अभिधा

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' according to Shivam Pandey ,(dhutpura(अभिधा' शब्द शक्ति का पहला प्रकार है जो शब्दों के शब्दकोशीय अर्थ का बोध कराती है। इसमें किसी शब्द का सामान्य अर्थ में प्रयोग किया जाता है। जैसे 'सिर पर चढ़ाना' का अर्थ किसी चीज को किसी स्थान से उठाकर सिर पर रखना होगा। साक्षात् सांकेतित अर्थ (मुख्यार्थ या वाच्यार्थ) को प्रकट करने वाली शब्दशक्ति अभिधा शब्दशक्ति कहलाती है। इसे ‘प्रथमा’ एवं ‘अग्रिमा’ शक्ति भी कहते हैं। मुख्यार्थ की बोधिका होने के अतिरिक्त यह शक्ति पद और पदार्थ के पारस्परिक संबंध का भी ज्ञान कराती है। जैसे–गाय दूध देती है। मोहन पढ़ता है। 1 जब किसी पद में ‘यमक’ अलंकार की प्राप्ति होती है तो वहाँ प्राय: अभिधा शब्द शक्ति होती है। 2 कभी–कभी ‘उत्प्रेक्षा’ अलंकार के पदों में भी उनका मुख्य अर्थ ही प्रकट होता है , अत: इस अलंकार के पदों में भी प्राय: ( सदैव नहीं ) अभिधा शब्द शक्ति होती है।

भेद[संपादित करें]

अभिधा शब्द शक्ति के तीन भेद होते हैं-

  • रूढ़ि : जब शब्द समुदाय-रूप में अर्थ का बोध कराए तो रूढ़ि होगी[1] इसमें शब्द के एक ही अर्थ का बोध होता है, जैसे-पौधा।
  • यौगिक : इसमें शब्द के अवयव से उसके अर्थ का बोध होता है। ये अवयव ही शब्द का सही अर्थ जानने में सहायक होते हैं। जैसे- 'भूपति', इसमें भू का अर्थ 'पृथ्वी' होगा तथा पति का अर्थ स्वामी होगा। किंतु इन अवयवों को मिला देने से 'भूपति' का अर्थ 'राजा' होगा।[2]
  • योगरूढ़ि : जब किसी शब्द का अर्थ उसके समूह की सहायता से प्राप्त हो तथा वह शब्द उसी अर्थ के लिए रूढ़ हो चुका हो, वहाँ अभिधा की योगरूढ़ि शक्ति का प्रयोग किया जाता है। जैसे- 'दशानन' शब्द दस सिर वाले 'रावण' के लिए रूढ़ हो चुका है।

अभिधा शब्द शक्ति से जिन शब्दों का अर्थ बोध होता है ; वे तीन प्रकार के होते हैं – 1 रूढ़ 2 यौगिक 3 योगरूढ़

1. रूढ़ शब्द – जिन शब्दों के खंड न हो , सम्पूर्ण शब्दों का एक ही अर्थ प्रकट हो , उन्हें रूढ़ शब्द कहते हैं | जैसे – पेड़ , हाथी , मेज , कलम आदि |

2. यौगिक शब्द – प्रत्यय ,कृदन्त , समास इत्यादि के संयोग से बने वे शब्द , जो समुदाय के अर्थ का बोध कराते हैं , उन्हें यौगिक शब्द कहते हैं | जैसे – महेश , दिवाकर , पाठशाला आदि |

3. योगरूढ़ शब्द – जो शब्द यौगिक की प्रक्रिया से बने हों किन्तु उनका एक निश्चित अर्थ रूढ़ हो गया हो , उन्हें योगरूढ़ शब्द कहते हैं | जैसे – जलज , गणनायक इत्यादि |

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. डॉ. राजवंश सहाय, 'हीरा' (२००९). भारतीय साहित्यशास्त्र कोश. पटना: बिहार हिन्दी ग्रंथ अकादमी. पृ॰ ९२.
  2. डॉ. राजवंश सहाय, 'हीरा' (२००९). भारतीय साहित्यशास्त्र कोश. पटना: बिहार हिन्दी ग्रंथ अकादमी. पृ॰ ९२.