भी जलाभिषेक की जाती है।

सेमरसोत[संपादित करें]

1978 में स्थापित सेमरसोत अभयारण्य सरगुजा जिलें के पूर्वी वनमंडल में स्थित है। इसका क्षेत्रफल 430.361 वर्ग कि. मी. है। जिला मुख्यालय अम्बिकापुर से 58 कि॰मी॰ की दूरी पर यह बलरामपुर, राजपुर, प्रतापपुर विकास खंडों में विस्तृत है। अभयारण्य में सेंदुर, सेमरसोत, चेतना, तथा सासू नदियों का जल प्रवाहित होता है। अभयारण्य के अधिकांश क्षेत्र में सेमर सोत नदी बहती है इस लिए इसका नाम सेमरसोत पड़ा। इसका विस्तार पूर्व से पश्चिम 115 कि॰मी॰ और उत्तर से दक्षिण में 20 कि॰मी॰ है। यहां पर शेर, तेन्दुआ, सांभर, चीतल, नीलगाय, वार्किगडियर, चौसिंहा, चिंकरा, कोटरी जंगली कुत्ता, जंगली सुअर, भालू, मोर, बंदर, भेडियां आदि पाये जाते हैं।

तमोर पिंगला[संपादित करें]

1978 में स्थापित अम्बिकापुर-वाराणसी राजमार्ग के 72 कि. मी. पर तमोर पिंगला अभयारण्य है जहां पर डांडकरवां बस स्टाप है। 22 कि॰मी॰ पश्चिम में रमकोला अभयारण्य परिक्षेत्र का मुख्यालय है। यह अभ्यारंय 608.52 वर्ग कि॰मी॰ क्षेत्रफल पर बनाया गया है जो वाड्रफनगर क्षेत्र उत्तरी सरगुजा वनमंडल में स्थित है। इसकी स्थापना 1978 में की गई। इसमें मुख्यत: शेर तेन्दुआ, सांभर, चीतल, नीलगाय, वर्किडियर, चिंकारा, गौर, जंगली सुअर, भालू, सोनकुत्ता, बंदर, खरगोश, गिंलहरी, सियार, नेवला, लोमडी, तीतर, बटेर, चमगादड, आदि मिलते हैं।

कैलाश गुफा[संपादित करें]

अम्बिकापुर नगर से पूर्व दिशा में 60 किलोमीटर पर स्थित सामरबार नामक स्थान है, जहां पर प्राकृतिक वन सुषमा के बीच कैलाश गुफा स्थित है। इसे परम पूज्य संत रामेश्वर गहिरा गुरु जी ने पहाडी चटटानो को तराशंकर निर्मित करवाया है। महाशिवरात्रि पर विशाल मेंला लगता है। इसके दर्शनीय स्थल गुफा निर्मित शिव पार्वती मंदिर, बाघ माडा, बधद्र्त बीर, यज्ञ मंड्प, जल प्रपात, गुरूकुल संस्कृत विद्यालय, गहिरा गुरु आश्रम है।

तातापानी[संपादित करें]

अम्बिकापुर-रामानुजगंज मार्ग पर अम्बिकापुर से लगभग 80 किलोमीटर दूर राजमार्ग से दो फलांग पश्चिम दिशा में एक गर्म जल स्रोत है। इस स्थान से आठ से दस गर्म जल के कुन्ड है। इस गर्म जल के कुन्डो को सरगुजिया बोली में तातापानी कहते हैं। ताता का अर्थ है- गर्म। इन गर्म जलकुंडो में स्थानीय लोग एवं पर्यटक चावल ओर आलु को कपड़े में बांध कर पका लेते है तथा पिकनिक का आनंद उठाते है। इन कुन्डो के जल से हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी गन्ध आती है। एसी मान्यता है कि इन जल कुंडो में स्नान करने व पानी पीने से अनेक चर्म रोग ठीक हो जाते हैं। इन दुर्लभ जल कुंडो को देखने के लिये वर्ष भर पर्यटक आते रहते है।

सारासौर[संपादित करें]

अम्बिकापुर - बनारस रोड पर 40 किलोमीटर पर भैंसामुडा स्थान हैं। भैंसामुडा से भैयाथान रोड पर 15 किलोमीटर की दूरी पर महान नदी के तट पर सारासौर नामक स्थान हैं। यहां पर महान नदी दो पहाडियों के बीच से बहने वाली जलधारा के रूप में देखी जा सकती हैं। इस जलधारा के मध्य एक छोटा टापू है, जिस पर भव्य मंदिर निर्मित है जिंसमे देवी दुर्गा एवं सरस्वती की प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर को गंगाधाम के नाम से जाना जाता है।

लक्ष्मणगढ[संपादित करें]

अम्बिकापुर से 40 किलोमीटर की दूरी पर लक्ष्मणगढ स्थित है। यह स्थान अम्बिकापुर - बिलासपुर मार्ग पर महेशपुर से 03 किलोमीटर की दूरी पर है। ऐसा माना जाता है कि इसका नाम वनवास काल में श्री लक्ष्मण जी के ठहरने के कारण पड़ा। य़ह स्थान रामगढ के निकट ही स्थित है। यहां के दर्शनीय स्थल शिवलिंग (लगभग 2 फिट), कमल पुष्प, गजराज सेवित लक्ष्मी जी, प्रस्तर खंड शिलापाट पर कृष्ण जन्म और प्रस्तर खंडो पर उत्कीर्ण अनेक कलाकृतिय़ां है।

कंदरी प्राचीन मंदिर[संपादित करें]

अम्बिकापुर- कुसमी- सामरी मार्ग पर 140 किलोमीटर की दूरी पर कंदरी ग्राम स्थित है। यहां पुरातात्विक महत्त्व का एक विशाल प्राचीन मंदिर है। अनेक पर्वो पर यहां मेले का आयोजन होता रहता है। यहां के दर्शनीय स्थल - अष्ट्धातु की श्री राम की मूर्ति, भगवान शिव की मूर्ति, श्री गणेश की मूर्ति, श्री जगन्नथ जी की काष्ठ मूर्ति और देवी दुर्गा की पीतल की कलात्मक मूर्ति और प्राकृतिक सौंदर्य है।

आवागमन[संपादित करें]

अम्बिकापुर रेलवे स्टेशन
सडक मार्ग

छत्तीसगढ राज्य में :

  • रायपुर से अम्बिकापुर (जिला मुख्यालय) - 310 किमी
  • बिलासपुर से अम्बिकापुर- 210 किमी
  • रायगढ से अम्बिकापुर- 210 किमी
  • मध्यप्रदेश राज्य में: अनूपपुर से अम्बिकापुर - 205 किमी
  • उत्तरप्रदेश राज्य में: वाराणसी से अम्बिकापुर - 350 किमी
  • झारखंड राज्य में: रांची से अम्बिकापुर - 368 किमी
  • उडीसा राज्य में: झारसुगुडा से अम्बिकापुर- 415 किमी
  • भोपाल से अंबिकापुर (सड़क मार्ग) - 742 किमी
रेल मार्ग

सरगुजा जिला मुख्यालय अम्बिकापुर 03 जून 2006 से रेल मार्ग से जुडा है। अम्बिकापुर शहर के मुख्य मार्ग देवीगंज रोड पर स्थित गांधी चौक से रेल्वे स्टेशन की दूरी लगभग 5 किमी है। यहां से टेम्पो, टैक्सी इत्यादि से अम्बिकापुर शहर आया जा सकता है। अम्बिकापुर को पहुंचने वाली ट्रेनें:

  • नई दिल्ली से अनुपपुर >> अनुपपुर से अम्बिकापुर
  • मुंबई से बिलासपुर >> बिलासपुर से अम्बिकापुर
  • चेन्नई से बिलासपुर >> बिलासपुर से अम्बिकापुर
  • कोलकाता से रायगढ >> रायगढ से अम्बिकापुर

बिलासपुर से अम्बिकापुर आने के लिये बस और ट्रेंन दोनों का प्रयोग किया जा सकता है। बस अम्बिकापुर तक सीधे आती है जबकी ट्रेंन अनुपपुर (मध्यप्रदेश) होतें हुए अम्बिकापुर तक आती है। रायगढ से अम्बिकापुर आने के लिये बस की सुविधा ही उपलब्ध है।

वायु मार्ग

अम्बिकापुर सीधे आने के लिये वायु मार्ग उपलब्ध नहीं है, यदि हवाई मार्ग से पहुंचना है तो छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर तक ही हवाई जहाज से आया जा सकता है उसके बाद रायपुर से अम्बिकापुर 310 किलीमीटर की दूरी सड़क मार्ग से तय की जा सकती है। हाल ही में स्वच्छता में दूसरे नंबर पर आया है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]